भाषा के अभिलक्षण

भाषा विज्ञान में भाषा के अभिलक्षण जानने से पहले कुछ बातों को समझने का प्रयास करते हैं । भाषा से आशय है ‘ मनुष्य की भाषा ‘ तथा अभिलक्षण से तात्पर्य है  ‘ विशेषता ‘ या मूलभूत लक्षण ।

भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा
भाषा के अभिलक्षण: भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा

भाषा के अभिलक्षण

यादृच्छिकता

यादृच्छिकता का अर्थ है ‘ जैसी इच्छा ‘ या ‘ माना हुआ ‘ । हमारी भाषा में किसी वस्तु या भाव का किसी शब्द के साथ सहज-स्वाभाविक संबंध नहीं है। वह समाज की इच्छा अनुसार माना हुआ संबंध है यदि सहज-स्वाभाविक संबंध होता , तो सभी भाषाओं में एक वस्तु के लिए एक ही शब्द प्रयुक्त होता ।

पानी ‘ के लिए सभी भाषाएं ‘ पानी ‘ का ही उपयोग करती है। अंग्रेजी शब्द ‘ वाटर ‘ का प्रयोग नहीं करती , ना फारसी शब्द में ‘ आब ‘ और रूसी भाषा में ‘ बदा ‘ का प्रयोग। इसलिए सभी भाषाओं के शब्दों में हम यादृच्छिकता पाते हैं ।

सृजनात्मकता /उत्पादकता

किसी भी भाषा में शब्द प्राय:  सीमित होते हैं , किंतु उन्हीं के आधार पर हम अपनी आवश्यकता अनुसार सादृश्य (समान) के आधार पर नित्य नए-नए असीमित वाक्यों का सृजन निर्माण करते हैं।

जैसे – ‘ नए ‘ , ‘ तुम ‘ , ‘ वहां ‘ , ‘ बुलवाना ‘ इन चार शब्दों से बहुत सारे नए वाक्यों का सृजन किया जा सकता है –

  • मैंने उसे तुम से बुलवाया।
  • मैंने उन्हें तुमसे बुलवाया।
  • उसने मुझे तुम से बुलवाया।
  • उसने तुम्हें मुझ से बुलवाया।

किंतु पशु-पक्षी अपनी भाषा में इस तरह की नए-नए वाक्य का निर्माण नहीं कर सकते , इसे उत्पादकता भी कहा जा सकता है।

अनुकरण ग्राह्यता

भाषा के अभिलक्षण में यह कि मानव भाषा अनुकरण द्वारा सीखी या ग्रहण की जा सकती है।

जन्म से कोई व्यक्ति कोई भी भाषा नहीं जानता , मां के पेट से कोई बच्चा भाषा सीख कर नहीं आता , माता-पिता , भाई-बहन , शिक्षक और विशेष भाषा – भाषी समाज के सदस्य जैसा बोलते हैं , बच्चा भी उन्हीं ध्वनियों का अनुकरण कर बोलने की क्षमता विकसित करता है।

भाषा के अभिलक्षण को कुछ अन्य नामों से भी पुकारा गया है

जैसे –

  • सांस्कृतिक प्रेषणीयता  ,
  • परंपरा अनुगामिता ,
  • और अधिगम्यता ।

परिवर्तनशीलता

मानव भाषा परिवर्तनशील होती है। समय के अनुसार मानव भाषा का रूप बदलता रहता है , किंतु मानवेतर जीवो पशु – पक्षियों की भाषा परिवर्तनशील नहीं होती।

जैसे

‘कुत्ते‘ पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक ही प्रकार की और अपरिवर्तित भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं। किंतु मानव भाषा हमेशा परिवर्तित होती आ रही है।

भाषा सामाजिक संपत्ति है

एक विशेष भाषा – भाषी समाज प्रत्येक सदस्य की सामाजिक संपत्ति है। एक मानव शिशु जिसे समाज में पाला – पोसा जाता है , उसी से वह भाषा सीखता है।  मानव समाज से बाहर रहकर कोई भी भाषा को नहीं सीख सकता।

उदाहरण के लिए,

एक बालक , जिसको कि बचपन में भेड़िए उठाकर ले गए थे , वह मानव भाषा नहीं सीख पाया , वरन भेड़िए की ही भाषा बोलता था। 

इससे यह सिद्ध होता है की भाषा सामाजिक संपत्ति है , समाज के बिना भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है।

भाषा परंपरागत वस्तु है

प्रत्येक भाषा – भाषी समाज के सदस्य को भाषा परंपरा से प्राप्त होती है। एक शिशु जिसे माता – पिता तथा समाज के अन्य सदस्यों से उसे प्राप्त करता है। अतः भाषा परंपरागत वस्तु है।

भाषा अर्जित संपत्ति है

प्रत्येक बच्चे में सीखने की नैसर्गिक बुद्धि अलग – अलग होती है। जिस तरह वह चलना , खाना-पीना सीखता है उसी प्रकार बोलना भी। जिस वातावरण में और परिवेश में बच्चा रहता है उसी की भाषा को वह अर्जित (सीखता) करता है।

एक भारतीय बच्चा इंग्लैंड की भाषाभाषी समाज में रहकर ‘अंग्रेजी‘ सीखेगा ‘हिंदी‘ नहीं। अतः भाषा प्राप्त हो जाने वाली वस्तु नहीं है , वरण उसे एक विशेष वातावरण में रहकर अर्जित करना पड़ता है।

