हास्य रस
- हास्य रस का स्थाई भाव हास है।
- यह मनोरंजन के उद्देश्यों की पूर्ति करता है।
- हास्य रस की प्रस्तुति में विभाव , अनुभाव , संचारी तथा अन्य भाव आस्वाद रूप में प्रकट होते हैं।
- हास्य नायक के भाव – भंगिमावों तथा उसके वेशभूषा अथवा परिधानों के माध्यम से भी प्रकट अथवा निष्पत्ति होती है।

उदाहरण –
सीस पर गंगा हँसे, भुजनि भुजंगा हँसैं,
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में। पद्माकर
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता॥ (काका हाथरसी)
विद्वानों के अनुसार सहृदय सामाजिक व्यक्ति को उदात रूप में हास्य का अधिक आनंद अनुभव होता है। माना जाता है हास का वेग जितना तीव्र होगा उतना अधिक हास्य रस होगा।
हास्य रस के प्रकार
हास्य रस दो प्रकार के हैं १ आत्मस्थ २ परस्य
1 आत्मस्थ –
इसके अंतर्गत व्यक्ति स्वयं हास्य उत्पन्न करता है , इसके लिए किसी अन्य माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। कुछ संयोग या ऐसी परिस्थितियां बनती है जब स्वयं ही मुख मंडल पर हास्य की आभा उत्पन्न होती है।
2 परस्य –
इसके अंतर्गत व्यक्ति को हास्य उत्पन्न करने के लिए दूसरे व्यक्ति की अथवा नायक की आवश्यकता होती है। नायक के भाव – भंगिमाओ द्वारा किए गए क्रियाकलापों अथवा उसके वेशभूषा या परिधान के माध्यम से हास्य उत्पन्न होता है। कई बार खेल खेलते समय नायक उल्टे कपड़े या फिर शरीर की कुछ ऐसी क्रिया करता है , जिससे दर्शक अथवा पाठक में हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
खेल – खेल में नायक कुछ ऐसी मूर्खतापूर्ण कार्य करता है , जिसे दर्शक देखकर आनंदित होता है अथवा हंसता है।
आलम्बन
हास्य के आलंबनो की कोई सीमा नहीं होती , अर्थात हास्य कभी भी प्रकट हो सकता है। यह प्रायोजित अथवा अप्रायोजित भी होते हैं।
उद्दीपन
हास्य से पूर्ण परिस्थितियां तथा उसको उत्पन्न करने की क्रियाकलाप ही उद्दीपन का विषय बनती है।
अनुभाव
अनुभाव के अंतर्गत आंखों का मूंदना , मुंह बनाना , संकेत करना , आंखें खिल उठना , हंसना , हंसते – हंसते लोटपोट हो जाना , व्यंग्य कसना , ताली पीटना , हाथ मारना , नाक – कान – गला आदि का स्पंदन। रोमांस आदि सात्विक अनुभाव के अंतर्गत आते हैं।
संचारी भाव
संचारी भाव के अंतर्गत – घृणा , हास – परिहास , स्नेह , अर्थ , मति , स्मृति , विषमय , उत्साह , अमर्ष , गर्व , जड़ता , चपलता , शंका , हर्ष आदि सभी भाव संचारी भाव के अंतर्गत गिने गए हैं।
हास्य रस के उदाहरण
पत्नी खटिया पर पड़ी व्याकुल घर के लोग।
व्याकुलता के कारण , समझ ना पाए रोग।
समझ ना पाए रोग , तब एक वैद्य बुलाया।
इसको माता निकली है , उसने यह समझाया।
यह काका कविराय सुने , मेरे भाग्य विधाता।
हमने समझी थी पत्नी , यह तो निकली माता।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि हाथरस जी ने अपनी पत्नी के रोग पर भी हास्य उत्पन्न किया है। उनके कुछ शब्दों के चमत्कार के कारण यह हास्य उत्पन्न हुआ है।
बिहसि लखन बोले मृदु बानी ,अहो मुनीषु महाभर यानी।
पुनी पुनी मोहि देखात कुहारू , चाहत उड़ावन फुंकी पहारु।
प्रस्तुत पंक्ति राम चरित्र मानस के सीता स्वयंवर प्रसंग से लिया गया है।
इसमें लक्ष्मण और परशुराम का संवाद है जो , बेहद ही हास्यास्पद है। लक्ष्मण किस प्रकार परशुराम के क्रोध को भड़का रहे थे और उनका मजाक बना रहे थे। इसमें वहां दरबार के सभी लोग हास्य रस का आनंद ले रहे थे। यह प्रसंग आज भी लोगों के मन में हास उत्पन्न करता है।
मैं ऐसा महावीर हूं,
पापड़ तोड़ सकता हूँ।
अगर गुस्सा आ जाए,
तो कागज को मरोड़ सकता हूँ।।