हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन परंपरा
हिंदी में साहित्य का इतिहास लेखन की परम्परा की शुरुआत 19 वीं शताब्दी से ही मानी जाती है , लेकिन कुछ पूर्ववर्ती रचनाएं मिलती हैं जो कालक्रम व विषय-वस्तु का विवेचन न होने के कारण इतिहास ग्रन्थ तो नहीं लेकिन उनमें रचनाकारों का विवरण है । इन्हें वृत्त संग्रह कहा जा सकता है । इनमें प्रमुख हैं –
1. चौरासी वैष्णव की वार्ता ( गोकुलनाथ )
2. दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता
3. भक्त नामावली ( ध्रुवदास )
4. भक्तमाल ( नाभादास )
5. कालिदास हजारा ( कालिदास त्रिवेदी )
इतिहास लेखन संबंधी पहली शुरुआत तासी के ग्रन्थ से हुई जिसमें ग्रियर्सन , आचार्य शुक्ल आदि ने कई महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए इसे सही दिशा दी ।
हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन परंपरा
क्रम | इतिहास | रचनाकार | विशेष |
1 | एस्त्वार द ला एन्दुए इंदुस्तानी*फ्रेंच भाषा में लिखा गया हिन्दी का प्रथम इतिहास गंथ *प्रकाशन – ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की ओरियन्टल ट्रांसलेशन सोसायटी*दो भाग में 1939,47*पुनर्प्रकाशन 1973*तीन भाग में कर दिया गया*७३८ हिन्दी उर्दू कविओं का अंग्रेजी वर्णानुसार वर्णन जिसमे 72 हिन्दी के बाक़ी उर्दू के.*इसमें हिन्दुई या हिन्दवी =हिन्दी और एदुस्तानी उर्दू है | | गार्सा द तासी [फ्रेंच में ]*पेरिस विश्विद्यालय में उर्दू के प्राध्यापक , *उर्दू पर विशेष ध्यान *फ्रेंच और उर्दू विद्वान*हिन्दी साहित्य का पहला इतिहास लेखक | मूल्यांकन – त्रुटिपूर्ण परन्तु प्रथम महत्वपूर्ण प्रयास ।. नलिन बिलोचन* शर्मा ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन में लिखा कि साहित्य का पहला इतिहासलेखक गार्सा द तासी हैं , यह निर्विवाद है.”* इसका अनुवाद लक्ष्मी सागर वाषर्नेय ने हिन्दुई साहित्य का इतिहास [१९५२]के नाम से किया |
2 | तजकिरा-ई-शुअरा-ई-हिंदी ” ( तबकातु शुआस ) भाषा उर्दू*प्रकाशन – 1848 में दिल्ली कॉलेज द्वारा प्रकाशित *कुल कवि / लेखक – 1004*हिंदी के कवि – 62 *तासी ने अपने ग्रन्थ के द्वितीय संस्करण हेतु इसका प्रयोग किया*कवियों के जन्म-मरण के संवत, वैयक्तिक जीवन की झलक, काव्य संग्रह के वर्णन में आंशिक सफलता । *चंद बरदाई, अमीर खुसरो, कबीर , जायसी, तुलसी आदि के कालक्रम का भी चिन्तन किया*प्रथम बार कालक्रम पर ध्यान किन्तु नामकरण का प्रयास नहीं क्रिया गया है. | मौलवी करीमुद्दीन*साहित्येतिहास लिखने वाले प्रथम भारतीय(दिल्ली निवासी) | |
3 | भाषा काव्य संग्रह[1873-नवल किशोर प्रेस लखनऊ ]हिन्दी में प्रथम ग्रन्थ | महेश दत्त शुक्ल | |
