भक्तिकाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ
तुलसीदास की पंक्तियाँ
- हऊं तो चाकर राम के पटौ लिखौ दरबार,/अब का तुलसी होहिंगे नर के मनसबदार। -तुलसीदास
- एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास।/एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास। -तुलसीदास
- बंदऊ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।/महामोह तम पुंज जासु वचन रविकर निकर।। -तुलसीदास
- मूक होई वाचाल, पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।/जासु कृपा सो दयाल द्रवउ सकल कली मल दहन।। -तुलसीदास
- सिया राममय सब जग जानी, करऊं प्रणाम जोरि जुग पानि। -तुलसीदास
- राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन छोटो ?/राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो। -तुलसीदास
- ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब है तारन के अधिकारी। -तुलसीदास
- सुगम अगम मृदु मंजु कठोरे,/अरथ अमित अति आखर धोरे (तुलसी के अनुसार कविता की परिभाषा)
- गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग। (कवितावली) –तुलसी
- रचि महेश निज मानस राखा/पाई सुसमय शिवासन भाखा-तुलसीदास
- मंगल भवन अमंगल हारी/द्रवहु सुदशरथ अजिर बिहारी-तुलसीदास
- ज्यों स्वतंत्र होई त्यों बिगड़हिं नारी–तुलसीदास
- बहुरि वदन विधु अँचल ढाँकी, पिय तन चितै भौंह करि बांकी खंजन मंजु तिरीछे नैननि, निज पति कहेउं तिनहहिं सिय सैननि। -तुलसीदास
- (ग्रामीण स्त्रियों द्वारा राम से संबंध के प्रश्न पूछने पर सीता का आंगिक लक्षणों से जवाब)
- हे खग हे मृग मधुकर श्रेणी क्या तूने देखी सीता मृगनयनी-तुलसीदास
- पूजिये विप्र शील गुण हीना, शूद्र न गुण गन ज्ञान प्रवीना-तुलसीदास
- छिति, जल, पावक, गगन, समीरा/पंचरचित यह अधम शरीरा।-तुलसीदास
- कत विधि सृजी नारी जग माहीं, पराधीन सपनेहु सुख नाहीं-तुलसीदास
- अखिल विश्व यह मोर उपाया/सब पर मोहि बराबर माया।-तुलसीदास
- काह कहौं छवि आजुकि भले बने हो नाथ।/तुलसी मस्तक तव नवै धरो धनुष शर हाथ।।-तुलसीदास
- सब मम प्रिय सब मम उपजाये/सबते अधिक मनुज मोहिं भावे-तुलसीदास
- मेरी न जात-पाँत, न चहौ काहू की जात-पाँत–तुलसीदास
- बड़ा भाग मानुष तन पावा,/सुर दुर्लभ सब ग्रंथहिं गावा –तुलसीदास
- जनकसुता, जगजननि जानकी।/अतिसय प्रिय करुणानिधान की।-तुलसीदास
- सब ते भले विमूढ़ जन, जिन्हें न व्यापै जगत गति–तुलसीदास
- संत हृदय नवनीत समाना-तुलसी
- निर्गुण रूप सुलभ अति, सगुन जान नहिं कोई।
गम अगम नाना चरित, सुनि मुनि-मन भ्रम होई।।-तुलसी - स्याम गौर किमि कहौं बखानी।/गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।-तुलसी
- साखी सबद दोहरा, कहि कहिनी उपखान।/भगति निरूपहिं निंदहि बेद पुरान।।-तुलसीदास
- माता पिता जग जाइ तज्यो/विधिहू न लिख्यो कछु भाल भलाई-तुलसीदास
- तजिए ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।-तुलसीदास
- जब जब होइ धरम की हानि। बढ़हिं असुर महा अभिमानी।।
तब तब धरि प्रभु मनुज सरीरा। हरहिं सकल सज्जन भवपीरा।।-तुलसीदास - भक्तिहिं ज्ञानहिं नहिं कछु भेदा-तुलसी
- अब लौ नसानो अब न नसैहों [अब तक का जीवन नाश (बर्बाद) किया। आगे न करूँगा।]-तुलसी
- केसव कहि न जाइ का कहिए।/देखत तब रचना विचित्र अति, समुझि मनहि मन रहिए।
(‘विनय पत्रिका’) -तुलसीदास
