साठोत्तरी हिन्दी साहित्य के इतिहास के अन्तर्गत सन् 1960 ई० के बाद मुख्यतः नवलेखन (नयी कविता, नयी कहानी आदि) युग से काफी हद तक भिन्नता की प्रतीति कराने वाली ऐसी पीढ़ी के द्वारा रचित साहित्य है जिनमें विद्रोह एवं अराजकता का स्वर प्रधान था।
साठोत्तरी लेखन में विद्रोही चेतनायुक्त आन्दोलन प्राथमिक रूप से कविता के क्षेत्र में मुखर हुई। इसलिए इससे सम्बन्धित सारे आन्दोलन मुख्यतः कविता के आन्दोलन रहे। हालाँकि कहानी एवं अन्य विधाओं पर भी इसका असर पर्याप्त रूप से पड़ा और कहानी के क्षेत्र में भी ‘अकहानी’ जैसे आन्दोलन ने रूप धारण किया।
साठोत्तरी हिन्दी साहित्य का पहला दशक (1960-70) आधुनिकतावाद से विशेष प्रभावित है।
“वस्तुतः नवीन ज्ञान-विज्ञान, टेक्नोलॉजी के फलस्वरूप उत्पन्न विषम मानवीय स्थितियों के नये, गैर-रोमैंटिक और अमिथकीय साक्षात्कार का नाम ‘आधुनिकता’ है।”
डॉ० बच्चन सिंह
आन्दोलनों के नाम
मुख्यतः कविता-प्रधान इन आंदोलनों के नाम इस प्रकार हैं
- सनातन सूर्योदयी कविता
- अपरंपरावादी कविता
- अन्यथावादी कविता
- सीमांत कविता
- युयुत्सावादी कविता
- अस्वीकृत कविता
- अकविता
- सकविता
- अभिनव कविता
- अधुनातन कविता
- नूतन कविता
- नाटकीय कविता
- एंटी कविता
- निर्दिशायामी कविता
- लिंग्वादलमोतवादी कविता
- एब्सर्ड कविता
- गीत कविता
- नव प्रगतिवादी कविता
- सांप्रतिक कविता
- बीट कविता
- ठोस कविता
- विद्रोही कविता (सातवें दशक के आरम्भ में सात कवियों का एक काव्य संग्रह इलाहाबाद से प्रकाशित)
- क्षुत्कातर कविता
- समाहारात्मक कविता
- कबीरपंथी कविता
- उत्कविता
- विकविता
- बोध कविता
- द्वीपांतर कविता
- अति कविता
- टटकी कविता
- ताजी कविता
- प्रतिबद्ध कविता
- अगली कविता
- शुद्ध कविता
- नंगी कविता
- स्वस्थ कविता
- गलत कविता
- सही कविता
- प्राप्त कविता
- सहज कविता
- नवगीत
- अगीत
- एंटी गीत
सन् 1963 ई० में जगदीश चतुर्वेदी के सम्पादन में 14 कवियों का काव्य-संग्रह ‘प्रारम्भ’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ वे कवि निम्न हैं-
- जगदीश चतुर्वेदी
- विष्णु चन्द्र शर्मा
- कैलाश वाजपेयी
- श्याम मोहन श्रीवास्तव
- नरेन्द्र धीर
- मनमोहिनी
- राजकमल चौधरी
- रमेश गौड़
- राजीव सक्सेना
- स्नेहमयी चौधरी
- ममता अग्रवाल
- श्याम परमार
- नर्मदा प्रसाद त्रिपाठी
साठोत्तरी कविता आंदोलन से प्रमुख तथ्य
- जगदीश चतुर्वेदी ने सन् 1964 ई० में डॉ० इन्द्रनाथ मदान एवं रमेश कुन्तल ‘मेघ’ द्वारा सम्पादित ‘अभिव्यक्ति’ में ‘अभिनव काव्य’ को एक नया नाम ‘एंटी पोइट्री’ या ‘अकविता’ दिया।
- सन् 1965 ई० में श्याम परमार ने ‘अकविता’ पत्रिका का प्रवर्तन किया। श्याम परमार ही ‘अकविता’ आन्दोलन के प्रवर्तक हैं। श्याम परमार ने अकविता को निषेध काव्य से अलग मानते हुए लिखा है, “यह अन्तर्विरोधों की अन्वेषक, विभाजित व्यक्तित्व की शोधक और परिपका निर्वैयक्तिकता की द्योतक है।”
- सन् 1973 ई० में जगदीश चतुर्वेदी ने 11 कवियों का एक नया काव्य-संकलन ‘निधेष’ शीर्षक से प्रकाशित करवाया।
- ‘अस्वीकृत कविता’ की स्थापना श्रीराम शुक्ल ने ‘उत्कर्ष’ (जुलाई, 1969) के माध्यम से की। ‘बीट जैनरेशन’ की स्थापना सर्वप्रथम सन् 1952 ई० में अमेरिका में हुई। इसके प्रवर्तक जैक कैरूआक एवं एलेन गिसवर्ग हैं। गिसवर्ग की महत्वपूर्ण काव्य कृति ‘हाउल’ का प्रकाशन सन् 1954 में हुआ।
- हिन्दी में ‘बीट पीढ़ी’ बंगाल की ‘भूखी पीढ़ी’ के माध्यम से आया। हिन्दी में ‘बोट ‘पीढ़ी’ का प्रवर्तक राजकमल चौधरी को माना जाता है। युयुत्सावादी कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन शलभ श्री रामसिंह ने सन् 1965 कलकत्ता से प्रकाशित ‘युयुत्सा’ पत्रिका से किया।
- ‘नव प्रगतिशील’ काव्यान्दोलन का प्रवर्तन नवल किशोर ने किया।
- सन् 1968 ई० में डॉ० रणजीत ने आठ कवियों की रचनाओं का संकलन पीढ़ी’ शीर्षक से प्रकाशित करवाया।
- ‘आज की कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन हरीश मादानी ने किया। ‘वाम कविता’ या ‘प्रतिबद्ध कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन डॉ० परमानन्द श्रीवास्तव ने किया। ‘सनातन सूर्योदयी’ आन्दोलन का प्रवर्तन वीरेन्द्र कुमार जैन ने ‘भारती पत्रिका’ के माध्यम से मार्च 1962 में किया।
- सन् 1967 में डॉ० रवीन्द्र भ्रमर द्वारा ‘सहज कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन किया गया।
- ‘संचेतना’ पत्रिका के जून 1973 के ‘विचार कविता विशेषांक’ के माध्यम से ‘विचार कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ। ‘संचेतना’ के तत्कालीन सम्पादक डॉ० महीप सिंह और डॉ० नरेन्द्र मोहन थे।
- ‘सांप्रदायिक कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन श्याम नारायण ने किया। निर्दिशायामी कविता’ का प्रवर्तन सत्यदेव राजहंस ने किया।
- ‘ताजी कविता’ का प्रवर्तन लक्ष्मीकांत वर्मा ने किया।
- ‘टटकी कविता’ का प्रवर्तन रामवचन राय ने किया। ‘समकालीन कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन डॉ० विशम्भरनाथ उपाध्याय ने सन् 1976 में अपनी पुस्तक ‘समकालीन कविता की भूमिका’ के माध्यम से किया।
- कैप्सूल या सूत्र कविता’ आन्दोलन का प्रवर्तन डॉ० ओंकारनाथ त्रिपाठी ने किया।