निर्गुण काव्य धारा या सूफी काव्य ( प्रेममार्गी शाखा)

सूफी काव्य : भक्तिकाल के निर्गुण संत काव्य के अंतर्गत सूफी काव्य को प्रेममार्गी सूफी शाखा’के नाम से संबोधित किया है। अन्य नामों में प्रेमाख्यान काव्य, प्रेम काव्य, आदि प्रमुख है। इस काव्य परम्परा को सूफी संतो की देन माना जाता है।

सूफी शब्द की उत्पत्ति

सूफी शब्द की उत्पत्ति के संबंध में ‘सूफ’ को सफ शब्द से निकला हुआ मानते हैं. जिसका अर्थ है, जो अग्रिम पंक्ति में खड़े होंगे, वे सूफी होंगे।

  • कुछ एक विद्वान मदीना की मस्जिद के समक्ष सुफ्फा-चबुतरे पर बैठने वाले फकीरों को सूफी कहते है।
  • सूफी शब्दों को सोफिया का रुपान्तर माना गया है।
  • कुछ विद्वानों ने सूफी शब्द का संबंध सफा से जोड़ा है जिसका अर्थ पवित्र और शद्धता है।
  • कुछ ने संगति के आधार पर सूफी शब्द का संबंध सूफ अर्थात ‘उन’ कपड़े से माना गया है।

सूफी काव्य के प्रवर्तक

आचार्य शुक्ल ने भक्तिकालीन हिन्दी की इस प्रेमाख्यान परम्परा को फारसी- मसन वियों से प्रेरित माना है। इस काव्य धारा के प्रमुख प्रवर्तक मलिक मुहम्मद जायसी है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे ‘प्रेममार्गी सूफी शाखा‘ इस नाम से संबोधित किया है।

सूफी काव्य के प्रमुख कवि

सूफी कवियों ने प्रेम कथाओं के लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक ईश्वर भक्ति की है। भक्ति कालीन निर्गुण सूफी कवियों में जायसी, कुतुबन, मंझन, शेख नबी, कासिम शाह, नूर मुहम्मद आदि प्रमुख कवियों ने ‘प्रेममार्गी काव्य’ को विकसित करने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है। यहाँ सभी प्रमुख सूफी कवियों का परिचय दिया जा रहा है।

कुतुबन

कुतुबन का अविर्भाव समय सन् १४९३ ई. था। वे शेख बुरहान के शिष्य थे। उन्होंने ‘मृगावती’ प्रेमाख्यान की रचना की। इसमें चंद्रनगर का राजकुमार और कंचन पुर की ‘मृगावती’ की प्रेम कथा वर्णित है। कवि ‘मंझन’ ने सन् १५४५ ई. में ‘मधुमालती’ लिखा है। इसमें कनेसर नगर के राजकुमार और महारसनगर की राजकुमारी ‘मधुमालती’ की प्रेम कथा है।

उसमान

कवि ‘उसमान’ जहाँगीर कालीन कवि थे। हाजी बाबा इनके गुरू थे। उन्होंने ‘चित्रावली’ नामक प्रेमाख्यान लिखा है। इसमें नेपाल राजकुमार सुजान और रुपनगर की राजकुमारी चित्रावती की प्रेमकथा वर्णित है।

कवि शेख नबी

कवि शेख नबी ने सन् १६१९ ई. में ‘ज्ञानद्वीप’ की रचना की थी। इसमें राजकुमार ज्ञानद्वीप और राजकुमारी देवयानी की प्रेम कथा चित्रित है। कवि ‘मुल्लाबजही’ ने सन् १६०९ ई. में ‘कुत्व मुश्तरी’ प्रेमाख्यान काव्य है। इसमें गोलकुण्डा के राजपुत्र मुहम्मद कुली कुत्बशाह और बंगाल की सुंदरी मुश्तरी की प्रेम-कथा वर्णित है।

नुस्त्रती

कवि ‘नुस्त्रती ने सन् १६५८ ई. को ‘गुलशने इश्क’ प्रेमाख्यान काव्य लिखा। इसमें कनकगिरि के राजकुमार मनहर और धर्मराज की पुत्री मदभालती की प्रेमकथा वर्णित है।

मुकीमी

कवि ‘मुकीमी’ ने ‘चन्दरबदन व महयार’ प्रेमाख्यान लिखा। इसमें सुन्दरपटन के हिन्दू राजा की पुत्री ‘चन्दरबदन’ और मुस्लिम व्यापारी पुत्र महरयार की दुःखान्त प्रेम कहानी है।

मीराहाशमी

कवि ‘मीराहाशमी’ ने सन् १६८८ ई. में ‘युसूफ-जुलेखा’ प्रेमाख्यान लिखा। इन प्रेमाख्यानों के अलावा सूफि सन्तों ने दोहों, गज़लों, स्फुट पदों, की रचनाएँ प्राप्त होती।