भूमिकाओं की परंपरा परिवर्तनशीलता

जब दो व्यक्ति आपस में बातचीत करते हैं तो , वक्ता और श्रोता की भूमिकाएं बदलती रहती है।

वक्ता बोलता है , श्रोता सुनता है और जब श्रोता उत्तर देता है  , तो वक्ता बन जाता है। यह भूमिकाओं की परिवर्तनशीलता अदला – बदली या क्रम परिवर्तन है।

भाषा सार्वजनिक संपत्ति है

भाषा किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है और न ही उस पर किसी का एकाधिकार है।

कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी वर्ण , वर्ग , धर्म , परिवार , समाज अथवा देश का हो , किसी भी भाषा को सीख कर प्रयोग कर सकता है।

भाषा का व्यक्तित्व (आकार) स्वतंत्र होता है

भाषा  ध्वनि संकेत और उनके अर्थ यादृच्छिक और उस समाज के द्वारा निर्धारित होते हैं , तथा उनकी निजी व्याकरणिक व्यवस्था होती है। अतः उनका व्यक्तित्व भी पृथक होता है। इस स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण ही भाषा को सीखना पड़ता है।

भाषा व्यवहार के लिए अपने में पूर्ण होती है

प्रत्येक भाषा अपने विशिष्ट भाषा समाज के लिए पूर्ण होती है , क्योंकि उसके सदस्य बिना किसी रूकावट अपना पारस्परिक व्यवहार किसी भाषा में चलाते हैं।

भारतीय समाज के रिश्तो में प्रकट करने के लिए चाचा, ताई, मौसी जैसे अनेक शब्द मिलेंगे, किंतु अंग्रेजी भाषा में ऐसा नहीं है। 

भाषा जटिलता से सरलता की ओर उन्मुक्त होती है

भाषा की यह सहज प्रवृत्ति होती है कि वह कम से कम प्रयत्न करके अधिक से अधिक बार, दूसरों को कह सके तो इस प्रवृत्ति के कारण ही उच्चारण में कठिन शब्द घिसने या परिवर्तित होने लगते हैं।

 संस्कृत से हिंदी में बहुत से शब्द भिन्न बन गए हैं जैसे – ‘मौलिक‘ से ‘मौली‘ , ‘स्वर्ण‘ से ‘सोना‘ , ‘हस्त‘ से ‘हाथ‘ संस्कृत में ‘तीन लिंग‘ होते हैं , हिंदी में आते-आते ‘दो‘ ही रह गए हैं। वचन भी ‘तीन‘ से ‘दो‘ हो गए हैं।

इससे स्पष्ट है कि भाषा जटिलता से सरलता की ओर उन्मुक्त होती है।

भाव संप्रेषण का सर्वश्रेष्ठ साधन

भाषा भाव संप्रेषण का सर्वश्रेष्ठ साधन है , मानव बुद्धि संपन्न प्राणी है , भाषा के द्वारा सभी प्रकार के भाव विचार सरलता और सुगमता से प्रकट किए जा सकते हैं।

एक शिशु के पास भाषा नहीं होती वह अपनी सुखात्मक अथवा दूखात्मक अनुभूतियों को हंसकर अथवा रोकर प्रकट करता है। मानव बुद्धि ध्वनि को सार्थकता प्रदान कर उन्हें व्यवहार में लाता है ।

भाषा मानव जीवन में जीवित होती है

भाषा मानव का अविष्कार है , अपने जीवन व्यवहार के लिए ही ध्वनि संकेतों को सार्थकता प्रदान की है , मानव जीवन को नए आविष्कारों नए क्रियाकलापों नए विचारों के लिए जब-जब  आवश्यकता हुई उसने नए ध्वनि संकेत बना लिए।

भाषा का प्रवाह अविच्छिन्न (जो अलग ना हो)

भाषा किसी व्यक्ति द्वारा निर्मित नहीं होती और ना ही उसका कभी प्रवाह टूटता है। भाषा का प्रभाव भी अवश्य है जिस प्रकार नदी का प्रवाह नैसर्गिक एवं अविच्छिन्न होता है उसी प्रकार से भाषा का भी।

कबीर ने भाषा को ‘बहता नीर‘ कहकर नदी से की है। अनेक दिशाओं से कई नदी-नाले आकर उसमें घुल मिल जाते हैं। उसका प्रवाह निरंतर आगे बढ़ता रहता है।

भाषा का कालांतरण

मानव भाषा वर्तमान काल में प्रस्तुत होते हुए भी भूत या भविष्य के विषय में विश्लेषण करने में सक्षम सिद्ध होती है। इस तरह मानव की भाषा कालांतरण कर सकती है , ऐसे ही पशु – पक्षियों की भाषा प्राय: आस–पास के बारे में सूचना दे सकती है।

मौलिक श्रव्यता (सुनना)

मानव भाषा मुख से बोली जाती है तथा कान से सुनी जाती है, भाषा की लिखित और पठित सामग्री मूलतः इसी पर आधारित होती है।

आशा है आपको हिंदी साहित्य का यह पोस्ट (भाषा के अभिलक्षण) जानकारीप्रद लगी होगी, यदि हाँ तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें और यदि इसके अतिरिक्त पोस्ट से संबन्धित आपके पास अतिरिक्त और सही जानकारियाँ हो कमेंट बॉक्स में जरुर लिखें . हम उन्हें अगली बार जरुर अपडेट करेंगे. आप से नीचे दिए गए लिंक से जुड़ सकते हैं

You might also like
Leave A Reply