देवसेन जैन कवि व अन्य अपभ्रंश कवि
संवत् 990 में देवसेन नामक एक जैन ग्रंथकार हुए हैं। उन्होंने भी ‘श्रावकाचार’ नाम की एक पुस्तक दोहों में बनाई थी, जिसकी भाषा अपभ्रंश का अधिक प्रचलित रूप लिये हुए है, जैसे-
जो जिण सासण भाषियउ सो मइ कहियउ सारु।
जो पालइ सइ भाउ करि सो सरि पाबइ पारु॥
इन्हीं देवसेन ने ‘दब्ब-सहाव-पयास’ (द्रव्य-स्वभाव प्रकाश) नामक एक और ग्रंथ दोहों में बनाया था, जिसका पीछे से माइल्ल धवल ने ‘गाथा’ या साहित्य की प्राकृत में रूपांतर किया। इसके पीछे तो जैन कवियों की बहुत सी रचनाएँ मिलती हैं, जैसे श्रुतिपंचमी कथा, योगसार, जसहरचरिउ, णयकुमारचरिउ इत्यादि। ध्यान देने की बात यह है कि चरित्रकाव्य या आख्यान काव्य के लिए अधिकतर चौपाई, दोहे की पद्धति ग्रहण की गई है। पुष्पदंत (संवत् 1029) के ‘आदिपुराण’ और ‘उत्तरपुराण चौपाइयों में हैं। उसी काल के आसपास का ‘जसहरचरिउ’ (यशधर चरित्र) भी चौपाइयों में रचा गया है, जैसे-
बिणुधवलेण सयडु किं हल्लइ। बिणु जीवेण देहु किं चल्लइ।
बिणु जीवेण मोक्ख को पावइ। तुम्हारिसु किं अप्पड़ आवइ॥
चौपाई-दोहे की यह परंपरा हम आगे चलकर सूफियों की प्रेम कहानियों में, तुलसी के रामचरितमानस में तथा छत्रप्रकाश, ब्रजविलास, सबलसिंह चौहान के महाभारत इत्यादि अनेक आख्यान काव्यों में पाते हैं।
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