लेखक: M.L. Patel

  • जीवन का झरना (कविता ) आरसी प्रसाद सिंह हिंदी कक्षा 10 वीं पाठ 6.1

    जीवन का झरना (कविता ) आरसी प्रसाद सिंह हिंदी कक्षा 10 वीं पाठ 6.1 आरती प्रसाद सिंह : जीवन परिचय प्रसिद्ध कवि, कथाकार और एकांकीकार आरसी प्रसाद सिंह को जीवन और यौवन का कवि कहा जाता है। इन्होंने हिन्दी साहित्य को बालकाव्य, कथाकाव्य, महाकाव्य, गीतकाव्य, रेडियो रूपक एवं कहानियों समेत कई रचनाएँ दी हैं। इनके…

  • अष्टछाप के कवि

    अष्टछाप के कवि

    पुष्टि मार्ग में बल्लभाचार्य ने कवियों (सूरदास, कुंभनदास, परमानंद दास व कृष्णदास) को दीक्षित किया। उनके मरणोपरांत उनके पुत्र विटठलनाथ आचार्य की गद्दी पर बैठे और उन्होंने भी 4 कवियों (छीतस्वामी, गोविंदस्वामी, चतुर्भुजदास व नंददास) को दीक्षित किया। विटठलनाथ ने इन दीक्षित कवियों को मिलाकर ‘अष्टछाप’ की स्थापना 1565 ई० में की। सूरदास इनमें सर्वप्रमुख…

  • संत काव्य

    ज्ञानाश्रयी शाखा/संत काव्य:- संत काव्य के प्रतिनिधि कवि कबीर है ‘संत काव्य’ का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया काव्य। लेकिन जब हिन्दी में ‘संत काव्य’ कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के द्वारा रचा गया काव्य। संत कवि : कबीर, नामदेव, रैदास, नानक, धर्मदास, रज्जब, मलूकदास, दादू,…

  • राम भक्ति काव्य धारा

    राम भक्ति काव्य धारा

    रामाश्रयी शाखा/राम भक्ति काव्य:- राम भक्ति काव्य की विशेषताएँ : राम भक्ति काव्य धारा आगे चलकर रीति काल में मर्यादावाद की लीक छोड़कर रसिकोपासना की ओर बढ़ जाती है। ‘तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’ -हजारी प्रसाद द्विवेदी ‘भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर…

  • संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ

    संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ

    संत काव्य /निर्गुण काव्य की विशेषताएँ- संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ धार्मिक क्षेत्र में : सामाजिक क्षेत्र में: शिल्पगत क्षेत्र में: रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी भाषा’ की संज्ञा दी है। श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा…

  • भक्तिकाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

    तुलसीदास की पंक्तियाँ कबीरदास की पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी  की पंक्तियाँ सूरदास की पंक्तियाँ रहीमदास की पंक्तियाँ सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय।गोद लिए हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय।।-रहीम दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे मांहि।ज्यों रहीम नटकुंडली, सिमिट कूदि चलि जांहि।।-रहीम तब लग ही जीबो भला देबौ होय न धीम।जन में रहिबो…

  • पत्र लेखन एक कला है

    पत्र लेखन एक कला है एक पत्र में न केवल उसके लेखक की भावनाएं व्यक्त होती हैं, बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभर कर सामने आता है। इससे लेखक का चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कृति, मानसिक स्थिति, आचरण आदि सभी एक साथ प्रतिबिंबित होते हैं। अतः पत्र लिखना एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। परंतु इस प्रकार की…

  • पत्र के भाग

    पत्र को जिस क्रम में प्रस्तुत किया जाता हैं अथवा लिखा जाता हैं, वे पत्र के भाग कहलाते हैं। अनौपचारिक व औपचारिक पत्रों में पत्र के भाग सामान्य रूप से समान होते हैं। दोनों श्रेणियों के पत्रों में कुछ अन्तर होता हैं। जिसे यहाँ स्पष्ट किया गया हैं। सामान्यतः पत्र के निम्नलिखित भाग होते हैं-…

  • भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) : प्रमुख बिंदु

    भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) : प्रमुख बिंदु रोअहु सब मिलिकै आवहु भारत भाई।हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ॥भारत दुर्दशा एक दुखान्त नाटक है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र भारत दुर्दशा अतीत गौरव की चमकदार स्मृति है, आँसू-भरा वर्तमान है और भविष्य-निर्माण की भव्य प्रेरणा है। इसमें भारतेंदु का भारत प्रेम करुणा की सरिता के रूप में उमड़…

  • श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि

    श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि

    श्री वल्लभाचार्यजी वैष्णव धर्म के प्रधान प्रवर्त्तकों में से थे। ये वेदशास्त्र में पारंगत धुरंधर विद्वान् थे। वल्लभाचार्य ने सगुण रूप को ही असली पारमार्थिक रूप बताया और निर्गुण को उसका अंशतः तिरोहित रूप कहा। श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि जीवन परिचय आचार्य जी का जन्म संवत् 1535, वैशाख कृष्ण…

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