प्रपद्यवाद या नकेनवाद

नकेनवाद की स्थापना सन् १९५६ में नलिन विलोचन शर्मा ने की थी। नकेनवाद को प्रपद्यवाद के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद की एक शाखा माना जाता है।

प्रपद्यवाद या नकेनवाद के अंतर्गत तीन कवियों को लिया जाता है- नलिन विलोचन शर्माकेशरी कुमारनरेश

प्रयोगवाद का एक दूसरा पहलू बिहार के नलिनविलोचन शर्मा, केशरी और नरेश के ‘नकेनवादी’ प्रपद्यों द्वारा आया जो अपनी समझ से अज्ञेय के और प्रयोगवाद का विरोध करते हुए भी वस्तुतः उसी की एक शाखा है

‘आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ’ पुस्तक में नामवर सिंह
  • प्रपद्यवाद का प्रवर्तन नलिन विलोचन शर्मा ने सन् 1956 में प्रकाशित ‘नकेन के प्रपद्य’ संकलन से किया।
  • प्रपद्यवाद को ‘नकेनवाद भी कहा जाता है क्योंकि इसमें बिहार के तीन कवि नलिन विलोचन शर्मा, केशरी कुमार और नरेश के नाम के प्रथम अक्षरों को आधार मानकर ‘नकेन’ बनता है।
  • प्रपद्यवाद और प्रयोगवाद में मूल अंतर यह है कि प्रपद्यवाद ‘प्रयोग’ को साध्य मानता है जबकि प्रयोगवाद ‘प्रयोग’ को साधन मानता है।
  • आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने ‘प्रवद्यवाद’ के संबंध में लिखा है, “नकेनवाद जिसे उसके हिमायतियों ने प्रपद्यवाद भी कहा है, वास्तव में, प्रयोगशीलता का एक अतिवाद था। प्रयोगवाद के प्रवक्ताओं ने जो कुछ नया कहा था, उससे सन्तुष्ट न होकर उसे एक तार्किक सीमा तक पहुँचाने का कार्य नकेन-1, नकेन-2 नामक संग्रह की भूमिकाओं में दिखाई पड़ा था।”
  • सन 1952 में नरेश के सम्पादकत्व में प्रकाशित पत्रिका प्रकाश में नकेनवादियों ने प्रपद्यवाद को तथाकथित ‘प्रयोग दश सूत्री घोषित किया। –
You might also like
Leave A Reply