रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ

रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ :

(1) सतसई परम्परा का पुनरुद्धार
(2) काव्य भाषा-वज्रभाषा
(3) मुक्तक का प्रयोग
(4) दोहा छंद की प्रधानता
(5) दोहे के अलावा ‘सवैया’ (श्रृंगार रस के अनुकूल छंद) और ‘कवित्त’ (वीर रस के अनुकूल छंद) रीति कवियों के प्रिय छंद

रीतिमुक्त/रीति स्वच्छन्द काव्य की विशेषताएँ :

(1) रीति स्वच्छंदता

(2) स्वानुभूत प्रेम की अभिव्यक्ति

(3) विरह का आधिक्य

(4) कला पक्ष के स्थान पर भाव पक्ष पर जोर

(5) पृथक काव्यादर्श/प्राचीन काव्य परम्परा का त्याग

(6) सहज, स्वाभाविक एवं प्रभावी अभिव्यक्ति

(7) सरल, मनोहारी बिम्ब योजना व सटीक प्रतीक विधान

रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ :

(1) सतसई परम्परा का पुनरुद्धार
(2) काव्य भाषा-वज्रभाषा (श्रुति मधुर व कोमल कांत पदावलियों से युक्त तराशी हुई भाषा)
(3) काव्य रूप-मुख्यतः मुक्तक का प्रयोग
(4) दोहा छंद की प्रधानता

(दोहे ‘गागर में सागर’ शैली वाली कहावत को चरितार्थ करते है तथा लोकप्रियता के लिहाज से संस्कृत के ‘श्लोक’ एवं अरबी-फारसी के शेर के समतुल्य है।); दोहे के अलावा ‘सवैया’ (श्रृंगार रस के अनुकूल छंद) और ‘कवित्त’ (वीर रस के अनुकूल छंद) रीति कवियों के प्रिय छंद थे। केशवदास की ‘रामचंद्रिका’ को ‘छंदों’ का अजायबघर’ कहा जाता है।

रीतिमुक्त/रीति स्वच्छन्द काव्य की विशेषताएँ :

बंधन या परिपाटी से मुक्त रहकर रीतिकाव्य धारा के प्रवाह के विरुद्ध एक अलग तथा विशिष्ट पहचान बनाने वाली काव्यधारा ‘रीतिमुक्त काव्य’ के नाम से जाना जाता है।

रीतिमुक्त काव्य की विशेषताएँ :

(1) रीति स्वच्छंदता
(2) स्वअनुभूत प्रेम की अभिव्यक्ति
(3) विरह का आधिक्य
(4) कला पक्ष के स्थान पर भाव पक्ष पर जोर
(5) पृथक काव्यादर्श/प्राचीन काव्य परम्परा का त्याग
(6) सहज, स्वाभाविक एवं प्रभावी अभिव्यक्ति
(7) सरल, मनोहारी बिम्ब योजना व सटीक प्रतीक विधान

रीतिकालीन देव ने फ्रायड की तरह, लेकिन फ्रायड के बहुत पहले ही, काम (Sex) को समस्त जीवों की प्रक्रियाओं के केन्द्र में रखकर अपने समय में क्रांतिकारी चिंतन दिया।

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