कबीरदास की पंक्तियाँ
- आँखड़ियाँ झाँई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि/जीभड़ियाँ झाला पड़याँ, राम पुकारि पुकारि। -कबीर
- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाई।/बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताई।। -कबीर
- पाँड़े कौन कुमति तोंहि लागे, कसरे मुल्ला बाँग नेवाजा। -कबीर
- राम नांव ततसार है। -कबीर
- कबीर सुमिरण सार है और सकल जंजाल। -कबीर
- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोई।/ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई।। -कबीर
- साई के सब जीव है कीरी कुंजर दोय।/सब घाट साईयां सूनी सेज न कोय। -कबीर
- मैं राम का कुत्ता मोतिया मेरा नाम। -कबीर
- बड़े न हुजै गुनन बिन, बिरद बड़ाई पाय।/कहत धतूरे सो कनक, गहनो गढ़ो न जाय।।(बिरद = नाम, सो = सदृश, समान) -कबीर
- सुखिया सब संसार है खावे अरु सोवे,/दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै। -कबीर
- नारी नसावे तीन गुन, जो नर पासे होय।/भक्ति मुक्ति नित ध्यान में, पैठि सकै नहीं कोय।। -कबीर
- पांणी ही तैं हिम भया, हिम हवै गया बिलाई।/जो कुछ था सोई भया, अब कछु कहया न जाइ।। -कबीर
- एक जोति थैं सब उपजा, कौन ब्राह्मण कौन सूदा। -कबीर
- एक कहै तो है नहीं, दोइ कहै तो गारी।/है जैसा तैसा रहे कहे कबीर उचारि।। -कबीर
- सतगुरु है रंगरेज मन की चुनरी रंग डारी -कबीर
- संसकिरत (संस्कृत) है कूप जल भाषा बहता नीर -कबीर
- अवधु मेरा मन मतवारा।/गुड़ करि ज्ञान, ध्यान करि महुआ, पीवै पीवनहारा।। -कबीर
- पंडित मुल्ला जो कह दिया।/झाड़ि चले हम कुछ नहीं लिया।। -कबीर
- पंडित वाद वदन्ते झूठा -कबीर
- पठत-पठत किते दिन बीते गति एको नहीं जानि। -कबीर
- मैं कहता हूँ आँखिन देखी/तू कहता है कागद लेखी। -कबीर
- गंगा में नहाये कहो को नर तरिए।/मछिरी न तरि जाको पानी में घर है ।।-कबीर
- कंकड़ पाथड़ जोड़ि के मस्जिद लिये बनाय।/ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।। -कबीर
- जो तू बाभन बाभनि जाया तो आन बाट काहे न आया।/जो तू तुरक तुरकनि जाया तो भीतर खतना क्यों न कराया।। -कबीर
- हिन्दु तुरक का कर्ता एके, ता गति लखि न जाय। -कबीर
- हिन्दुअन की हिन्दुआइ देखी, तुरकन की तुरकाइ/अरे इन दोऊ कहीं राह न पाई। -कबीर
- जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।/मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।। -कबीर
- झिलमिल झगरा झूलते बाकी रहु न काहु।/गोरख अटके कालपुर कौन कहावे साधु।। -कबीर
- दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना, राम नाम का मरम है आना -कबीर
- शूरा सोइ (सती) सराहिए जो लड़े धनी के हेत।
- पुर्जा-पुर्जा कटि पड़ै तौ ना छाड़े खेत।। -कबीर
- आगा जो लागा नीर में कादो जरिया झारि।
- उत्तर दक्षिण के पंडिता, मुए विचारि विचारि।। -कबीर
- जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अती सांकरी, ता में दो न समाहि।।-कबीर - हाड़ जरै ज्यों लाकड़ी, केस जरै ज्यों घास।
सब जग जलता देख, भया कबीर उदास।।-कबीर - मुझको क्या तू ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास रे।-कबीर
- सो जागी जाके मन में मुद्रा/रात-दिवस ना करई निद्रा-कबीर
- काहे री नलिनी तू कुम्हलानी/तेरे ही नालि सरोवर पानी।-कबीर
- नैया बिच नदिया डूबति जाय–कबीर
- अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे-कबीर
- रामझरोखे बैठ के जग का मुजरा देख–कबीर
मलिक मुहम्मद जायसी की पंक्तियाँ
- तीरथ बरत न करौ अंदेशा। तुम्हारे चरण कमल मतेसा।।
- जह तह जाओ तुम्हारी पूजा। तुमसा देव और नहीं दूजा।। -जायसी
- रवि ससि नखत दियहि ओहि जोती,/रतन पदारथ माणिक मोती।
- जहँ तहँ विहसि सुभावहि हँसी।/तहँ जहँ छिटकी जोति परगसी।। -जायसी
- बसहि पक्षी बोलहि बहुभाखा,/करहि हुलास देखिके शाखा। -जायसी
- तन चितउर, मन राजा कीन्हा।/हिय सिंघल, बुधि पदमिनी चीन्हा।।
- गुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा।/बिनु गुरु जगत को निरगुण पावा।।
- नागमती यह दुनिया धंधा।/बांचा सोई न एहि चित्त बंधा।।
- राघव दूत सोई सैतान।/माया अलाउदी सुल्तान।।-जायसी
- जहाँ न राति न दिवस है,जहाँ न पौन न घरानि।
- तेहि वन होई सुअरा बसा,को रे मिलावे आनि।। -जायसी
- मानुस प्रेम भएउँ बैकुंठी,नाहि त काह छार भरि मूठि। -जायसी
- (प्रेम ही मनुष्य के जीवन का चरम मूल्य है, जिसे पाकर मनुष्य बैकुंठी हो जाता है, अन्यथा वह एक मुट्ठी राख नहीं तो और क्या है ?)
- छार उठाइ लीन्हि एक मूठी, दीन्हि उड़ाइ पिरिथमी झूठी। -जायसी
- पुख नछत्र सिर ऊपर आवा।/हौं बिनु नौंह मंदिर को छावा।
- बरिसै मघा झँकोरि झँकोरि। मोर दुइ नैन चुवहिं जसि ओरी। -जायसी
- पिउ सो कहहू संदेसड़ा हे भौंरा हे काग।/सो धनि बिरहें जरि मुई तेहिक धुँआ हम लाग।। -जायसी
सूरदास की पंक्तियाँ
- सोलह सहस्त्र पीर तनु एकै, राधा जीव सब देह। -सूरदास
- जसोदा हरि पालने झुलावे/सोवत जानि मौन है रहि करि-करि सैन बतावे
- इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमती मधुरै गावे। -सूरदास
- सिखवत चलत जसोदा मैया/अरबराय करि पानि गहावत डगमगाय धरनी धरि पैंया। – सूरदास
- मैया हौं न चरैहों गाय -सूरदास
- मैया री मोहिं माखन भावे -सूरदास
- मैया कबहि बढ़ेगी चोटी -सूरदास
- मैया मोहि दाउ बहुत खिझायौ –सूरदास
- नाहिन रहियो मन में ठौर/नंद नंदन अक्षत कैसे आनिअ उर और -सूरदास
- आयो घोष बड़ो व्यापारी।/लादि खेप गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आय उतारी। -सूरदास
- मो सम कौन कुटिल खल कामी-सूरदास
- भरोसो दृढ इन चरनन केरो–सूरदास
- हरि है राजनीति पढ़ि आए–सूरदास
- प्रभुजी मोरे अवगुन चित्त न धरो–सूर
- प्रेम प्रेम ते होय प्रेम ते पारहिं पइए–सूर
- अति मलीन वृषभानु कुमारी।/छूटे चिहुर वदन कुभिलाने, ज्यों नलिनी हिमकर की मारी।-सूरदास
रहीमदास की पंक्तियाँ
सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय।
गोद लिए हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय।।-रहीम
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे मांहि।
ज्यों रहीम नटकुंडली, सिमिट कूदि चलि जांहि।।-रहीम
तब लग ही जीबो भला देबौ होय न धीम।
जन में रहिबो कुँचित गति उचित न होय रहीम।।-रहीम
मीराबाई की पंक्तियाँ
- तलफत रहित मीन चातक ज्यों,
- जल बिनु तृषानु छीजे अँखियां हरि दर्शन की भूखी।
- हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दरद न जाने कोई। -मीरा
- सास कहे ननद खिजाये राणा रहयो रिसाय
पहरा राखियो, चौकी बिठायो, तालो दियो जराय।-मीरा - संतन ठीग बैठि-बैठि लोक लाज खोई–मीरा
- अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोई।
