हिंदी नाटक का विकास
हिंदी नाट्य साहित्य का विकास
जयशंकर प्रसाद जी को केंद्र में रखकर हिंदी नाट्य साहित्य को हम विभिन्न युगों में बांट सकते हैं।
- १ प्रसाद पूर्व हिंदी नाटक
- २ प्रसाद युगीन हिंदी नाटक
- ३ प्रसादोत्तर स्वतंत्रता पूर्व हिंदी नाटक
- ४ स्वतंत्र्योत्तर हिन्दी नाटक
प्रसाद पूर्व हिंदी नाटक
- (क) भारतेंदु युगीन नाटक (1850 – 1900ई.):
- (ख) द्विवेदी युगीन नाटक (1900 -1918 ई.)
प्रसाद युगीन नाटक
- (1) ऐतिहासिक नाटक
- (2) रोमांचकारी नाटक
- (3) पौराणिक नाटक
- (4) समसामयिक नाटक
- (5) यथार्थवादी नाटक
प्रसादोत्तर स्वतंत्रता पूर्व हिंदी नाटक
- (1) राष्ट्रीय चेतना पर आधारित नाटक
- (2) यथार्थपरक समस्या प्रधान नाटक
स्वातंत्र्योत्तर नाटक ( 1947 से आज तक )
- (1) आधुनिकता बोध एवं विसंगति बोध
- (2) पाश्चात्य शिल्प
- (3) नुक्कड़ नाटक
समग्रतः हिंदी नाटक के क्षेत्र में स्वातंत्र्योत्तर काल भारतेंदु काल के बाद सर्वाधिक सक्रियता का काल रहा है । इस दौर में कथ्य और शिल्प के स्तर पर तीव्र परिवर्तनों ने हिंदी नाटक को एक नई दिशा दी । इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों के दबाव के बावजूद यह परिवर्तन हिंदी नाटक के विकास के प्रति आश्वस्त करते हैं।