हिंदी नाटक
हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला।
जैसाकि कहा जा चुका है, हिन्दी में अव्यावसायिक साहित्यिक रंगमंच के निर्माण का श्रीगणेश आगाहसन ‘अमानत’ लखनवी के ‘इंदर सभा’ नामक गीति-रूपक से माना जा सकता है। पर सच तो यह है कि ‘इंदर सभा’ की वास्तव में रंगमंचीय कृति नहीं थी। इसमें शामियाने के नीचे खुला स्टेज रहता था। नौटंकी की तरह तीन ओर दर्शक बैठते थे, एक ओर तख्त पर राजा इंदर का आसन लगा दिया जाता था, साथ में परियों के लिए कुर्सियाँ रखी जाती थीं। साजिंदों के पीछे एक लाल रंग का पर्दा लटका दिया जाता था। इसी के पीछे से पात्रों का प्रवेश कराया जाता था। राजा इंदर, परियाँ आदि पात्र एक बार आकर वहीं उपस्थित रहते थे। वे अपने संवाद बोलकर वापस नहीं जाते थे।
हिंदी नाटक का विकास
हिंदी नाटक का विकास हिंदी नाट्य साहित्य का विकास जयशंकर प्रसाद जी को केंद्र में रखकर हिंदी नाट्य साहित्य को हम विभिन्न युगों में बांट सकते हैं। प्रसाद पूर्व हिंदी नाटक प्रसाद युगीन नाटक प्रसादोत्तर स्वतंत्रता पूर्व हिंदी नाटक स्वातंत्र्योत्तर नाटक ( 1947 से आज तक ) समग्रतः हिंदी नाटक के क्षेत्र में स्वातंत्र्योत्तर काल भारतेंदु … Read more
आषाढ़ का एक दिन नाटक का परिचय
आषाढ़ का एक दिन एक त्रिखंडीय नाटक है। आषाढ़ का एक दिन कथानक :- प्रथम खंड :- प्रथम खंड में युवक कालिदास अपने हिमालय में स्थित गाँव में शांतिपूर्वक जीवन गुज़़ार रहा है और अपनी कला विकसित कर रहा है। वहाँ उसका एक युवती, मल्लिका, के साथ प्रेम-सम्बन्ध भी है। नाटक का पहला रुख़ बदलता है जब … Read more
अंधा युग गीतिनाट्य का कथासार
अंधा युग गीतिनाट्य का कथासार स्थापना- स्थापना के अन्तर्गत नाटककार ने मंगलाचरण, उद्घोषणा और अपनी कृति के वर्ण्य विषय का उल्लेख किया है। उद्घोषणा में उसने बताया है कि प्रस्तुत कृति का वर्ण्य विषय विष्णु पुराण से लिया गया है, जिसमें भविष्यवाणी करते हुए लिखा है कि उस भविष्य में सब लोग तथा उनके धर्म-अर्थ … Read more
आधे अधूरे के प्रमुख पात्रों का चरित्र-चित्रण
आधे अधूरे के प्रमुख पात्रों का चरित्र-चित्रण पुरुष एक महेन्द्रनाथ पुरुष एक अर्थात् महेन्द्रनाथ नाटक में प्रतीक रूप में वर्णित, मध्य से निम्न मध्य – वित्तीय स्थितियों की ओर अग्रसर हो रहे परिवार का मुखिया है। इस दृष्टि से उसे हम ‘आधे-अधूरे’ नाटक का आधुनिक नायक भी कह सकते हैं। अपने पात्र परिचय में नाटककार … Read more
आधे अधूरे : कथासार
आधे अधूरे : कथासार नाटककार मोहन राकेश ने ‘आधे अधूरे’ की कथावस्तु को एक ऐसे नव्य रूप में प्रस्तुत किया है जिससे सहज ही स्वातंत्र्योत्तर चेतना का आभास होता है। मोहन राकेश ने मध्य वर्गीय परिवार के घर को मंच पर प्रस्तुत करके एक ऐसे व्यक्ति को उद्घोषक के रूप में सामने रखा है जो … Read more
अंधेर नगरी – कथासार
अंधेर नगरी – कथासार अंधेर नगरी नाटक का कथानक एक दृष्टांत की तरह है और उसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है एक महन्त अपने दो चेलों – गोवर्धनदास और नारायणदास के साथ भजन गाते हुए एक भव्य और सुन्दर नगर में आता है। महन्त अपने दोनों चेलों को भिक्षाटन के लिए नगर में भेजता है- … Read more
आधे-अधूरे सप्रसंग व्याख्या
आधे-अधूरे सप्रसंग व्याख्या – आप शायद सोचते हों कि मैं नाटक में कोई एक निश्चित इकाई हूँ- अभिनेता, प्रस्तुतकर्त्ता, व्यवस्थापक या कुछ और। परंतु मैं अपने संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता उसी तरह जैसे इस नाटक के संबंध में नहीं कह सकता। क्योंकि यह नाटक भी अपने में मेरी ही तरह … Read more
भारतेंदु की नाट्य कला
भारतेंदु की नाट्य कला भारतेंदु के समय तक भारत की समृद्ध साहित्यिक नाट्य परंपरा, जिसकी अविच्छिन्न धारा भरत के नाटकों से लेकर लगभग 10वीं शताब्दी तक संस्कृत, रंगमंच से जुड़ी रही, वह लुप्त हो चुकी थी। दसवीं शताब्दी के बाद संस्कृत में जो नाटक लिखे गए उनका रंगमंच से कोई साक्षात् संबंध नहीं रहा और … Read more
अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना
अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना संवाद नाटक की आत्मा होते हैं। उन्हीं के आधार पर नाटक की कथा निर्मित और विकसित होती है, पात्रों के चरित्र के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है, उनका विकास होता है। संवाद ही नाटक में सजीवता, रोचकता तथा पाठक के मन में जिज्ञासा और कौतूहल जगाते … Read more