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हिंदी साहित्य का भक्तिकाल

भक्ति काल अपना एक अहम और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिकाल के बाद आये इस युग को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। जिसकी समयावधि संवत् 1343ई से संवत् 1643ई तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य(साहित्यिक दो प्रकार के हैं- धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य) का श्रेष्ठ युग है। जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी में प्राप्त होती हैं।

कबीर : कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) सं. श्याम सुन्दर दास

कबीर : कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) सं. श्याम सुन्दर दास कबीर : कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) सं. श्याम सुन्दर दासगुरुदेव को अंगकबीर की साखी: गुरुदेव कौ अंग वस्तुनिष्ठ प्रश्न सुमिरन को अंगकबीर की साखियां //सुमिरन को अंग // साखी 1 से

अष्टछाप के कवि

आठों ब्रजभूमि के निवासी थे और श्रीनाथजी के समक्ष गान रचकर गाया करते थे। उनके गीतों के संग्रह को "अष्टछाप" कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ आठ मुद्रायें है। उन्होने ब्रजभाषा में श्रीकृष्ण विषयक भक्तिरसपूर्ण कविताएँ रचीं। उनके बाद सभी कृष्ण

संत काव्य

ज्ञानाश्रयी शाखा/संत काव्य:- संत काव्य के प्रतिनिधि कवि कबीर है 'संत काव्य' का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया काव्य। लेकिन जब हिन्दी में 'संत काव्य' कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के

राम भक्ति काव्य धारा

हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल राम भक्ति काव्य धारारामाश्रयी शाखा/राम भक्ति काव्य:-राम भक्ति काव्य की विशेषताएँ :राम भक्ति काव्य और उनके रचनाकार रामाश्रयी शाखा/राम भक्ति काव्य:- राम भक्ति काव्य के प्रतिनिधि कवि तुलसी दास हैं।

भक्तिकाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

भक्तिकाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँतुलसीदास की पंक्तियाँकबीरदास की पंक्तियाँमलिक मुहम्मद जायसी  की पंक्तियाँसूरदास की पंक्तियाँरहीमदास की पंक्तियाँमीराबाई की पंक्तियाँरैदास की पंक्तियाँरसखान की पंक्तियाँउसमान की पंक्तियाँदादू की पंक्तियाँअन्य

हिंदी साहित्य का भक्तिकाल

हिंदी साहित्य का भक्तिकाल के बारे में रामचन्द्र शुक्ल के मत, 'देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए वह अवकाश न रह गया। उसके सामने ही उनके देव मंदिर गिराए जाते थे, देव मूर्तियाँ

श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि

श्री वल्लभाचार्यजी वैष्णव धर्म के प्रधान प्रवर्त्तकों में से थे। ये वेदशास्त्र में पारंगत धुरंधर विद्वान् थे। वल्लभाचार्य ने सगुण रूप को ही असली पारमार्थिक रूप बताया और निर्गुण को उसका अंशतः तिरोहित रूप कहा। श्री वल्लभाचार्य जी :

विविध भक्ति सम्प्रदाय

विविध भक्ति सम्प्रदाय हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल 1. अद्वैत सम्प्रदाय (विशिष्टावाद)  -शंकराचार्य2. श्री सम्प्रदाय (विशिष्टाद्वैतवाद) -रामानुजाचार्य3. ब्रह्म सम्प्रदाय (द्वैत वाद) -मध्वाचार्य4. हंस सम्प्रदाय (सनकादि सम्प्रदाय,

प्रगतिवाद पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रगतिवाद पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न हिन्दी वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1 प्रगतिवादी साहित्य में निहित है1 मार्क्सवादी दर्शन2 सामाजिक चेतना3 भावबोध4 सभी ★ 2 प्रगतिवाद के मार्क्सवाद समान रूसी व पश्चिमी दर्शन है1 साम्यवाद2 कम्युनिज्म3 दोनो ★4 दोनों

भक्ति काल के विविध तथ्य

भक्ति काल के विविध तथ्य हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल भक्ति काल को 'हिन्दी साहित्य का स्वर्ण काल' कहा जाता है।भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जार्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया। वे ही 'ईसायत की देन' मानते हैं।ताराचंद के अनुसार