आधुनिक युग का गद्य साहित्य
शुक्ल युग
पं रामचंद्र शुक्ल (1884-1941)
पं रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) ने निबंध, हिन्दी साहित्य के इतिहास और समालोचना के क्षेत्र में गंभीर लेखन किया।
उन्होंने मनोविकारों पर हिंदी में पहली बार निबंध लेखन किया।
साहित्य समीक्षा से संबंधित निबंधों की भी रचना की.
उनके निबंधों में भाव और विचार अर्थात् बुद्धि और हृदय दोनों का समन्वय है।
हिंदी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा गया उनका इतिहास आज भी अपनी सार्थकता बनाए हुए है।
जायसी, तुलसीदास और सूरदास पर लिखी गयी उनकी आलोचनाओं ने भावी आलोचकों का मार्गदर्शन किया।
प्रेमचंद
कथा साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद ने क्रांति ही कर डाली।
सेवा सदन, रंगभूमि, निर्मला, गबन एवं गोदान आदि उपन्यासों की रचना की।
उनकी तीन सौ से अधिक कहानियां मानसरोवर के आठ भागों में तथा गुप्तधन के दो भागों में संग्रहित हैं।
इसकाल के अन्य कथाकारों में विश्वंभर शर्मा कौशिक, वृंदावनलाल वर्मा, राहुल सांकृत्यायन, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, उपेन्द्रनाथ अश्क, जयशंकर प्रसाद, भगवतीचरण वर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
जयशंकर प्रसाद
नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का विशेष स्थान है।
इनके चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों में इतिहास और कल्पना तथा भारतीय और पाश्चात्य नाट्य पद्धतियों का समन्वय हुआ है।
लक्ष्मीनारायण मिश्र, हरिकृष्ण प्रेमी, जगदीशचंद्र माथुर आदि इस काल के उल्लेखनीय नाटककार हैं।