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2022

अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना

अंधेर नगरी की भाषा - शैली एवं संवाद योजना संवाद नाटक की आत्मा होते हैं। उन्हीं के आधार पर नाटक की कथा निर्मित और विकसित होती है, पात्रों के चरित्र के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है, उनका विकास होता है। संवाद ही नाटक में सजीवता, रोचकता

अंधेर नगरी: पात्र परिकल्पना एवं चरित्रिक विशेषताएँ

अंधेर नगरी नाटक में यूँ कहने को तो इसमें अनेक पात्र हैं विशेषतः बाजार वाले दृश्य में। पर वे केवल एक दृश्य तक सीमित हैं और उनके द्वारा लेखक या तो बाजार का वातावरण उपस्थित करता है या फिर तत्कालीन राजतंत्र एवं न्याय व्यवस्था पर कटाक्ष करता

अंधेर नगरी प्रहसन व्याख्या

अंधेर नगरी प्रहसन व्याख्या राम के नाम से काम बनै सब,राम के भाजन बिनु सबहिं नसाई ||राम के नाम से दोनों नयन बिनु सूरदास भए कबिकुलराई । राम के नाम से घास जंगल की, तुलसी दास भए भजि रघुराई ॥ शब्दार्थ- दोनों नयन बिनु-जिनके दोनों

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय

रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। आप छायावादोत्तर कवियों की

प्रगतिवादी कवियों की महत्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ

प्रगतिवादी कवियों की महत्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ (क) केदारनाथ अग्रवाल(ख) नागार्जुन(ग) त्रिलोचन (क) केदारनाथ अग्रवाल (1) धूप चमकती है चाँदी की साड़ी पहने मैके में आयी बेटी की तरह मगन है। (2) एक बीते के बराबर, यह हरा ठिगना चना

प्रगतिवाद (1936 से 1942 ई० )

प्रगतिवाद (1936 से 1942 ई० ) लखनऊ में अप्रैल, 1936 ई० में 'प्रगतिशील लेखक संघ' की स्थापना और प्रथम अधिवेशन के समय से हिन्दी में प्रगतिवादी आन्दोलन की शुरुआत होती है। इस अधिवेशन के प्रथम अध्यक्ष मुंशी प्रेमचंद थे।सन् 1934 ई० में गोर्की

हिंदी साहित्य में नयी कविता का युग

'दूसरे सप्तक' के प्रकाशन वर्ष 1951ई० से 'नयी कविता' का प्रारंभ माना जाता है। 'नयी कविता' उन कविताओं को कहा जाता है, जिनमें परम्परागत कविता से आगे नये भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और शिल्प विधान का अन्वेषण किया

प्रपद्यवाद या नकेनवाद

नकेनवाद की स्थापना सन् १९५६ में नलिन विलोचन शर्मा ने की थी। नकेनवाद को प्रपद्यवाद के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद की एक शाखा माना जाता है। प्रपद्यवाद या नकेनवाद के अंतर्गत तीन कवियों

साठोत्तरी कविता आंदोलन

साठोत्तरी हिन्दी साहित्य के इतिहास के अन्तर्गत सन् 1960 ई० के बाद मुख्यतः नवलेखन (नयी कविता, नयी कहानी आदि) युग से काफी हद तक भिन्नता की प्रतीति कराने वाली ऐसी पीढ़ी के द्वारा रचित साहित्य है जिनमें विद्रोह एवं अराजकता का स्वर प्रधान था।

प्रयोगवादी कवियों की महत्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ

प्रयोगवादी कवियों की महत्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ (क) अज्ञेय (1) वही परिचित दो आँखें हीचिर माध्यम हैंसब आँखों से सब दर्दों से मेरे लिए परिचय का। (2) यह दीप अकेला स्नेह भरा, है गर्व भरा मदमाता,पर इसको भी पंक्ति दे दो। (3) किन्तु