छायावादोत्तर युगीन प्रसिद्ध पंक्तियाँ (विविध)

श्वानो को मिलता दूध वस्त्र
भूखे बालक अकुलाते हैं -दिनकर
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहसान खाली करो कि जनता आती है। –दिनकर
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओं, जिससे उथल-पुथल मच जाए
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आए। –बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
एक आदमी रोटी बेलता है एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ …. ‘यह तीसरा आदमी कौन है ?’
मेरे देश की संसद मौन है। (रोटी और संसद) -धूमिल
क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है ?
(बीस साल बाद- ‘संसद से सड़क तक’) -धूमिल
बाबूजी ! सच कहूँ- मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न कोई बड़ा है
मेरे लिए, हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिए खड़ा है
(मोचीराम- ‘संसद से सड़क तक’) -धूमिल
मेरे देश का समाजवाद
मालगोदाम में लटकती हुई
उन बाल्टियों की तरह है जिस पर ‘आग’ लिखा है
और उनमें बालू और पानी भरा है।
(पटकथा- ‘संसद से सड़क तक’) -धूमिल
अपने यहाँ संसद
तेल की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
(पटकथा- ‘संसद से सड़क तक’) -धूमिल
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार (‘अपनी केवल धार’) -अरुण कमल