हिंदी साहित्य का अपभ्रंश-काल

हिंदी साहित्य का अपभ्रंश-काल

  • जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश-साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए पहले जैसे ‘गाथा’ या ‘गाहा’ कहने से प्राकृत का बोध होता था वैसे ही पीछे “दोहा’ या ‘दूहा’ कहने से अपभ्रंश या लोकप्रचलित काव्यभाषा का बोध होने लगा ।
  • प्राकृत से बिगड़कर जो रूप बोलचाल की भाषा ने ग्रहण किया वह भी आगे चलकर कुछ पुराना पड़ गया और काव्य-रचना के लिये रूढ़ हो गया। अपभ्रंश नाम उसी समय से चला । जब तक भाषा बोलचाल में थी तब तक-वह भाषा या देशभाषा ही कहलाती रही, जब वह भी साहित्य की भाषा हो गई तब उसके लिये अपभ्रश शब्द का व्यवहार होने लगा।
  • भरत मुनि (विक्रम तीसरी शती) ने ‘अपभ्रंश’ नाम न देकर लोकभाषा को ‘देशभाषा’ ही कहा है।
  • अपभ्रंश’ नाम पहले पहल बलभी के राजा धारसेन द्वितीय के शिलालेख में मिलता है जिससे उसने अपने पिता गुहसैन ( वि० सं० ६५० के पहले ) को संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों का कवि कहा है।
  • अपभ्रंश भाषा का विकास 500 ई० से लेकर 1000 ई० के मध्य हुआ और इसमें साहित्य का आरंभ 8वीं सदी (स्वयंभू कवि) से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा।
  • अपभ्रंश (अप + भ्रंश + घञ) शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है ‘पतन’ किन्तु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है- प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।
  • प्रमुख रचनाकार : स्वयंभू- अपभ्रंश का वाल्मीकि (‘पउम चरिउ’ अर्थात राम काव्य), धनपाल(‘भविस्सयत कहा’- अपभ्रंश का पहला प्रबंध काव्य), पुष्पदंत (‘महापुराण’, ‘जसहर चरिउ’), सरहपा, कण्हपा आदि सिद्धों की रचनाएँ (‘चरिया पद’, ‘दोहाकोशी’) आदि।

अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास

अपभ्रंश के भेदआधुनिक भारतीय आर्यभाषा
शौरसेनीपश्चिमी हिन्दी
राजस्थानी 
गुजराती
अर्द्धमागधीपूर्वी हिन्दी
मागधीबिहारी 
उड़िया 
बांग्ला 
असमिया
खसपहाड़ी (शौरसेनी से प्रभावित)
ब्राचड़पंजाबी (शौरसेनी से प्रभावित)
सिन्धी
महाराष्ट्रीमराठी

आदिकालीन अपभ्रंश साहित्य

स्वयंभू की रचनाएं-

  • पउमचरिउ, रिट्ठमेणिचरिउ, स्वयंभूछंद, पंचमि चरिउ
    • इनका स्थिति काल आठवीं शताब्दी [783 ई.] निर्धारित किया जाता है.
    • ‘पउमचरिउ’ रचना में भगवान राम के चरित्र का वर्णन किया गया है एवं इस रचना को डॉ. भयाणी ने ‘अपभ्रंश की रामायण कथा’ एवं स्वयंभू को ‘अपभ्रंश का वाल्मीकि’ कहा जाता है.
    • रिट्ठमेणिचरिउ रचना में कृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है .
    • ‘पउमचरिउ’ अपभ्रंश की प्रथम कडवक बद्ध रचना ( 7 चौपाई + 1 दोहा ) है.
    • पउमचरिउ में 12000 शलोक हैं| इनमें पांच कांड एवं 90 संधियां हैं इनमें से 83 संधियां स्वयंभू के द्वारा तथा 7 संधियां उनके पुत्र ‘त्रिभुवन’ द्वारा रचित मानी जाती है.
    • स्वयंभू के अनुसार ,पद्धड़िया (पद्धरिया )बँध के प्रवर्तक ‘चतुर्मुख’ नामक कवि माने जाते हैं.