सावन माँ उमग्यो हियरा भणक सुण्या हरि आवण री।-मीरा - घायल की गति घायल जानै और न जानै कोई।-मीरा
- बसो मेरे नैनन में नंदलाल
मोहनि मूरत, साँवरि सूरत, नैना बने रसाल-मीरा
रैदास की पंक्तियाँ
- प्रभुजी तुम चंदन हम पानी। -रैदास
- जात भी ओछी, करम भी ओछा, ओछा करब करम हमारा।
- नीचे से फिर ऊंचा कीन्ह, कह रैदास खलास चमारा।। रैदास
रसखान की पंक्तियाँ
- या लकुटि अरु कंवरिया पर/राज तिहु पुर को तजि डारो-रसखान
- काग के भाग को का कहिये,हरि हाथ सो ले गयो माखन रोटी-रसखान
- मानुस हौं तो वही रसखान बसो संग गोकुल गांव के ग्वारन-रसखान
- मोर पंखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढि पिताबंर लै लकुटी बन गोधन ग्वालन संग फिरौंगी।
भावतो सोई मेरो रसखानि सो तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।- रसखान - सेस महेस गनेस दिनेस, सुरेसहुँ जाहि निरंतर गावैं।
जाहिं अनादि अनन्त अखंड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं।।-रसखान
उसमान की पंक्तियाँ
- गुपुत रहहु, कोऊ लखय न पावे, परगट भये कछु हाथ न आवे।
- गुपुत रहे तेई जाई पहूंचे, परगट नीचे गए विगुचे।। -उसमान
- पहले प्रीत गुरु से कीजै, प्रेम बाट में तब पग दीजै। -उसमान
- बलंदीप देखा अँगरेजा, तहाँ जाई जेहि कठिन करेजा-उसमान
दादू की पंक्तियाँ
- निर्गुण ब्रह्म को कियो समाधु
तब ही चले कबीरा साधु।-दादू - अपना मस्तक काटिकै बीर हुआ कबीर-दादू
अन्य भक्तिकालीन कवियों की पंक्तियाँ
- संतन को कहा सीकरी सो काम ?/आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरिनाम।
- जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम। -कुंभनदास
- सुन रे मानुष भाई,
सबार ऊपर मानुष सत्य
ताहार ऊपर किछु नाई।-चण्डी दास - बहिं नचावत राम ग़ोसाई
मोहि नचावत तुलसी गोसाई-फादर कामिल बुल्के
धुनि ग्रमे उत्पन्नो, दादू योगेंद्रा महामुनि-रज्जब - पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना हो सो लेउ-विट्ठलदास
- अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।-मलूकदास - विक्रम धँसा प्रेम का बारा, सपनावती कहँ गयऊ पतारा।-मंझन
- कब घर में बैठे रहे, नाहिंन हाट बाजार
मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार।-बनारसी दास - रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई
कुलवंती सत सो सति भई–कुतबन - जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा।
हिंदु मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ।।
(‘अनुराग बाँसुरी’) -नूर मुहम्मद - यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट।
आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट।।-चरनदास - मो मन गिरिधर छवि पै अटक्यो/ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गड़ि ठटक्यो-कृष्णदास
- कहा करौ बैकुंठहि जाय
जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोदा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय-परमानंद दास - लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल–होलराय
- कलि कुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो-नाभादास
- जांति-पांति पूछै नहीं कोई, हरि को भजै सो हरि का होई। -रामानंद
- बहु बीती थोरी रही, सोऊ बीती जाय।
हित ध्रुव बेगि विचारि कै बसि बृंदावन आय।।-ध्रुवदास