जैन धर्म के मूल सिद्धान्त
जैन धर्म के मूल सिद्धान्त चार बातों पर आधारित हैं – अहिंसा, सत्य भाषण , अस्तेय और अनासक्ति। बाद में ब्रह्माचर्य भी इसमें शामिल कर लिया गया। इस धर्म में बहुत से आचार्य और तीर्थकार हुए. जिनकी संख्या २४ मानी जाती है। इन्होंने इस धर्म को फैलाने का प्रयास किया।
जैन धर्म के शाखा
जैन धर्म दो शाखाओं दिगंबर और श्वेतांबर में बँट गया। जैन धर्म की इन दो शाखाओं ने धर्म प्रसार के लिए जो साहित्य लिखा वह जैन साहित्य के नाम से जाना जाता है।
जैन कवियों ने जनसामान्य तक सदाचार के सिद्धान्तो को पहुँचाने के लिए चरित काव्य, कथात्मक काव्य, रास, ग्रन्थ, उपदेश प्रधान आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना की। कथाओं के माध्यम से शलाका पुरूषों के आदर्श चरित्र को प्रस्तुत करना, जनसाधारण का धार्मिक एवं चारित्रिक विकास करना, सदाचार, अहिंसा, संयम आदि गुणों की महत्ता बताना और उन्हें जीवन में धारण करने के लिए प्रेरित करना कवियों का मुख्य उद्देश्य था।
जैन साहित्य
- अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है।
- जैन साहित्य के विशेषज्ञ तथा अनुसन्धानपूर्ण लेखक अगरचन्द नाहटा थे।
- जैन साहित्य, जिसे ‘आगम‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है।
- आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं।
- इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।
12 आगम
बारह आगम इस प्रकार हैं-
- 1. आचरांग सुत्त,
- 2. सूर्यकडंक,
- 3. थापंग,
- 4. समवायांग,
- 5. भगवतीसूत्र,
- 6. न्यायधम्मकहाओ,
- 7. उवासगदसाओं,
- 8. अन्तगडदसाओ,
- 9. अणुत्तरोववाइयदसाओं,
- 10. पण्हावागरणिआई,
- 11. विवागसुयं, और
- 12 द्विट्ठिवाय।
इन आगम ग्रंथो के ‘आचरांगसूत्त’ से जैन भिक्षुओं के विधि-निषेधों एवं आचार-विचारों का विवरण एवं ‘भगवतीसूत्र’ से महावीर स्वामी के जीवन-शिक्षाओं आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
10 प्रकीर्ण
आगम ग्रंन्थों के अतिरिक्त 10 प्रकीर्ण इस प्रकार हैं-
- 1. चतुःशरण,
- 2. आतुर प्रत्याख्यान,
- 3. भक्तिपरीज्ञा,
- 4. संस्तार,
- 5. तांदुलवैतालिक,
- 6. चंद्रवेध्यक,
- 7. गणितविद्या,
- 8. देवेन्द्रस्तव,
- 9. वीरस्तव और
- 10.महाप्रत्याख्यान।
6 छेदसूत्र
छेदसूत्र की संख्या 6 है-
- 1. निशीथ,
- 2. महानिशीथ,
- 3. व्यवहार,
- 4. आचारदशा,
- 5. कल्प और
- 6. पंचकल्प ।
एक नंदि सूत्र एवं एक अनुयोग द्वारा जैन धर्म अनुयायियों के स्वतंत्र ग्रंथ एवं विश्वकोष हैं।
चरित
- जैन साहित्य में पुराणों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है जिन्हें ‘चरित’ भी कहा जाता है।
- ये प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश तीनों भाषाओं में लिखें गयें हैं।
- इनमें पद्म पुराण, हरिवंश पुराण, आदि पुराण, इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
- जैन पुराणों का समय छठी शताब्दी से सोलहवीं-सत्रवहीं शताब्दी तक निर्धारित किया गया है।
- जैन ग्रंथों में परिशिष्ट पर्व, भद्रबाहुचरित, आवश्यकसूत्र, आचारांगसूत्र, भगवतीसूत्र, कालिकापुराणा आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।