4 | शिव सिंह सरोज*प्रथम संस्करण – 1883,द्वितीय संस्करण – 1888*कालिदास हजारा पर आधारित *प्रकाशन – नवलकिशोर , लखनऊ से *इससे पूर्व किसी भी ग्रंथ में इतने कवियोंका परिचय नहीं दिया गया था इसलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रस्थान बिन्दु कहा गयाहै. *इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्येतिहास का प्रस्थान बिंदु कहा गया है (पूर्णतय विश्वसनीय न होने के बावजूद)हिंदी की जड़ की खोज करते हुए कवि पुंड तक पहुंचा गया है .*हिन्दी का प्रथम वृत्त संग्रह*कवियों को शती अनुसार अलग-अलग रखा गया है । *उत्तरार्द्ध में 1003 कवियों के जीवन चरित अकारादि क्रम से 687 कवियों की तिथियाँ दी गई हैं । | शिव सिंह सेंगर | |
4 | द मॉडर्न वर्नेक्यूलर लिट्रैचर आफ हिंदोस्तान[1888]*एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल की पत्रिका के विशेषांक के रूप में.*शिवसिंह सरोज का ऋण स्पष्टतया स्वीकार किया है.*भाषा – अंग्रेजी |*विषय – केवल हिंदी के कवि *हिन्दुस्तान से अभिप्राय हिंदी भाषा-भाषी प्रदेश । साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया है कि इसमें न तो संस्कृत-प्राकृत को शामिल किया गया है न ही अरबी-फ़ारसी मिश्रित उर्दू को ।*इस प्रकार यह स्पष्टतया हिंदी से संबंधित इतिहास ग्रन्थ है952 कवियों का वर्गीकरण कालक्रमानुसार करते हुए उनकी प्रवृतियों को भी स्पष्ट करने का प्रयास । *काल विभाजन का प्रयास (12 अध्याय, प्रत्येक अध्याय एक काल का द्योतक , दोषपूर्ण लेकिन प्रथम महत्वपूर्ण प्रयास) *अनेक विद्वानों ने इसे हिंदी का प्रथम इतिहास ग्रन्थ स्वीकार किया। इनमें डॉ किशोरीलाल गुप्त प्रमुख हैं |*देन – चारण काव्य, धार्मिक काव्य, प्रेम काव्य , दरबारी काव्य के रूप में हिंदी साहित्य को बांटना । *भक्तिकाल को पन्द्रहवीं सदी का धार्मिक पुनर्जागरण कहना । *16वीं-17वीं शताब्दी के युग (भक्तिकाल)को हिंदी का स्वर्णयुग मानना |*सच्चे अर्थों में प्रथम हिन्दी इतिहास विलोचन शर्मा के अनुसार नलिन* विधेयवादी साहित्येतिहास के आदम प्रवर्तक शुक्लजी नहीं,प्रत्युत ग्रियर्सन हैं .*सर्वाधिक सहायता शिव सिंह सरोज से ली है. | जार्ज ग्रियर्सन | डा किशोरीलाल ने 1957 में हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास नाम से अनुवाद किया*कवियो व लेखको का कालक्रमानुसार वर्णन तथा प्रवृत्तियों का स्पष्टीकरणसांस्कृतिक परिस्थितियों व प्रेरनास्रोतो का उद्घाटन*हिंदी भाषा साहित्य की दॄष्टि से प्रथम बार क्षेत्र निर्धारण . |
5 | हिन्दी कोविद रत्न माला*दो भागों में1909, 1914*40 कवियों की जीवनी और साहित्य*हिन्दी भाषा और साहित्य [1930]* हिदी भाषा का विकास [1928] | डा. श्याम सुन्दर दास | |
6 | हिन्दी नवरत्न 1910*इतिहास नहीं, सिर्फ नौ कवियों की की तुलना*चंदवरदाई,सूर,तुलसी , कबीर,केशव[मतिराम,भूषण]देव, बिहारी,भारतेंदु | मिश्र बंधू मिश्रबन्धु, लाला भागावादीन, कृष्णबिहारी मिश्र, पंडित पद्मसिंह शर्मा आदि आलोचकों में बिहारी एवं देव को लेकर काफी बहस हुई । इस बहस को बड़बोलेपन की बहस भी कहा जा सकता है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार – “अच्छा हुआ कि ‘छोटे–बड़े‘ के इस भद्दे झगड़े की ओर अधिक लोग आकर्षित नहीं हुए | इसमें तुलसी और सूरदास के बाद देव को हिंदी का सबसे बड़ा कवि बताया गया है । मिश्रबंधु के अनुसार तो देव सबसे ऊपर हैं, किन्तु तुलसीदास एवं सूरदास के ‘महात्मापन’ के आगे वे विनम्र हो जाते हैं तथा देव को तीसरे स्थान पर रखते हैं । देव के संदर्भ में वे कहते हैं – “इनको किसी कवि से न्यून कहना इनके साथ अन्याय समझ पड़ता है, परन्तु इनको सर्वश्रेष्ठ कहना गोस्वामी तुलसीदास तथा महात्मा सूरदास के साथ भी अन्याय होगा । सिवा इन दोनों महात्माओं के और किसी तृतीय कवि की तुलना देव जी से कदापि नहीं की जा सकती |
