रूद्रट संस्कृत काव्यशास्त्री
रुद्रट कश्मीर के निवासी थे तथा इनका जीवन-काल नवम शती का आरंभ माना जाता है।

इनके ग्रंथ का नाम ‘काव्यालंकार’ है, जिसमें १६ अध्याय हैं और कुल ७३४ पद है। यद्यपि रुद्रट अलंकारवादी युग के आचार्य हैं, किंतु भारत के उपरांत रसका व्यवस्थित और स्वतंत्र निरूपण इनके ग्रन्थ में उपलब्ध है। नायक-नायिका-भेद का विस्तृत निरूपण भी इन्होंने सर्वप्रथम किया है। कुछ विद्वान इन्हें अलंकारवादी आचार्य मानते हैं, किंतु अलंकार की अपेक्षा रस के प्रति इनका झुकाव कहीं अधिक है।
सन्दर्भ सामग्री
1) भारतीय काव्यशास्त्र:- डॉ विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
2) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका :- योगेंद्र प्रताप सिंह
3) भारतीय काव्यशास्त्र के नए छितिज:- राम मूर्ति त्रिपाठी
4) भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य सिद्धांत:- डॉ. गणपति चंद्र गुप्त