सूफी प्रेम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ एवं विशेषताएँ

काव्य प्रेरणा एवं प्रयोजन प्रेममार्गी शाखा के सूफी काव्यधारा के कवियों ने सूफी मत का प्रचार प्रसार अपनी काव्य की रचना के माध्यम से करने का प्रयास किया है । इनका काव्य-प्रयोजन यश प्राप्ति, काव्य कला का प्रदर्शन और युवाओं का मनोरंजन रहा है । इन कवियों ने भारतीय शास्त्रों का आधार लेकर रचनाओं का निर्माण किया है। कथावस्तु प्रेमाख्यानों में चार स्त्रोतोंसे प्राप्त सामग्री का कथावस्तु के रुप में उपयोग किया है।

1) महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण आदि ।

2) प्राकृत – संस्कृत के परम्परागत कथानक

3) उदयन, विक्रम, रत्नसेन आदि ऐतिहासिक पात्रों की गाथाएँ ।

4) लोक प्रचलित प्रेमकथाएँ इन में कल्पना शक्ति का प्रयोग भी किया है ।

अतः इनका आधार भारतीय साहित्य को मानना चाहिए।

सूफी प्रेम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ एवं विशेषताएँ निम्न प्रकार है

प्रबन्ध कल्पना

सूफी कवियों ने लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना की है। इन की यह प्रेम कहानियाँ प्रबन्ध काव्य की कोटि में आती है। इन कवियों का उद्देश कोरी प्रेम कहानी न होकर प्रेमतत्व का निरुपण करना तथा उसका महत्व निर्धारित करना है। सूफी कवियों ने अपने प्रेम पात्र के सौंदर्य को ज्योतिमय पुंज के रुप में चित्रित किया है, कि प्रत्येक जीव उसकी ओर आकर्षित होकर अपना सर्वस्व उस पर न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाता है। इस काव्य की प्रेमिकाएँ और प्रेमी पथ पर आनेवाली बाधाओंको पारकर सिध्दिपथ पर चढते जाते हैं। इन कथाओं में पक्षियों, देवों, और अप्सराओं का उल्लेख किया गया है। प्रबन्ध काव्योचित वस्तु एवं घटना वर्णन में जो प्रवाह गति अपेक्षित है, प्रायः इन काव्यों में उसका अभाव है।

कथावस्तु के वस्तु वर्णन में सब ने प्रबन्ध रुढियों की शरण ली है। प्रेमाख्यानों प्रायः सर्वत्र समुद्र, तूफान, फुलवारियाँ, वन और मकान जैसे हैं । इन काव्यों की क्रम योजना प्रायः एक जैसी है । सर्वप्रथम मंगलाचरण में ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता का वर्णन, तत्पश्चात हजरत मुहम्मद और उनके सहयोगियों की प्रशंसा की जाती है। संप्रदाय के उल्लेख के बाद कथारंभ रागासक्ति और नायक-नायिका की प्राप्ति के लिए सर्वस्व त्यागकर आँधी तुफान का सामना करने निकलता है। प्रेमी प्रेमिका के मिलन के पश्चात अधिकतर प्रेमाख्यानों का अन्त दुखान्त होता है। भाव पक्ष प्रेम मार्गी सूफी कवियों का मुख्य विषय प्रेम है । प्रेम के वियोग पक्ष को अधिक महत्व इन कवियों ने दिया है । जितना ध्यान प्रेमी और प्रेमिकाओं के वियोग, उसकी अवधि में झेले जानेवाले कष्टों तथा उनका अन्त करने के लिए किए गये विविध प्रयत्नों को वर्णन करने में दिया है उतना उनके अन्तिम मिलन पर नहीं दिया गया । इन्होंने बारह-मास को महत्व दिया है और भारतीय पद्धति का व्यवहार किया है।

  हठयोग का प्रभाव इन पर स्पष्ट ही है । इनके श्रृंगार का नख-शिख वर्णन कामशास्त्र से प्रभावित है । उनकी प्रणय भावना फारसी से नहीं कर भारतीय श्रृंगार रस की परम्परा से आती है । काव्य रुप काव्य प्रकार की दृष्टी से सूफी काव्य भारतीय कथा काव्य परम्परा में आते है । इसकी पुष्टी अनेक लक्षणों से हो जाती है । अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं को कथा की संज्ञा दी है । जैसे दामोदर रचित लखनसेन पद्मावती कथा, ईश्वरदास-सत्यवती कथा, जानकवि- कथा रत्नावती, कथा कामलता, कथा कनकावती, व्यास-नल दमयंती कथा आदि ।

