करुण रस
- भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित आठ नाट्यरसों में शृंगार और हास्य के अनन्तर तथा रौद्र से पूर्व करुण रस की गणना की गई ।
- ‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर ‘करुण रस’ की उत्पत्ति ‘रौद्र रस’ से मानी गई है और उसकी उत्पत्ति शापजन्य क्लेश विनिपात, इष्टजन-विप्रयोग, विभव नाश, वध, बन्धन, विद्रव अर्थात पलायन, अपघात, व्यसन अर्थात आपत्ति आदि विभावों के संयोग से स्वीकार की है।

- साथ ही निर्वेद, ग्लानि, चिन्ता, औत्सुक्य, आवेग, मोह, श्रम, भय, विषाद, दैन्य, व्याधि, जड़ता, उन्माद, अपस्मार, त्रास, आलस्य, मरण, स्तम्भ, वेपथु, वेवर्ण्य, अश्रु, स्वरभेद आदि की व्यभिचारी या संचारी भाव के रूप में परिगणित किया है।
- अपने प्रिय जनों के बिछड़ जाने या किसी ऐसे प्रिय वस्तु का अनिष्ट हो जाने पर व्यक्ति में शोक का भाव जागृत होता है। उस भाव को करुण रस कहते हैं।
- शास्त्र के अनुसार शोक नामक स्थाई भाव अपने अनुकूल विभाव अनुभाव एवं संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आस्वाद रूप धारण करता है तब इसकी परिणीति करुण रस में होती है।
विभाव :-
प्रिय जन का वियोग ,बंधु ,विवश ,पराधव ,दरिद्रता ,प्रिय व्यक्ति की वस्तुएं ,इस्ट जन – विप्रयोग ,वध ,बंधन ,संकट पूर्ण परिस्थितियां।
संचारी भाव
गिलानी ,मरण ,निर्वेद ,स्नेह ,स्मृति ,घृणा ,उत्कर्ष ,उत्सुकता ,चिंता ,उन्माद ,चिंता ,आशा – निराशा ,
मोह ,आवेग आदि।
अनुभाव –
छटपटाना ,छाती पीटना , दुखी की सहायता करना ,मूर्छा ,रंग उड़ना ,विलाप करना ,चित्कार करना, आंसू बहाना ,रोना आदि ।
उदाहरण –
मुख मुखाहि लोचन स्रवहि सोक न हृदय समाइ।
मनहूँ करुन रस कटकई उत्तरी अवध बजाइ॥ (तुलसीदास)
करुणे, क्यों रोती है? उत्तर में और अधिक तू रोई।
मेरी विभूति है जो, उसको भवभूति क्यों कहे कोई? (मैथिलीशरण गुप्त)
राम राम कही राम कही राम राम कही राम ,
तनु परिहरि रघुवर बिरह राउ गयऊ सुरधाम। “
प्रस्तुत पंक्ति रामचरित्र मानस से लिया गया है।
अपने पुत्र राम के वन गमन के उपरांत राजा दशरथ पुत्र वियोग में सब कुछ भूल चुके हैं। वह केवल राम – राम की जाप कर रहे हैं। राम-राम की जाप करते हुए अंततः उन्होंने प्राण त्याग दिए। यह दृश्य राम चरित्र मानस में करुण रस की प्रबल प्रस्तुति करता है। दर्शक इस दृश्य को देखकर अपने अश्रु बहाने पर विवश हो जाता है।