7 | मिश्रबन्धु विनोद ( चार भाग ) 2250 पृष्ठ*प्रथम तीन भाग -1913*चौथा भाग– 1934 *हिंदी नवरत्न ” – मिश्र बन्धु विनोद के प्रथम तीन भागों का पूरक *4591 कवियों का जीवन वृतांत संग्रहित । *आचार्य शुक्ल – ” कवियों के परिचयात्मक विवरण मैंने प्राय: मिश्रबन्धु विनोद से ही लिए हैं ।” *स्थान-स्थान पर काव्यांग विवेचन *तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण करते हुए कवियों की श्रेणियां बनाने का प्रयास *देव-बिहारी विवाद को जन्म दिया जो अगले दस वर्षों तक चर्चा का विषय रहा । *अनेक अज्ञात कवियों को प्रकाश में लाए*कवियों का साहित्यिक महत्त्व निर्धारण किया*कवियों का सापेक्षिक महत्व निर्धारण करने के लिए चार श्रेणिया बनाई | मिश्र बंधूप.गणेश बिहारी मिश्र डॉ.श्याम बिहारी मिश्र डॉ.शुकदेव बिहारी मिश्र | |
8 | कविता कौमुदी [1917] | प.राम नरेश त्रिपाठी | |
9 | द स्केच आफ हिन्दी लिट्रेचर [1917]*अंग्रेजी में*हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास लिखा जिसे पांच कालों में विभाजित किया | | एडविन ग्रिब्स | |
10 | अ हिस्ट्री आफ हिन्दी लिटरेचर [1920]*अंग्रेजी में | F E K | |
11 | ब्रज माधुरी सार [1923] | वियोगी हरी [हरिहर प्रसाद तिवारी ] | |
12 | हिन्दी साहित्य विमर्श [1923] | पद्म लाल पुन्ना लाल बख्शी | |
13 | हिन्दी [1923 ] | प. बद्रीनाथ भट्ट | |
14 | हिन्दी के मुसलमान कवि [19 26 ] | औखारी गंगा प्रसाद सिंह | |
15 | सुकवि सरोज [1927] | गौरी शंकर द्विवेदी | |
16 | हिंदी साहित्य का इतिहास [1929 ]*नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ” हिंदी शब्द सागर ”की भूमिका में ” हिंदी साहित्य का विकास ” के रूप में प्रकाशित । *1929 – स्वतंत्र पुस्तक के रूप में *1940 – संशोधित और प्रवर्धित संस्करण *मूल विषय को आरंभ करने से पूर्व ही संवत 1050 से संवत 1984 तक के 900 वर्षों के इतिहास को सुस्पष्ट चार भागों में विभाजित किया है |*1000 कवि और लेखक |*सर्वप्रथम साहित्य इतिहास को आलोचना से पृथक किया जिसमें अपने वैज्ञानिक और विकासवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया* साहित्यितिहास के प्रति निश्चित व स्पष्ट दृष्टिकोण का परिचय देते हुए युगीन परिस्थितिओं के सन्दर्भ में विकासक्रम की व्याख्या वर्षों 900 के इतिहास को चार भागों में विभाजित कर दोहरा नामकरण किया |*भक्तिकाल की चार शाखाओं को सर्व प्रथम शुद्ध दार्शनिक और धार्मिक आधार पर प्रतिष्ठित किया |* पहली बार लेखको के बजाय उनकी रचनाओं के साहित्यिक मूल्यांकन को महत्त्व दिया गया |* सेंगर,ग्रियर्सन ,मिश्र बंधू के इतिहास को कवि वृत्त संग्रह कहा . | आचार्य रामचंद्र शुक्ल | हिंदी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को चार कालों में विभक्त कर सकते हैं—आदिकाल – संवत 1050 से 1375 तकभक्तिकाल – संवत 1375 से 1700 तकरीतिकाल – संवत 1700 से 1900 तकआधुनिक काल – संवत 1900 से अब तक |
