हिन्दी आंदोलन के प्रमुख व्यक्तित्व व स्थान

हिन्दी आंदोलन के प्रमुख व्यक्तित्व व स्थान

बंगाल हिन्दी आंदोलन

राजा राम मोहन राय, केशवचन्द्र सेन, नवीन चन्द्र राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, तरुणी चरण मित्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चन्द्र चटर्जी, सुभाष चन्द्र बोस, रवीन्द्र नाथ टैगोर , रामानंद चटर्जी, सरोजनी नायडू, शारदा चरण मित्र, आचार्य क्षिति मोहन सेन आदि।

हिन्दी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य है’।कथन है ?

बंकिम चन्द्र चटर्जी

अगर आज हिन्दी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रांत विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है। कथन है ?

सुभाष चन्द्र बोस

यदि हम प्रत्येक भारतीय के नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, तो हमें राष्ट्रभाषा के रूप में उस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश के सबसे बड़े भूभाग में बोली जाती है और जिसे स्वीकार करने की सिफारिश महात्मा गाँधी ने हमलोगों से की है। इसी विचार से हमें एक भाषा की आवश्यकता है और वह हिन्दी है। कथन है ?

रवीन्द्र नाथ टैगोर

हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जो अनुष्ठान हुए हैं, उनको मैं संस्कृति का राजसूय यज्ञ समझता हूँ। कथन है ?

आचार्य क्षिति मोहन सेन

अखिल भारतीय लिपि के रूप में देवनागरी लिपि के प्रथम प्रचारक कौन थे ?

शारदा चरण मित्र

महाराष्ट्र हिन्दी आंदोलन

बाल गंगाधर तिलक , एन.सी.केलकर, डॉ भण्डारकर, वी० डी० सावरकर, गोपाल कृष्ण गोखले, गाडगिल, काका कालेलकर आदि।

यह आंदोलन उतर भारत में केवल एक सर्वमान्य लिपि के प्रचार के लिए नहीं है। यह तो उस आंदोलन का एक अंग है, जिसे मैं राष्ट्रीय आंदोलन कहूँगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है, क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्वपूर्ण अंग है। अतएव यदि आप किसी राष्ट्र के लोगों को एक दूसरे के निकट लाना चाहें तो सबके लिए समान भाषा से बढ़कर सशक्त अन्य कोई बल नहीं है। कथन है ?

बाल गंगाधर तिलक

पंजाब हिन्दी आंदोलन

 लाला लाजपत राय, श्रद्धाराम फिल्लौरी आदि।

गुजरात हिन्दी आंदोलन

दयानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी, वल्लभभाई पटेल, कन्हैयालाल माणिकलाल (के० एम०) मुंशी आदि।

‘ हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना नहीं है; वह तो है ही ‘ कथन है ?

के० एम० मुंशी

दक्षिण भारत हिन्दी आंदोलन

सी० राजागोपालाचारी, टी० विजयराघवाचार्य , सी० पी० रामास्वामी अय्यर , एस० निजलिंगप्पा , रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर , के० टी० भाष्यम, आर० वेंकटराम शास्त्री, एन० सुन्दरैया आदि।

हिन्दुस्तान की सभी जीवित और प्रचलित भाषाओं में मुझे हिन्दी ही राष्ट्रभाषा बनने के लिए सबसे अधिक योग्य दीख पड़ती है’ कथन है ?

टी० विजयराघवाचार्य

देश के विभिन्न भागों के निवासियों के व्यवहार के लिए सर्वसुगम और व्यापक तथा एकता स्थापित करने के साधन के रूप में हिन्दी का ज्ञान आवश्यक है।

सी० पी० रामास्वामी अय्यर

हिन्दी ही उत्तर और दक्षिण को जोड़नेवाली समर्थ भाषा है।

अनन्त शयनम आयंगर

दक्षिण की भाषाओं ने संस्कृत से बहुत कुछ लेन-देन किया है, इसलिए उसी परंपरा में आई हुई हिन्दी बड़ी सरलता से राष्ट्रभाषा होने लायक है।

एस० निजलिंगप्पा

जो राष्ट्रप्रेमी है, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना चाहिए।

रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर

अन्य : 

मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन, राजेन्द्र प्रसाद, सेठ गोविंद दास आदि।

 ‘मैं हिन्दी का और हिन्दी मेरी है।’ कथन किसका है ?

पुरुषोत्तम दास टंडन

हिन्दी का प्रहरी किसे कहा जाता है ?

पुरुषोत्तम दास टंडन 

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