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हिंदी साहित्य का आदिकाल
हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘वीरगाथा काल’ तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे ‘वीरकाल’ नाम दिया है। इस काल की समय के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले मिश्र बंधुओं ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बीजवपन काल। डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको चारण-काल कहा है और राहुल संकृत्यायन ने सिद्ध-सामन्त काल।
नाथ साहित्य की विशेषताएँ
यहाँ पर नाथ साहित्य (NATH SAHITYA) के बारे संक्षेप में जानकारी दी जा रही है
जैन साहित्य की सामान्य विशेषताएँ
अपभ्रंश साहित्य को जैन साहित्य कहा जाता है, क्योंकि अपभ्रंश साहित्य के रचयिता जैन आचार्य थे। जैन कवियों की रचनाओं में धर्म और साहित्य का मणिकांचन योग दिखाई देता है। जैन कवि जब साहित्य निर्माण में जुट जाता है तो उस समय उसकी रचना सरस काव्य!-->…
पद्मावत का प्रतीक योजना
मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित 'पद्मावत' को प्रतीकात्मक काव्य कहा जाता है। किंतु यह प्रतीकात्मकता सर्वत्र नहीं है और इससे लौकिक कथा में कोई बाधा नहीं पहुँचती है।
पद्मावत का प्रतीक योजना
पद्मिनी परमसत्ता की प्रतीक है,!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…