कुन्तक संस्कृत काव्यशास्त्री
कुंतक कश्मीर के निवासी थे तथा इन्हें ‘वक्रोक्ति’ संप्रदाय के प्रवर्तक माना जाता है। कुंतक का समय दशम शती का अंत तथा एकादश शती का आरंभ माना जाता है। इनकी प्रसिद्धि ‘वक्रोक्तिजीवितम्’ नामक ग्रंथ के कारण है। इसमें 4 उन्मेष है। कुंतक प्रतिभासंपन्न आचार्य थे।

इन्होंने वक्रोक्ति को काव्य का ‘जीवित’ माना। इन्होंने सर्वप्रथम अलंकारों की वर्तमान संख्या को स्थिर करने का मार्ग दिखाया। स्वभावोक्ति अलंकार के संबंध में इन की धारणा साहसपूर्ण है, और रसवदादि अलंकारों का विवेचन नितांत मालिक है।
जानकारी स्रोत : कुन्तक संस्कृत काव्यशास्त्री