17 | हिन्दी भाषा और उसके साहित्य का विकास | अयोध्या प्रसाद हरिऔध | |
18 | हिन्दी सहित्य का विवेचनात्मक इतिहास[1930] | सूर्यकांत शास्त्री | |
19 | हिन्दी साहित्य का इतिहास | रमाशंकर शुक्ल रसाल | |
20 | आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास[1934] | कृष्ण शकर शुक्ल | |
21 | पुरातत्व निबंधावली [1937] | राहुल संकृत्यायन | |
22 | हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास [1938]*693 से 1693 ई तक के काल को सात प्रकरणों में प्रस्तुत किया है – संधिकाल, चारणकाल, भक्तिकाल की अनुक्रमणिका, भक्ति काव्य, राम काव्य, कृष्ण काव्य, प्रेम काव्य । *शुक्ल की मान्यताओं को दोहराया आदिकाल को दो भागों में बांटा – संधिकाल , चारणकाल *विवेचना की पद्धति में पद्य की कोमलता *693 से हिन्दी साहित्य का आरम्भ मानने का कारण स्वयंभू को पहला कवि मानना है . | डॉ रामकुमार वर्मा | |
23 | माडर्न हिन्दी लिटरेचर [1939] | इंद्रनाथ मदान | |
24 | राजस्थानी साहित्य की रूपरेखा [1939] | प.मोती लाल मेनोरिया | |
25 | जैन साहित्य की पूर्वपीठिका और हमारा अम्भुदय | डा हीरालाल जैन | |
26 | हिंदी साहित्य की भूमिका (1940 )*मुख्य रूप से इतिहास ग्रन्थ न होते हुए भी कई इतिहास ग्रन्थों से अच्छा ( पहला ग्रन्थ जिसमें साहित्य के विभिन्न स्वरूपों के विकास का विराट रूप से वर्णन ) परम्परा को महत्व दिया गया |*दस अध्याय – हिंदी साहित्य, भारतीय चिन्तन का स्वभाविक विकास, संत मत, भक्तों की परम्परा, योग मार्ग और संत मत, सगुण मतवाद, मध्ययुग के संतों कास्वाभाविक विकास, भक्तिकाल के प्रमुख कवियों का व्यक्तित्व , रीतिकाल, उपसंहार । *परिशिष्ट में संस्कृत संबंधी अध्ययन*द्विवेदी जी आचार्य शुक्ल की अनेक धारणाओं व स्थापनाओं को चुनौती देते हुए उन्हें सबल प्रमाणों के आधार पर खंडित करने वाले पहले व्यक्ति हैं. | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीअन्य प्रमुख ग्रन्थ – हिंदी साहित्य : उद्भव एवं विकास हिंदी साहित्य का आदिकाल[१९४२] (व्याखान ग्रन्थ)कबीर और नाथ संप्रदाय कबीर | |
27 | खडी बोली हिन्दी साहित्य का इतिहास [1941] | ब्रज रत्न दास | |
28 | संत साहित्य [1941] | भुनेश्वर प्रसाद मिश्र | |
27 | आधुनिक हिन्दी साहित्य [1941] | डा. लक्ष्मी सागर वाषर्नेय | |
28 | आधुनिक हिन्दी साहित्य विकास [1942] | डा कृष्णलाल | |
29 | आधुनिक हिन्दी साहित्य [1942]*हिन्दी साहित्य बीसवीं शताब्दी [1945] | नन्द दुलारे बाजपेयी | |
30 | हिन्दी वीर काव्य [1945] | टीकम सिंह तोमर | |
31 | आधुनिक हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ [1949] | खंडेलवाल | |
32 | हिन्दी काव्यधारा [1949] | राहुल संकृत्यायन | |
