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काव्यशास्त्र
‘काव्यशास्त्र’ काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है।
श्रृंगार रस
श्रृंगार रस
श्रृंगार दो शब्दों के योग से बना है श्रृंग + आर।
श्रृंग का अर्थ है काम की वृद्धि , तथा आर का अर्थ है प्राप्ति।
अर्थात जो काम अथवा प्रेम की वृद्धि करें वह श्रृंगार है।
श्रृंगार का स्थाई भाव दांपत्य रति /!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
रौद्र रस
रौद्र रस
भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है, यथा-‘तेषामुत्पत्तिहेतवच्क्षत्वारो रसा: शृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’।
रौद्र से करुण!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
करुण रस
करुण रस
भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित आठ नाट्यरसों में शृंगार और हास्य के अनन्तर तथा रौद्र से पूर्व करुण रस की गणना की गई ।
‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पत्ति 'रौद्र रस' से मानी गई है और उसकी उत्पत्ति!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
भारतीय संस्कृत काव्यशास्त्र ग्रन्थ
भारतीय संस्कृत काव्यशास्त्र ग्रन्थ
नाट्यशास्त्र (भरतमुनि, 2वीं!-->!-->!-->…
वीर रस
वीर रस
शृंगार, रौद्र तथा वीभत्स के साथ वीररस को भी भरत मुनि ने मूल रसों में परिगणित किया है।
वीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्ति बतलाई गई है।
वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा देवता इन्द्र कहे गये हैं।
यह उत्तम प्रकृति!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
अद्भुत रस
अद्भुत रस
अद्भुत रस के भरतमुनि ने दो भेद इए हैं- दिव्य तथा आनन्दज ।
वैष्णव आचार्य इसके दृष्ट, श्रुत, संकीर्तित तथा अनुमित नामक भेद करते हैं।
अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है।
विस्मय का साधारण रूप आश्चर्य से!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…