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हिंदी साहित्य का इतिहास

हिन्दी एवं उसके साहित्य का इतिहास

हिन्दी एवं उसके साहित्य का इतिहास 750 ईसा पूर्व - संस्कृत का वैदिक संस्कृत के बाद का क्रमबद्ध विकास।500 ईसा पूर्व - बौद्ध तथा जैन की भाषा प्राकृत का विकास (पूर्वी भारत)।400 ईसा पूर्व - पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण लिखा (पश्चिमी भारत)।

आरम्भिक हिंदी का व्याकरणिक स्वरुप

आरम्भिक हिंदी का व्याकरणिक स्वरुप आरम्भिक हिन्दी से मतलब है,अपभ्रंश एवं अवहट्ट के बाद और खड़ी बोली के साथ हिन्दी के मानक रूप स्थिर एवं प्रचलित होने से पूर्व की अवस्था। 13वीं-14वीं शती में देशी भाषा को हिन्दी या हिंदवी नाम देने में

हिंदी साहित्य के गुरु और शिष्य

हिंदी साहित्य के गुरु और शिष्य HINDI SAHITYA गोविन्द योगी-शंकराचार्य मत्स्येंद्रनाथ/मछंदर नाथ-गोरखनाथ यादव प्रकाश- रामानुज आचार्य नारद मुनि- निम्बार्क आचार्य राघवानंद- रामानंद रामानंद- 12 प्रसिद्ध शिष्य- अनंतादास,

हिंदी साहित्य का अपभ्रंश-काल

हिंदी साहित्य का अपभ्रंश-काल जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश-साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए पहले जैसे 'गाथा' या ‘गाहा' कहने से प्राकृत का बोध होता था वैसे ही पीछे “दोहा' या 'दूहा' कहने से अपभ्रंश या लोकप्रचलित

हिन्दी साहित्य का इतिहास कालक्रम

हिन्दी साहित्य का इतिहास कालक्रम 750 ईसा पूर्व – संस्कृत का वैदिक संस्कृत के बाद का क्रमबद्ध विकास। 500 ईसा पूर्व – बौद्ध तथा जैन की भाषा प्राकृत का विकास (पूर्वी भारत)। 400 ईसा पूर्व

हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम

हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम हिन्दी में प्रथम डी. लिट् - डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल विज्ञान में शोधप्रबंध हिंदी में देने वाले प्रथम विद्यार्थी - मुरली मनोहर जोशी अन्तरराष्ट्रीय संबन्ध पर अपना शोधप्रबंध लिखने

हिन्दी साहित्य का गद्य इतिहास

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास

काल विभाजन व नामकरण

हिंदी साहित्य के काल विभाजन व नामकरण के संबंध में विभिन्न विद्वानों और आचार्यों के मत भी इस पोस्ट में दिये गये हैं। हिन्दी साहित्य का नामकरण हिन्दी साहित्य के काल-विभाजन को लेकर विद्वानो में अधिक मतभेद नहीं है, केवल हिन्दी