भाषा की महत्त्व

भाषा की महत्त्व एवं विशेषताएँ

भाषा की महत्त्व एवं विशेषताएँ : मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज में रहने के नाते उसे आपस में सर्वदा ही विचार-विनिमय करना पड़ता है। कभी वह शब्दों या वाक्यों द्वारा अपने आपको प्रकट करता है। तो कभी सिर हिलाने से उसका काम चल जाता है। समाज के उच्च और शिक्षित वर्ग में लोगों को निमंत्रित करने के लिए निमत्रण-पत्र छपवाये जाते हैं । देहात के अनपढ़ और निम्नवर्ग में निमंत्रित करने के लिये हल्दी, सुपारी या इलायची बाँटना पर्याप्त समझा जाता रहा है।

रेलवे गार्ड और रेल-चालक का विचार-विनिमय झंडियों से होता है। तो बिहारों के पात्र ‘भरे भवन करता है नैनन ही सो बात’ चोर अँधेरे में एक-दूसरे का हाथ छूकर या दबाकर अपने आपको प्रकट कर लिया करते हैं। इसी तरह हाथ से संकेत, करतल-ध्वनि, आँख टेढ़ी करना, मारना या दवाना, खाँसना, मुँह विचकाना तथा गहरी साँस लेना आदि अनेक प्रकार के साधनों से हमारे विचार-विनिमय का काम चलता है।

गध-इंद्रिय, स्वाद इंद्रिय, स्पर्श-इंद्रिय, दृग-इंद्रिय तथा कर्ण-इंद्रिय इन पाँच ज्ञान-इंद्रियों में सबसे अधिक प्रयोग कर्ण-इंद्रिय का होता है। अपनी सामान्य बातचीत में हम इसी का प्रयोग करते हैं। वक्ता बोलता है और श्रोता सुनकर विचार या भाव को ग्रहण करता है।

भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा
भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा

भाषा की महत्त्व

भाषा मनोगत भाव प्रकट करने का सर्वोत्कृष्ट साधन है। यद्यपि आँख, सिर और हाथ आदि अंगों के संचालन से भी भाव प्रकट किए जा सकते हैं। किंतु भाषा जितनी शीघ्रता, सुगमता और स्पष्टता से भाव प्रकट करती हैं उतनी सरलता से अन्य साधन नहीं। यदि भाषा न होती तो मनुष्य, पशुओं से भी बदतर होता;क्योंकि पशु भी करुणा, क्रोध, प्रेम, भय आदि कुछ भाव अपने कान, पूंछ हिलाकर या गरजकर, मूंदकर व्यक्त कर लेते हैं।

भाषा के आविर्भाव से सारा मानव संसार गूंगों की विराट बस्ती बनने से बच गया। ईश्वर ने हमें वाणी दी और बुद्धि भी। हमने इन दोनों के उचित संयोग से भाषा का आविष्कार किया। भाषा ने भी बदले में हमें इस योग्य बनाया कि हम अपने मन की बात एक दूसरे से कह सकें। परंतु भाषा की उपयोगिता केवल कहने-सुनने तक ही सीमित नहीं हैं कहने सुनने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि हम जो कुछ कहना चाहें वह सब ऐसे नपे-तुले शब्दों में इस ढंग से कह सके कि सुनने वाला शब्दों के सहारे हमारी बात ठीक-ठीक समझ जाए।

ऐसा न हो कि हम कहें खेत की वह सुन खलिहान की। बोलने और समझने के अतिरिक्त भाषा का उपयोग पढ़ने और लिखने में भी होता है। कहने और समझने भाँति लिखने और पढ़ने में भी उपयुक्त शब्दों के द्वारा भाव प्रकट करने उसे ठीक-ठीक पढ़कर समझने की आवश्यकता होती है। अत: भाषा मनुष्य के लिए माध्यम है ठीक-ठीक बोलने, समझने, लिखने और पढ़ने का।

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