प्रायः सूफी कवियों ने प्रेम तत्व की व्याख्या करते हुए सौंदर्य के स्वरुप एवं प्रभाव पर बहुत कुछ कह डाला है। चरित्र-चित्रण सूफी काव्य के चरित्र-चित्रण में कोई वैविध्य नहीं है । इनके नायक प्रायः सामन्त या राजकुमार रहे है, और नायिकाएँ राजकुमारी के रुपमें दर्शायी गयी है जोकि संस्कृत साहित्य की नायिकाओं के समान एक ही ढाँचे में ढली हुई है ।

नायक का स्वरूप प्रायः पहले से ही निश्चित सा दृष्टि गोचर होता है। राजकुमारी अत्यन्त सुंदरी, रुपगर्विता दिखाई गई है। नायिकाएँ भारतीय परम्परा के अनुसार पतिव्रत धर्म का पालन करती हुई अन्त में सती हो जाती है। नायक का विरोध नायिका के पिता या संरक्षक द्वारा ही होता है। अन्य काल्पनिक पात्र है, उनका स्थान गौण है। कई स्थलों पर ऐतिहासिक चरित्रों का चित्रण प्रभावी हुआ है। इन सभी चरित्रों पर भारतीयता का गहरा प्रभाव है। लोक पक्ष एवं हिन्दू संस्कृति प्रेममार्गी सूफी कवियों ने लोक जीवन का सहज चित्रण किया है ।

जैसे – अन्ध विश्वास, मनौतियाँ, यंत्र-तंत्र प्रयोग, जादू टोना, डायनों की करतूते, विभिन्न लोकोत्सव, लोक व्यवहार, तीर्थ, व्रत सांस्कृतिक वातावरण बड़ी सफलता से अंकित किया गया है।प्रेम कायों के रचयिताओं ने हिन्दू घरानों की प्रेम कहानियाँ लेकर उनका तदनुरुप वर्णन किया है । सामान्यतः सभी सूफी कवियों को हिन्दू संस्कृति, परम्परा और धर्म का यथावत परिचय था । इस कारण हिन्दू धर्म के सिध्दांतों और आचार-विचार का सुंदर वर्णन किया है। हिन्दु चरित्रों में हिन्दु आदर्श की स्थापना की है । सूफी कवियों का नखशिख वर्णन भी संस्कृत के कामशास्त्रों के ग्रंथोपर आधारित है।

खण्डनात्मकता

संत कवियों ने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच धार्मिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया था किन्तु उन्हें उतनी सफलता नहीं मिली जितनी सूफी काव्यों को मिली है । संत कवियों में खण्डनात्मकता थी जिससे हिन्दू और मुसलमान दोनों क्रोधित होते थे । सूफी कवियों ने मात्र कुशलता से काम लिया। उन्हों ने दोनों का विरोध तथा विशेष खण्डन नहीं किया । इन कवियों ने दोनों को ईश्वर का समान रुप में दर्शन करा कर दोनों सम्प्रदाय के भेदभाव मिटाने का प्रयास किया । दोनों को मनुष्य के सामान्य रुप में दिखाया । सूफीयों ने दूरदर्शिता से काम लिया है । जिससे उन्हें दोनो धर्मों की ओर से उचित प्रतिसाद मिला है। भारत में मुसलमान धर्म के प्रचार और प्रसार में इसी मण्डनात्मक शैली के कारण उन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है।

नारी-चित्रण

सूफी काव्यों की यह बड़ी विशेषता हैं कि, उनमें प्रेम का प्रमुख स्थान नारी पात्र को ठहराया है। नारी को परमात्मा का प्रतीक माना हैं । वस्तुतः सूफी कवियों ने प्रेम साधना में नारी को सहायक रूप में स्वीकार किया है । फलस्वरुप यहाँ पर नारी साधकों की दृष्टि में स्वयं एक सिध्दि बनकर आती हैं। इसी कारण सूफी कवियों ने नारी साधकों को अनेक अलौकिक गुणों से युक्त बनाया है । सूफी कवियों ने नारी को कही स्वकिया तो कभी परकिया के रूप में चित्रित किया हैं । परंतु दोनों रूपों में वह पूज्य व साधिका है।

प्रतीक विधान

सूफी कवियों को लौकिक प्रेम कहानियों द्वारा अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना करते हुए अव्यक्त सत्ता का आभास देना यही उद्देश था । इस रसस्यात्मकता की अभिव्यक्ति के लिए सांकेतिक विधान या प्रतीकों का उपयोग करना अनिवार्य हो जाता है । यही कारण है कि, इन्होंने अपनी रचनाओं में प्रयुक्त कानिपत शब्दोंको सांकेतिक रुप दे दिया है । जहाँ ऐसा नहीं किया गया वहाँ उस रचना के अन्त में कथा के वास्तविक रहस्य को समझा दिया गया है । इसी उद्देश की पूर्ति करती हुई जायसी की पंक्ति “तन चितउर मन राउन कीन्हा’ दिखाई देती है । कहीं- कहीं पर इन्होंने प्रकृति के माध्यम से भी अव्यक्त सत्ता की सर्व व्यापकता का संकेत किया है। जैसे पद्मावत में “रवि ससि नखत्र दिपत ओहि जोती।” वस्तुतः सूफी कवियों में भावात्मक रहस्यवाद की मनोहारी सृष्टि हुई हैं।

