हिंदी साहित्य का भक्तिकाल

हिंदी साहित्य का भक्तिकाल के बारे में रामचन्द्र शुक्ल के मत, ‘देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए वह अवकाश न रह गया। उसके सामने ही उनके देव मंदिर गिराए जाते थे, देव मूर्तियाँ तोड़ी जाती थीं और पूज्य पुरुषों का अपमान होता था और वे कुछ भी नहीं कर सकते थे और न बिना लज्जित हुए सुन ही सकते थे। ….. अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शरणागति में जाने के अलावा दूसरा मार्ग ही क्या था ?……

Hindi Sahity
  • भक्ति काल को  ‘हिन्दी साहित्य का स्वर्ण काल’ कहा जाता है।
  • भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जार्ज ग्रियर्सन ने ‘ईसायत की देन’  मत व्यक्त किया।

भक्ति काल का उदय ‘अरबों की देन’ है।

ताराचंद

भक्ति का जो सोता दक्षिण की ओर से धीरे-धीरे उत्तर भारत की ओर पहले से ही आ रहा था उसे राजनीतिक परिवर्तन के कारण शून्य पड़ते हुए जनता के हृदय क्षेत्र में फैलने के लिए पूरा स्थान मिला।’

रामचन्द्र शुक्ल

मैं तो जोर देकर कहना चाहता हूँ कि अगर इस्लाम नहीं आया होता तो भी इस साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज है।….. बौद्ध तत्ववाद जो निश्चित ही बौद्ध आचार्यों की चिंता की देन था, मध्ययुग के हिन्दी साहित्य के उस अंग पर अपना निश्चित पदचिह्न छोड़ गया है जिसे संत साहित्य नाम दिया गया है। ….. मैं जो कहना चाहता हूँ वह यह है कि बौद्ध धर्म क्रमशः लोक धर्म का रूप ग्रहण कर रहा था और उसका निश्चित चिह्न हम हिन्दी साहित्य में पाते हैं।

हजारी प्रसाद द्विवेदी

भक्ति आंदोलन का विस्तार

भक्ति आन्दोलन की शुरुआत दक्षिण में हुई। बाद में वैष्णव आचार्यों-रामानुज, निम्बार्क, माधव, विष्णु स्वामी-ने भक्ति को सैद्धांतिक आधार प्रदान किया गया। सैद्धांतिक विवेचन द्वारा पुष्टि की गई कि दक्षिण भारत में भक्ति की बहुत प्रगति हुई और दक्षिण से चली गई भक्ति की लहर 13वीं सदी ई0 में महाराष्ट्र की ओर चली गई। तदन्तर उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के सूत्रपात का श्रेय रामानन्द को है (‘भक्ति द्रविड़ उपजी, प्रचलित रामानन्द’)। दक्षिण में अलवर-नयनार वैष्णव आचार्य, महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय (ज्ञान, नामदेव, एकनाथ, तुका राम), उत्तर भारत में रामानंद, आचार्य, बंगाल में चैतन्य, असम में शंकरदेव (महापुरुषीय धर्म- एक शरण संप्रदाय), संप्रदाय में पंचसखा (बलरामदास, अनंतदास, यशोवंत दास, जगन्नाथ दास, अच्युतानंद) आदि इसी बात को प्रमाणित करते हैं।

भक्तिकाल की काव्यधारा

भक्ति काव्य की दो काव्य धाराएँ हैं-

  • निर्गुण काव्य-धारा व
  • सगुण काव्य-धारा।

निर्गुण काव्य-धारा

निर्गुण काव्य-धारा की दो शाखाएँ हैं-

  • ज्ञानाश्रयी शाखा/संत काव्य
  • प्रेमाश्रयी शाखा/सूफी काव्य

सगुण काव्य-धारा

सगुण काव्य-धारा की दो शाखाएँ हैं-

  • कृष्णाश्रयी शाखा/कृष्ण भक्ति काव्य
  • रामाश्रयी शाखा/राम भक्ति काव्य

भक्तिकाव्य पर रामचंद्र शुक्ल के कथन

‘जिस तरह के उन्मुक्त समाज की कल्पना अंग्रेज कवि शेली ने की है ठीक उसी तरह का उन्मुक्त समाज है गोपियों का।’-आचार्य शुक्ल

‘गोपियों का वियोग-वर्णन, वर्णन के लिए ही है उसमें परिस्थितियों का अनुरोध नहीं है। राधा या गोपियों के विरह में वह तीव्रता और गंभीरता नहीं है जो समुद्र पार अशोक वन में बैठी सीता के विरह में है।’-आचार्य शुक्ल

‘जिस प्रकार रामचरित का गान करने वाले भक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास जी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है उसी प्रकार कृष्णचरित गानेवाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास जी का। वास्तव में ये हिन्दी काव्यगगन के सूर्य और चंद्र है।’ -आचार्य शुक्ल

‘हिन्दी काव्य की सब प्रकार की रचना शैली के ऊपर गोस्वामी तुलसीदास ने अपना ऊँचा आसन प्रतिष्ठित किया है। यह उच्चता और किसी को प्राप्त नहीं।’ -रामचन्द्र शुक्ल

भक्तिकाव्य पर अन्य भाषाविद  के कथन

  • ‘बुद्ध के बाद तुलसी भारत के सबसे बड़े समन्वयकारी है’ -जार्ज ग्रियर्सन
  • ‘मानस (तुलसी) लोक से शास्त्र का, संस्कृत से भाषा (देश भाषा) का, सगुण से निर्गुण का, ज्ञान से भक्ति का, शैव से वैष्णव का, ब्राह्मण से शूद्र का, पंडित से मूर्ख का, गार्हस्थ से वैराग्य का समन्वय है।’ -हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • ‘जिस युग में कबीर, जायसी, तुलसी, सूर जैसे रससिद्ध कवियों और महात्माओं की दिव्य वाणी उनके अन्तः करणों से निकलकर देश के कोने-कोने में फैली थी, उसे साहित्य के इतिहास में सामान्यतः भक्ति युग कहते हैं। निश्चित ही वह हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग था।’ -श्याम सुन्दर दास
  • ‘समूचे भारतीय साहित्य में अपने ढंग का अकेला साहित्य है। इसी का नाम भक्ति साहित्य है। यह एक नई दुनिया है।’-हजारी प्रसाद द्विवेदी

कबीर की रचनाओं में साधनात्मक रहस्यवाद मिलता है जबकि जायसी की रचनाओं में भावात्मक रहस्यवाद।

कबीर ने अपने आदर्श-राज्य (Utopia) को ‘अमरदेस’, रैदास ने ‘बेगमपुरा’ (ऐसा शहर जहाँ कोई गम न हो) एवं तुलसी ने ‘राम-राज कहा है।

भक्तिकाल के महत्त्वपूर्ण प्रश्न

1.गोद लिए हुलसी फिरे तुलसी सो सुत होय, पंक्ति किसकी हे?

रहीम

ज्ञान भक्ति का विसद् विवेचन रामचरितमानस के किस कांड में हे

उत्तरकांड

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