Trending
- मैथिलीशरण गुप्त का जयद्रथ वध
- भारतेन्दु-युग में निबन्ध-साहित्य
- अनुच्छेद लेखन
- भट्टकेदार मधुकर कवि का साहित्यिक परिचय
- जगनिक का साहित्यिक परिचय
- हिन्दी व्याकरण: एकार्थक शब्द
- श्रीकांत वर्मा का साहित्यिक परिचय
- रघुवीर सहाय -अपने समय के आर-पार देखता कवि
- हिंदी व्याकरण की परिभाषा,कार्य व विशेषताएं
- कबीरदास जी का साहित्यिक परिचय
Browsing Tag
रस के प्रकार
श्रृंगार रस
श्रृंगार रस
श्रृंगार दो शब्दों के योग से बना है श्रृंग + आर।
श्रृंग का अर्थ है काम की वृद्धि , तथा आर का अर्थ है प्राप्ति।
अर्थात जो काम अथवा प्रेम की वृद्धि करें वह श्रृंगार है।
श्रृंगार का स्थाई भाव दांपत्य रति /!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
रौद्र रस
रौद्र रस
भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है, यथा-‘तेषामुत्पत्तिहेतवच्क्षत्वारो रसा: शृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’।
रौद्र से करुण!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
करुण रस
करुण रस
भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित आठ नाट्यरसों में शृंगार और हास्य के अनन्तर तथा रौद्र से पूर्व करुण रस की गणना की गई ।
‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पत्ति 'रौद्र रस' से मानी गई है और उसकी उत्पत्ति!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
वीर रस
वीर रस
शृंगार, रौद्र तथा वीभत्स के साथ वीररस को भी भरत मुनि ने मूल रसों में परिगणित किया है।
वीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्ति बतलाई गई है।
वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा देवता इन्द्र कहे गये हैं।
यह उत्तम प्रकृति!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
अद्भुत रस
अद्भुत रस
अद्भुत रस के भरतमुनि ने दो भेद इए हैं- दिव्य तथा आनन्दज ।
वैष्णव आचार्य इसके दृष्ट, श्रुत, संकीर्तित तथा अनुमित नामक भेद करते हैं।
अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है।
विस्मय का साधारण रूप आश्चर्य से!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
वीभत्स रस
वीभत्स रस
बीभत्स भरत तथा धनञ्जय के अनुसार शुद्ध, क्षोभन तथा उद्वेगी नाम से तीन प्रकार का होता है।
वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है।
वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है।
यह भाव आलंबन ,!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
भयानक रस
भयानक रस
भयानक कारणभेद से व्याजजन्य या भ्रमजनित, अपराधजन्य या काल्पनिक तथा वित्रासितक या वास्तविक नाम से तीन प्रकार का और स्वनिष्ठ परनिष्ठ भेद से दो प्रकार का माना जाता है।
भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण!-->!-->!-->!-->!-->!-->…