मलिक मुहम्मद जायसी का साहित्यिक परिचय

मलिक मुहम्मद जायसी का साहित्यिक परिचय

मलिक मुहम्मद जायसी (१४६७-१५४२)

  •  हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं।
  • वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ीमहात्मा थे।
  • जायसी मलिक वंश के थे। मिस्रमें सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे।
  • मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे। फिरोज शाह तुगलक के अनुसार बारह हजार सेना के रिसालदार को मलिक कहा जाता था।
  • जायसी ने शेख बुरहान और सैयद अशरफ का अपने गुरुओं के रूप में उल्लेख किया है।
  • जायसी का जन्म सन 1467 ई़ के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे।
  • उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। यह भी इस बात को सूचित करता है कि वे जायस नगर के निवासी थे। इस संबंध में उनका स्वयं भी कहना है-
MALIK MUHHAMAD JAYSI


जायस नगर मोर अस्थानू।नगरक नांव आदि उदयानू।

तहां देवस दस पहुने आएऊं।भा वैराग बहुत सुख पाएऊं॥   

मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म

अंत:साक्ष्य के आधारपर जायसी का जन्म सन् १४९५ माना गया है, रायबरेली में जायस नगर में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज या मलिक राजे अशरफ था।

मलिक मुहम्मद जायसी की रचनाएँ

जायसी की २१ रचनाओं का उल्लेख मिलता है। पद्मावत, अखरावट और आखिरी कलाम ये तीन रचानाएँ प्रकाशित हो चुकी है। अन्य रचनाओं में चम्पावत, इरावत, सखरावत, मरकावत, चित्रावत, मोराई-नामा, मुकहरानामा, पौस्तीनामा, सुर्वानामा, नैनावत, कहरनामा, मेखरावटनामा, धनावत, सोरठ, परमार्थ जपनी और स्फुट छंद आदि का उल्लेख किया जाता है।

पद्मावत

उनकी ‘पद्मावत’ में रत्नसेन और पद्मावती की लौकिक प्रेम कहानी द्वारा अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना की गई है।

‘अखरावट’

‘अखरावट’ में वर्णमाला के एक एक अधार को लेकर सिद्धांत संबंधी तत्वों से भरी चौपाईयाँ कही गई हैं और साथ ही ईश्वर, सृष्टि, जीव, ईश्वर प्रेम आदि विषयों पर विचार प्रकट किए हैं।

‘आखिरी कलाम’

‘आखिरी कलाम’ में कयामत के वर्णन के साथ जायसी की अक्षय कीर्ति का आधार है।

“जायसी एक महान कवि है। उनमें कवि के सहज गुण विद्यमान है। उसने सामायिक समस्या के लिए प्रेम की पीर को देन दी। उसपीर को अपने शक्तिशाली महाकाव्य के द्वारा उपस्थित किया। वह अमर कवि है।”

बाबू गुलाबराय

जायसी ने अपनी रचनाओं में ठेठ अवधी के पूर्वीपन को अपनाया है। जायसी की भाषा प्रसाद और माधुर्यगुण से परिपूर्ण है।

जायसी ने अपनी रचनाओं में दोहा, चौपाई छंदों का प्रयोग कर अवधी भाषा में सफल प्रयोग किया है। अलंकारों में उपमा, रुपक, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति, अन्योक्ति, व्यतिरेक, विभावना, संदेह अनुप्रास, निदर्शना आदि का सफल प्रयोग किया है। नि:संदेह जायसी का साहित्य में विशेष स्थान है। बाबू गुलाबराय के शब्दों में –

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