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September 2022

प्रगतिवाद (1936 से 1942 ई० )

प्रगतिवाद (1936 से 1942 ई० ) लखनऊ में अप्रैल, 1936 ई० में 'प्रगतिशील लेखक संघ' की स्थापना और प्रथम अधिवेशन के समय से हिन्दी में प्रगतिवादी आन्दोलन की शुरुआत होती है। इस अधिवेशन के प्रथम अध्यक्ष मुंशी प्रेमचंद थे।सन् 1934 ई० में गोर्की

हिंदी साहित्य में नयी कविता का युग

'दूसरे सप्तक' के प्रकाशन वर्ष 1951ई० से 'नयी कविता' का प्रारंभ माना जाता है। 'नयी कविता' उन कविताओं को कहा जाता है, जिनमें परम्परागत कविता से आगे नये भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और शिल्प विधान का अन्वेषण किया

प्रपद्यवाद या नकेनवाद

नकेनवाद की स्थापना सन् १९५६ में नलिन विलोचन शर्मा ने की थी। नकेनवाद को प्रपद्यवाद के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद की एक शाखा माना जाता है। प्रपद्यवाद या नकेनवाद के अंतर्गत तीन कवियों

साठोत्तरी कविता आंदोलन

साठोत्तरी हिन्दी साहित्य के इतिहास के अन्तर्गत सन् 1960 ई० के बाद मुख्यतः नवलेखन (नयी कविता, नयी कहानी आदि) युग से काफी हद तक भिन्नता की प्रतीति कराने वाली ऐसी पीढ़ी के द्वारा रचित साहित्य है जिनमें विद्रोह एवं अराजकता का स्वर प्रधान था।

प्रयोगवादी कवियों की महत्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ

प्रयोगवादी कवियों की महत्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ (क) अज्ञेय (1) वही परिचित दो आँखें हीचिर माध्यम हैंसब आँखों से सब दर्दों से मेरे लिए परिचय का। (2) यह दीप अकेला स्नेह भरा, है गर्व भरा मदमाता,पर इसको भी पंक्ति दे दो। (3) किन्तु

हिंदी साहित्य का प्रयोगवाद

'प्रयोगवाद' 'तार सप्तक' के माध्यम से वर्ष 1943 ई० में प्रकाशन जगत में आई और जो प्रगतिशील कविताओं के साथ विकसित होती गयी तथा जिनका पर्यावसान 'नयी कविता' में हो गया। कविताओं को सबसे पहले नंद दुलारे बाजपेयी ने 'प्रयोगवादी कविता' कहा।

हिंदी की पहली कहानी

हिंदी की पहली कहानी हिंदी कहानी का वास्तविक विकास 'द्विवेदी युग' से ही शुरू हुआ। किशोरी लाल गोस्वामी की इंदुमती कहानी को कुछ विद्वान हिंदी की पहली कहानी मानते हैं। अन्य कहानियों में बंग महिला की दुलाई वाली, शुक्ल जी की ग्यारह वर्ष का

हिंदी साहित्य में नवगीत

हिंदी साहित्य में नवगीत, हिन्दी काव्य-धारा की एक नवीन विधा है। इसकी प्रेरणा सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई और लोकगीतों की समृद्ध भारतीय परम्परा से है। हिंदी साहित्य के प्रमुख नवगीतकार में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, राजेन्द्र प्रसाद सिंह,

हिन्दी साहित्य में ग़ज़ल

हिन्दी साहित्य में ग़ज़ल को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह हिन्दी साहित्य की एक सशक्त और अत्यन्त लोकप्रिय काव्य - विधा है। ग़ज़ल की शुरुआत ग़ज़ल की शुरुआत लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पहले अरबी भाषा में हुई थी। अरबी में मुख्य रूप से कसीदे (

दलित कविता का विकास

दलित कविता का विकास संत रैदास को हिंदी का प्रथम दलित कवि माना जाता है।आधुनिक युग के दलित कवियों में प्रथम नाम हीरा डोम और स्वामी अच्युतानंद का नाम लिया जाता है।दलित विद्वानों ने सन 1914 ईस्वी में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हीरा डोम की