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हिन्दी साहित्य का रीतिकाल

रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ

रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ : (1) सतसई परम्परा का पुनरुद्धार(2) काव्य भाषा-वज्रभाषा(3) मुक्तक का प्रयोग(4) दोहा छंद की प्रधानता(5) दोहे के अलावा 'सवैया' (श्रृंगार रस के अनुकूल छंद) और 'कवित्त' (वीर रस के अनुकूल छंद) रीति कवियों के प्रिय

रीतिकालीन रचना एवं रचनाकार

रीतिकालीन रचना एवं रचनाकार चिंतामणि -कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, श्रृंगार मंजरी, छंद विचार मतिराम -रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी राजा जसवंत सिंह -भाषा भूषण भिखारी दास -काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय

रीतिकालीन प्रसिद्ध पंक्तियाँ

रीतिकालीन प्रसिद्ध पंक्तियाँ रीतिकालीन कवियों की प्रसिद्ध पंक्तियाँ बिहारी की पंक्तियाँ इत आवति चलि, जाति उत चली छ सातक हाथ।चढ़ि हिंडोरे सी रहै लागे उसासनु हाथ।।(विरही नायिका इतनी अशक्त हो गयी है कि सांस लेने मात्र से छः सात

रीतिकाल : हिंदी साहित्य का इतिहास

रीतिकाल : हिंदी साहित्य का इतिहास रीतिकाल का नामकरण रीतिकालीन कवि के वर्गरीतिकाल की उपलब्धियां :हिंदी आचार्यों के दोषरीति आचार्यों की योगदान का मूल्यांकननिष्कर्ष: रीतिकाल का नामकरण विवादास्पदमिश्र बंधु - 'अलंकृत काल', रामचन्द्र