जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 – १५ नवंबर १९३७), हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं।
जयशंकर प्रसाद का परिचय

- जन्म- सन् 1889 ई.
- निधन- सन् 1936 ई.
- जन्म स्थान – काशी (सूँघनी साहू परिवार में)
- माता- मुन्नी देवी
- पिता- बाबू देवी प्रसाद
- गुरू – ‘दीनबन्धु ब्रह्मचारी’ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन के लिए शिक्षक थी।
उपनाम-
- झारखण्डी- प्रसाद को बचपन में पुकारा जाता था।
- खाण्डे राव – प्रसाद को बचपन में पुकारा जाता था।
- कलाधार- इस नाम से ब्रजभाषा में काव्य रचना करते थे।
- इनके परिवार की गणना वाराणसी के समृद्ध परिवारों में होती थी।
- प्रसाद का परिवार शिव का उपासक था।
- इनकी 12 वर्ष की आयु में इनके पिता का और 15 वर्ष की आयु में बङे भाई शंभुरतन का देहांत हो गया था।
- प्रसाद तरूणाई में ही माता-पिता, बङे भाई, दो पत्नियों और इकलौते पुत्र की वियोग व्यथा झेल चुके थे
प्रमुख काव्य संग्रह-
द्विवेदी युगीन ब्रजभाषा में रचित काव्य संग्रह-
- उर्वशी (1909 ई.)
- वनमिलन (1909 ई.)
- प्रेम राज्य (1909 ई.)
- अयोध्या का उद्धार (1910 ई.)
- शोकोछच्बास (1910 ई.)
- वभ्रुवाहन (1911 ई.)
द्विवेदी युगीन खङी बोली में रचित काव्य
- कानन कुसुम (1913 ई.) (खङी बोली कविताओं का प्रथम संग्रह)
- करूणालय (1913 ई.)
- प्रेम पथिक (1913 ई.)
- महाराणा का महत्व (1914 ई.)
छायावादी काव्य रचनाएँ
- झरना (1918 ई.)
- आंसू (1925 ई.)
- लहर (1933 ई.) (43 कविताएँ)
- कामायनी (1935)
प्रसाद की कहानी संग्रह
कुल 69 कहानियाँ लिखी जो पांच संग्रहों में संकलित है-
- छाया (1912 ई.)
- प्रतिध्वनि (1926 ई.)
- आकाशदीप (1929 ई.)
- आंधी (1931 ई.)
- इन्द्रजाल (1936 ई.)
प्रमुख कहानियाँ
- पुरस्कार
- देवरथ
- ममता
- सालवती
- बेङी
- गुण्डा
अतियथार्थ परक कहानियाँ
- नीरा
- मधुवा
- गुण्डा
- छोटा जादूगर
उपन्यास
- कंकाल (1929 ई.)
- तितली (1934 ई.)
- इरावती (अपूर्ण)
नाटक
इन्हें पढ़ें : जयशंकर प्रसाद जी की नाट्य-रचनाएं
1. सज्जन (1911 ई.) – दुरात्मा दुर्योधन के प्रति युधिष्ठिर की सज्जनता का चित्रण। ’धर्म को राज सदा जग होवे’ यही नाटक की मूल चेतना है।
2. कल्याणी परिणय (1912 ई.) – मौर्यवंश के प्रथम प्रतापशाली शासक चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास इस एकांकी में वर्णित है। इस एकांकी को ’चंद्रगुप्त’ नाटक के चतुर्थ अंक में थोङे परिवर्तन एवं परिवर्द्धन के साथ शामिल किया गया है।
3. करूणालय (1913 ई.) – वैदिककालीन यज्ञ और हिंसा के विरोध में करुणा की प्रतिष्ठा। नाटक का अंत इस प्रकार हुआ है- करुणा वरुणालय जगदीश दयानिधे और जय जय विश्व के आधार।
4. प्रायश्चित (1914 ई.) – देशद्रोह के लिए जयचंद से प्रायश्चित कराना।
5. राज्यश्री (1920 ई.) – इस रूपक में राज्यश्री का चरित्र (विशेषरूप से क्षमाशीलता) को उद्घाटित किया गया है।
6. विशाख (1921 ई.) – प्रेम की विजय, प्रसाद की पराजय तथा असत् व्यक्ति का हृदय-परिवर्तन का नाटक।
7. अजातशत्रु (1922 ई.) – अतीत के गौरव-गान के साथ-साथ युगीन पुनर्जागरण एवं उद्बोधन से ओत-प्रोत यह नाटक असत् प्रवृत्तियों पर सत् प्रवृत्तियों की विजय एवं लोकमंगल के महान् उद्देश्य से युक्त है।
8. कामना (1924 ई.) – इस प्रतीकात्मक नाटक में प्रसाद ने संतोष, विवेक, विलास, कामना इत्यादि मनोविकारों का मानवीकरण किया है। यह नाटक कामना-संतोष के संबंधों के टूटने-जुङने का नाटक है। साथ-ही, विलास की विजय और पराजय का नाटक है।
