आनंदवर्धन संस्कृत काव्यशास्त्री
आनंदवर्धन कश्मीर के राजा अवन्ति वर्मा के सभापंडित थे। इनका जीवन काल नवम शती का मध्य भाग है। आनंदवर्धन ने काव्यशास्त्र मे ‘ध्वनि सम्प्रदाय’ की स्थापना की।

इनकी ख्याति ‘ध्वन्यालोक’ नामक अमर ग्रंथ के कारण है। इस ग्रंथ में चार उद्योग(अध्याय) है, तथा ११७ कारिकाएं(सूत्रों की व्याख्या)।
काव्यशास्त्रीय आचार्यों में आनंदवर्धन एक युगांतकारी आचार्य हैं। इन्होंने ध्वनि को काव्य की आत्मा माना। यद्यपि इन्होंने रस को ध्वनि का ही भेद माना है, पर रसध्वनि के प्रति अन्य ध्वनि-भेंदों की अपेक्षा इन्होंने अधिक समादर प्रकट किया है।
सन्दर्भ सामग्री
1) भारतीय काव्यशास्त्र:- डॉ विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
2) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका :- योगेंद्र प्रताप सिंह
3) भारतीय काव्यशास्त्र के नए छितिज:- राम मूर्ति त्रिपाठी
4) भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य सिद्धांत:- डॉ. गणपति चंद्र गुप्त