टैग: आदिकाल

  • घनानंद कवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न

    घनानंद कवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न

    घनानंद कवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1. ” लट लोल कपोल कलोल करै, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।अंग अंग तरंग उठै दुति की , पहिरे नौ रूप अवै धर च्वै ” में अलंकार है:१. उत्प्रेक्षा २. रूपक३. व्यतिरेक✔४. विरोधाभास। 2. ” प्रेम सदा अति ऊंची लहै सु कहै इहि भांति की बात छकी” किसकी पंक्ति है:१. भूषण२.…

  • अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव

    अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव

    इस पोस्ट में हम अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव को जानेंगे

  • देवसेन जैन कवि

    देवसेन जैन कवि

    इस पोस्ट में देवसेन व अन्य अपभ्रंश कवि के बारे में पढ़ेंगे।

  • हिंदी साहित्य का आदिकाल का परिचय

    हिंदी साहित्य का आदिकाल का परिचय

    हिन्दी साहित्य का आदिकाल

  • अवहट्ट भाषा का विकास

    हिन्दी साहित्य में अवहट्ट भाषा का विकास के बारे में जानिए

  • नाथ साहित्य की विशेषताएँ

    यहाँ पर नाथ साहित्य (NATH SAHITYA) के बारे संक्षेप में जानकारी दी जा रही है

  • जैन साहित्य की सामान्य विशेषताएँ

    जैन साहित्य की सामान्य विशेषताएँ

    अपभ्रंश साहित्य को जैन साहित्य कहा जाता है, क्योंकि अपभ्रंश साहित्य के रचयिता जैन आचार्य थे। जैन कवियों की रचनाओं में धर्म और साहित्य का मणिकांचन योग दिखाई देता है। जैन कवि जब साहित्य निर्माण में जुट जाता है तो उस समय उसकी रचना सरस काव्य का रूप धारण कर लेती है और जब वह…

  • पद्मावत का प्रतीक योजना

    पद्मावत का प्रतीक योजना

    मलिक मुह्म्म्द जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत‘ को प्रतीकात्मक काव्य कहा जाता है। किंतु यह प्रतीकात्मकता सर्वत्र नहीं है और इससे लौकिक कथा में कोई बाधा नहीं पहुँचती है। पद्मिनी परमसत्ता की प्रतीक है, राजा रतन सेन साधक का, राघव चेतन शैतान का, नागमती संसार का, हीरामन तोता गुरू का, अलाउद्दीन माया का प्रतीक है। पद्मावत का प्रतीक योजना

  • जगनिक का साहित्यिक परिचय

    जगनिक का साहित्यिक परिचय

    जगनिक का साहित्यिक परिचय (संवत् 1230) ऐसा प्रसिद्ध है कि कालिंजर के राजा परमार के यहाँ जगनिक नाम के एक भाट थे, जिन्होंने महोबे के दो प्रसिद्ध वीरों-आल्हा और ऊदल (उदयसिंह)–के वीरचरित का विस्तृत वर्णन एक वीरगीतात्मक काव्य के रूप में लिखा था, जो इतना सर्वप्रिय हुआ कि उसके वीरगीतों का प्रचार क्रमशः सारे उत्तरी…

  • नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो

    नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो

    नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ उपनाम बीसलदेव का समकालीन था। कदाचित् यह राजकवि था। इसने ‘बीसलदेवरासो’ नामक एक छोटा सा (100 पृष्ठों का) ग्रंथ लिखा है, जो वीरगीत के रूप में है। ग्रंथ में निर्माणकाल यों दिया है- बारह सै बहोत्तरा मझारि। जैठबदी नवमी बुधवारि।नाल्ह रसायण आरंभइ। शारदा तूठी ब्रह्मकुमारि।…

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