विविध प्रभाव

सूफी मत पर चार प्रभाव विशिष्ट रूप से पडे हैं –

  • आर्यों का अद्वैतवाद तथा विशिष्ठा द्वैतवाद,
  • इस्लाम की गुह्य विद्या,
  • नव अफलातूनी मत तथा
  • विचार स्वातंत्र्य ।

इन पर शैली सूफी काव्य में कवियों में शैली की दृष्टि से अंतर है। जायसी की शैली में प्रौढ़ता एवं गंभीरता है किन्तु कुछ कवियों में अपरिपक्वता दृष्टिगोचर होती है। इनकी रचनाओं नें कथा तत्व की प्रधानता होने के कारण इन्हों ने इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है, कुछ कवियों ने अन्योक्ति, समासोक्ति, रुपक प्रतीक आदि के आयोजन द्वारा अपनी शैली में व्यंजना का वैभव संचारित कर दिया है। इन कवियों ने प्रबंध शैली के अतिरिक्त मुक्तक शैली का भी प्रयोग किया भाषा सूफी प्रेमाख्यानों की भाषा प्रायः सर्वत्र अवधी हैं । उसमान और नसीर पर भोजपुरी का प्रभाव है। नूर मुहम्मद ने कहीं-कहीं ब्रजभाषा का भी प्रयोग किया है । इन कवियों ने अवधि भाषा में तद्भव शब्दों का प्रयोग किया है, अवधि की लोकोक्तियाँ और मुहावरों का भी अच्छा प्रयोग किया है।

रस

इन प्रेमाख्यानों में प्रधानतः श्रृंगार रस की व्यंजना हुई है । सर्वप्रथम नायक नायिका की ओर आकर्षित होता है और विरह वेदना और कई संकटों का सामना करना पड़ता है। उद्दीपन विभाव के अंतर्गत सूफीयों ने सखा-सखी, वन, उपवन, ऋतु परिवर्तन तथा भारतीय साहित्य में वर्णित अन्य उपकरणों का उल्लेख किया है । नायक के साहसिक कार्य के समय वीर रस का भी प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं करुण, शांत एवं वीभत्स रसों की भी अभिव्यक्ति हुई है। छंद सूफीयों ने अपने प्रेमाख्यानों में अपभ्रंश के चरित काव्यों के समान दोहा-चौपाई शैली को अपनाया है । दोहा, चौपाईयाँ के अतिरिक्त सूफी कवियों ने सोरठे, सवैये, बरवै, कुण्डलियाँ और कविता आदि का भी प्रयोग किया हैं । कहीं-कहीं पर कुछेक कवि ने फारसी भाषा के बहर छंद की भी प्रयोग किया है।

अलंकार

सूफी कवियों ने प्रचलित परम्परा के अनुसार अलंकारों का प्रयोग किया हैं। फारसी साहित्य से प्रभावित रहने पर भी भारतीय क्षेत्र से उपमानादि का ग्रहण किया है। इन्होंने समासोंक्ति का प्रयोग बहुत सुंदर तरीके से किया हैं। सूफी कवियों में समासोक्ति के सबसे अधिक सफल प्रयोक्ता जायसी हैं। उपमा, उत्प्रेक्षा, रुपक और अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग इन कवियों ने किया है। सूफी प्रेम काव्य धारा मध्यकालीन हिन्दी साहित्य की व्यापक परम्परा मानी जा सकती हैं। मध्यकालीन संस्कृति एवं लोक जीवन के विविध पक्षों का सहज चित्रण इसमें हुआ है। उन्होंने प्रेम की पीडा के सुमधुर गीत गाएँ है। इन प्रेम कथाओं में विस्मय, दैवी एवं अलौकिक तत्व समान रुप से मिलते हैं। इनके काव्य में साहस और शौर्य का चित्रण हुआ है। इनमें भारतीय वातावरण का प्रभाव हैं। भारतीय श्रृंगार परम्पराओं का सभी ने पालन किया हैं। सबमें समान रुपसे कथानक रुढियों का प्रचलन रहा है। ऐतिहासिक और काल्पनिक प्रेम कथाओं की अपेक्षा लोकगाथाओं पर आधारित प्रेमकथाओं में लोक तत्व की मात्रा अधिक है।

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