9. जनमेजय का नागयज्ञ (1926 ई.) – आर्य और नाग जातियों के बीच संघर्ष समाप्त कर उनमें समन्वय स्थापित करना।
10. स्कंदगुप्त विक्रमादित्य (1928 ई.) – गुप्तवंश के पराक्रमी वीर स्कंदगुप्त के चरित्र के आधार पर राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक भावों की अभिव्यक्ति।
11. एक घूंट (1929-30 ई.) – प्रसाद जी का यह विचार प्रधान सामाजिक एकांकी नाटक है, जिसमें विवाह और स्वच्छंद प्रेम पर विचार करते हुए स्वच्छंद प्रेम के स्थान पर वैवाहिक प्रेम की प्रतिष्ठा स्थापित की गई है।
12. चन्द्रगुप्त (1931 ई.) – दो-दो यूनानी आक्रमणों से भारत की सुरक्षा कराते हुए निष्कटक मौर्य-साम्राज्य की स्थापना कराना तथा राष्ट्रीय जागरण की भावना को बलवती परतंत्र भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना।
13. ध्रुवस्वामिनी (1933 ई.) – स्त्री-प्रधान, स्त्री-समस्या पर आधारित इस नाटक में बेमेल-विवाह की समस्या, स्त्री को भोग की वस्तु मानने के विरुद्ध स्त्री-अस्मिता, स्त्री-अधिकार, स्त्री-स्वतंत्रता पर प्रकाश डाला गया है।
14. अग्निमित्र (1944) – प्रसाद के इस अंतिम एवं अपूर्ण नाटक (1935 में लिखित यह नाटक प्रसाद की मृत्यु के उपरांत 30 अक्टूबर, 1944 को दैनिक पत्र आज में प्रकाशित हुआ था) में राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति हुई है।
निबन्ध संग्रह
- 1939 ई. काव्य और कला तथा अन्य निबंध
साहित्य निबंध
- प्रकृति सौन्दर्य
- हिन्दी साहित्य सम्मेलन
- भक्ति
- हिंदी कविता का विकास
- सरोज
ऐतिहासिक निबंध
- सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य
- आर्यवर्त का प्रथम सम्राट
- मौर्यों का राज्य परिवर्तन
- दशराज युद्ध
समीक्षात्मक निबंध
- कवि और कविता
- चम्पू
- कविता का रसास्वाद
- रहस्यवाद
- काव्य और कला
- रस
- नाटकों में रस का प्रयोग
- रंगमंच
- नाटकों का प्रारंभ
महत्वपूर्ण तथ्य
- ’कामायनी’ महाकाव्य पर ’मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ।
- आयोध्या का उद्धार कविता में लव द्वारा अयोध्या को पुनः बसाने की कथा।
- ’अशोक की चिंता’ अन्य कविता।
- ’प्रेम पथिक’ पहले 1909 ई. में ब्रजभाषा में लिखा गया फिर उसे 1914 ई. में खङी बेाली में रूपांतरित किया गया।
- ’शेर सिंह का आत्म समर्पण’ एक लम्बी कविता है जो मुक्त छन्द है।
- ’आंसू’ में 14 मात्राओं को ’आनंद’/’सखी छंद’ है।
- ’कामायनी’ का मुख्य छन्द ’तोंटक’ है।
- ’पैशोला की प्रतिध्वनि’, ’प्रलय की छाया’ शीर्षक कविताएं ’लहर’ में संकलित है।
- ’जयंशंकर प्रसाद’ नामक पुस्तक के रचियता नंद दुलारे वाजपेयी है।
- कामायनी ’शतपथ ब्राह्मण’ के आठवें अध्याय से ली गई है।
- प्रसाद को ’दार्शनिक कवि’ कहा जाता है।
- कामायनी एक भाव प्रधान महाकाव्य है।
- प्रसाद की प्रेरणा से ही 1909 ई. में उनके भानजे अम्बिका प्रसाद गुप्त के सम्पादककत्व में ’इन्दु’ नामक मासिक पत्र का प्रारंभ हुआ है।
- कामायनी में ’प्रत्याभिज्ञादर्शन’ की पुष्टि हुई है।
- ’पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण गुप्त’ की रचना रामधारी सिंह दिनकर ने की थी।
- ’आंसू’ की प्रथम पंक्तियाँ है- ’’अवकाश भला है किनको सुनने को करूण कथायें।’’
- ⇒’आंसू’ प्रथम संस्करण में व्यक्तिगत वेदना को महत्व है।
- ’आंसू’ का नामकरण और छन्द मैथिलीशरण गुप्त ने दिा था।
- ⇒’आंसू’ द्वितीय संस्करण में प्रसाद ने व्यक्तिगत वेदना से ऊपर उठकर करूणा या विश्व कल्याण की भावना की अभिव्यक्ति की है।