पुष्पदंत की रचनाएं-

  • महापुराण,णयकुमारचरिउ(नाग कुमार चरित),जसहरचरिउ (यशोधरा चरित),कोश ग्रंथ
    •  इनका स्थितिकाल 10 वीं शताब्दी माना जाता है|
    • यह प्रारंभ में शैव मतानुयायी थे, किंतु बाद में अपने आश्रयदाता के अनुरोध पर ‘जैन’ पंथ स्वीकार कर लिया|
    •  इनकी महापुराण रचना में 63 महापुरुषों (शलाका पुरुषों) की जीवन घटनाओं का वर्णन किया गया है|
    • शिव सिंह सेंगर ने इनको ‘अपभ्रंश का भवभूति’ कहकर पुकारा है|
    • महापुराण रचना के कारण इनको ‘अपभ्रंश का वेदव्यास’ भी कहा जाता है|
    • ये स्वयं को ‘अभिमानमेरु’ कहा करते थे|
  • धनपाल:- भविसयत्तकहा
    • इनका स्थितिकाल 10 वीं शताब्दी माना जाता है|
    •  पाश्चात्य विद्वान डॉ. विण्टरनित्ज महोदय ने इस रचना को ‘रोमांटिक महाकाव्य’ की संज्ञा प्रदान की है|
  • अब्दुल_रहमान:- संदेशरासक
    • इनका स्थितिकाल 12 वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध एवं 13 वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध काल निर्धारित किया जाता है|
    •  ‘संदेश रासक’ एक खंडकाव्य है, जिसमें विक्रमपुर की एक वियोगिनी के विरह की कथा वर्णित है|
    • इनको ‘अद्दहमाण’ के नाम से भी जाना जाता है|
    •  ये किसी भी भारतीय भाषा में रचना करने वाले प्रथम मुस्लिम कवि माने जाते हैं|
    •  संदेश रासक श्रृंगार काव्य परंपरा की सर्वप्रथम रचना भी मानी जाती है|

जोइन्दु(योगीन्द्र) की रचनाएँ :-

  • परमात्मप्रकाश, योगसार
    •  इनका स्थिति काल छठी शताब्दी निर्धारित किया जाता है|
  • रामसिंह:- पाहुड दोहा
    • इनका स्थिति काल 11 वीं शताब्दी निर्धारित किया जाता है|
    • इस रचना में इंद्रिय सुख एवं अन्य संसारिक सुखों की निंदा की गई है तथा त्याग, आत्मज्ञान और आत्मानुभूति को महत्व दिया गया है|
  • हेमचंद्र:- शब्दानुशासन
    •  इनका स्थिति काल 12 वीं शताब्दी निर्धारित किया जाता है|
    • यह गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह (विं.सं. 1150-1199) और उनके *भतीजे कुमारपाल* (वि.सं. 1199-1230) के आश्रय में रहे थे|
    • इनकी की रचना ‘सिद्ध-हेमचंद्र-शब्दानुशासन’ एक बड़ा भारी व्याकरण ग्रंथ है| इसमें संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश तीनों भाषाओं का समावेश किया गया है|
    • अपभ्रंश के उदाहरणों में इन्होंने पूरे दोहे या पद उद्धृत किए हैं| यथा:-

” भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि महारा कंतु |लज्जेजं तु वयंसिअहु जइ भग्गा घरु एंतु |”

  • वररुचि- प्राकृत प्रकाश
  • उद्योतनसूरी-कुवलयमाल
  • महचंद_मुनि- दोहा पाहुड़
  • श्रुतकीर्ति- हरिवंश पुराण
  • रयधू- पदम पुराण
  • हेमचंद्र- देशीनाममाला (कोश ग्रंथ)
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