अभिनवगुप्त संस्कृत काव्यशास्त्री
अभिनवगुप्त कश्मीर के निवासी थे। यह दशम शती के अंत और एकादश शती के आरंभ में विद्यमान थे। इनका काव्यशास्त्र के साथ साथ दर्शनशास्त्र पर भी समान अधिकार था। यही कारण है कि काव्यशास्त्रीय विवेचन को आप अपना उच्च स्तर पर ले गए
ध्वन्यालोक पर ‘लोचन’ और नाट्यशास्त्र पर ‘अभिनव-भारती’ नामक टीकाएं इसके प्रमाण है। इन टीकाओं के गंभीर एवं स्वस्थ विवेचन तथा मार्मिक व्याख्यान के कारण इन्हें स्वतंत्र ग्रंथ का ही महत्व प्राप्त है, और अभिनवगुप्त को टीकाकार के स्थान पर ‘आचार्य’ जैसे महामहिमशाली पद से सुशोभित किया जाता है।
अभिनवगुप्त ने व्याकरण शास्त्र, ध्वनि शास्त्र और नाट्य शास्त्र का अध्ययन क्रमशः नरसिंह गुप्त, भट्ट इन्दुराज और भट्टतौत को गुरु मानकर किया।

अभिनवगुप्त का ‘अभिव्यक्तिवाद’ रस सिद्धांत में एक प्रौढ़ एवं व्यवस्थित वाद है, यद्यपि इस वाद का समय समय पर खंडन किया गया, किंतु फिर भी यह वाद अद्यावधि अचल बना हुआ है। अभिनवगुप्त ने ‘तन्त्रालोक’ नामक श्रेष्ठ दार्शनिक कृति की रचना की। यह ग्रंथ रत्न तंत्र-शास्त्र का विश्वकोष माना जाता है।
स्रोत :
सन्दर्भ सामग्री
1) भारतीय काव्यशास्त्र:- डॉ विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
2) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका :- योगेंद्र प्रताप सिंह
3) भारतीय काव्यशास्त्र के नए छितिज:- राम मूर्ति त्रिपाठी
4) भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य सिद्धांत:- डॉ. गणपति चंद्र गुप्त