33 | हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास [1955] | उदय नारायण तिवारी | |
34 | साहित्य का इतिहास दर्शन [1960] | नलिन विलोचन शर्मा | |
35 | हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास[दो भाग ][1965] *काल विभाजन के ढांचे में मौलिक परिवर्तन शुक्ल की मान्यताओं का सतर्क खंडन | गणपति चन्द्र गुप्त | |
36 | हिन्दी साहित्य का इतिहास [1973] | डा नगेन्द्र | |
37 | आधुनिक हिन्दी का आदिकाल [1973] | श्री नारायण चतुर्वेदी | |
39 | हिन्दी साहित्य संवेदना का विकास [1976] | राम स्वरूप चतुर्वेदी | |
40 | हिन्दी काव्य शास्त्र का इतिहास *हिन्दी साहित्य का परिचयात्मक इतिहास | भागीरथ मिश्र | *हिन्दी रीति साहित्य*कला साहित्य और समीक्षा |
41 | हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास [1996] | बच्चन सिंह | |
42 | हिन्दी काव्य शास्त्र का इतिहास | डा भागीरथ मिश्र | |
43 | आधुनिक हिन्दी आदिकाल [1973] | श्री नारायण चतुर्वेदी | |
44 | हिन्दी साहित्य*विभिन्न इतिहासकारों के सहयोग से लिखा जिसे तीन कालों में विभाजित किया १-आदिकाल 2-मध्यकाल 3-आधूनिककाल | डा धीरेन्द्र वर्मा | |
45 | हिन्दी साहित्य का इतिहास; हिन्दी वांड्मय 20वीं शती | डा नगेन्द्र | |
46 | हिन्दी साहित्य का अतीत [2000] | आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र | |
47 | हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास, | डा बच्चन सिंह | |
48 | हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास | डा मोहन अवस्थी | |
49 | हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास | बाबू गुलाब राय | |
50 | हिन्दी साहित्य का आधा इतिहास [2003] | सुमन राजे | |
51 | हिन्दी साहित्य का मौखिक इतिहास | नीलाभ | |
52 | हिन्दी साहित्य का ओझल नारी का इतिहास [2013] | नीरजा माधव | |
53 | नागरी प्रचारणी का वृहत इतिहास· कई संपादकों के सहयोग से लेखन | प्रथम-हिन्दी साहित्य की पीठिका – राजबली पाण्डेय ———————— द्वितीय-हिन्दी भाषा का विकास-डा धीरेन्द्र ———————— तीसरा-आदिकाल-प. कमलापति त्रिपाठी डा. वासुदेव सिंह ————————– चौथा –भक्ती काल निर्गुण भक्ति-परशुराम चतुर्वेदी ———————— पांचवां-भक्तिकाल सगुन-देवेन्द्र शर्मा ,विजयर्न्द्र स्नातक ————————-छठां –रीतिकाल रीति बद्ध-नगेन्द्र —————— सातवाँ – रीतिकाल रितिमुक्ति-भागीरथ मिश्र ———————– आठवां- हिन्दी साहित्य का अभुत्थानभारतेन्दुकाल[१९००-१९५०]-डा विनयमोहन शर्मा ———————— नवां- द्विवेदी काल[१९५०-१९७५]-डा सुधाकर पांडे ————————- दसवां-उत्कर्ष काल [१९७५-९५ वि ]-डा. नगेंद्र ————————— ग्यारहवां -उत्कर्षकाल नाटक [१९७५-९५ वि]-सावित्री सिंह ,दशरथ ओझा ———————— बारहवां-कथा साहित्य [१९७५-९५ वि]-निर्मला जैन ————————— तेरहवां –समालोचना निबंध पत्रकारिता-लक्ष्मी नारायण सुधाँशु —————————-चौदहवाँ –अद्यतन काल-हरवंश लाल शर्मा ———————— पन्द्रहवां –अंतरभारती हिन्दी साहित्य-डा नागेन्द्र ,प राहुल संकृत्यायन ———————- सोलहवां –हिन्दी का लोक साहित्य- डा कृष्णदेव उपाध्याय |