भरतमुनि संस्कृत काव्यशास्त्री
भरत मुनि की ख्याति नाट्यशास्त्र के प्रणेता के रूप में है, पर उनके जीवन और व्यक्तित्व के विषय में इतिहास अभी तक मौन है। इस संबंध में विद्वानों का एक मत यह भी है कि भरतमुनि वस्तुतः एक काल्पनिक मुनि का नाम है। इन कतिपय मतों को छोड़ दे तो भरत मुनि को संस्कृत काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है।

आचार्य बलदेव उपाध्याय ने इनका समय द्वितीय शताब्दी माना है। भरत मुनि की प्रसिद्ध रचना नाट्यशास्त्र है। आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र को ‘पंचमवेद’ भी कहा है। नाट्यशास्त्र में 36 अध्याय तथा लगभग पाँच हजार श्लोक हैं।
नाट्यशास्त्र नाट्यविधियों का अमर विश्वकोश है।नाटक की उत्पत्ति, नाट्यशाला, विभिन्न प्रकार के अभिनय, नाटकीय सन्धियाँ, वृत्तियाँ, संगीतशास्त्रीय सिद्धांत आदि इसके प्रमुख विषय हैं। इसके अतिरिक्त 6 ठे, 7 वें और 17 वें अध्यायों में काव्यशास्त्रीय अंगों- रस, गुण, दोष, अलंकार तथा छंद कवि निरूपण हुआ है। नायक-नायिका-भेद का भी इस ग्रंथ में निरूपण हुआ है। भरतमुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ में दस गुण, दस दोष तथा चार अलंकार(यमक उपमा रुपक तथा दीपक) की मीमांसा की है। भरतमुनि ने रस की संख्या आठ मानी है।
सन्दर्भ सामग्री
1) भारतीय काव्यशास्त्र:- डॉ विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
2) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका :- योगेंद्र प्रताप सिंह
3) भारतीय काव्यशास्त्र के नए छितिज:- राम मूर्ति त्रिपाठी
4) भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य सिद्धांत:- डॉ. गणपति चंद्र गुप्त