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July 2023

श्रृंगार रस

श्रृंगार रस श्रृंगार दो शब्दों के योग से बना है श्रृंग + आर। श्रृंग का अर्थ है काम की वृद्धि , तथा आर का अर्थ है प्राप्ति। अर्थात जो काम अथवा प्रेम की वृद्धि करें वह श्रृंगार है। श्रृंगार का स्थाई भाव दांपत्य रति /

रौद्र रस

रौद्र रस भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है, यथा-‘तेषामुत्पत्तिहेतवच्क्षत्वारो रसा: शृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’। रौद्र से करुण

हिंदी कहानी के तत्व

हिंदी कहानी के तत्व 1. कथानककिसी प्रसंग का वर्णन करना इसमें जीवन के केवल एक अंश का वर्णन होता है इसमें किसी घटना का चित्रण भी शामिल होता है| 2. पात्र का चरित्र चित्रणकिसी भी कहानी में कई पात्र होते हैं यद्यपि पात्रों की संख्या सीमित

करुण रस

करुण रस भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित आठ नाट्यरसों में शृंगार और हास्य के अनन्तर तथा रौद्र से पूर्व करुण रस की गणना की गई । ‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पत्ति 'रौद्र रस' से मानी गई है और उसकी उत्पत्ति

वीर रस

वीर रस शृंगार, रौद्र तथा वीभत्स के साथ वीररस को भी भरत मुनि ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा देवता इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति

हिन्दी पद्य साहित्य के आधुनिक काल

हिन्दी पद्य साहित्य के आधुनिक काल हिन्दी पद्य साहित्य के आधुनिक काल हिन्दी पद्य साहित्य के आधुनिक कालनवजागरण काल (भारतेन्दु युग)सुधार काल (द्विवेदी युग)छायावादी युगप्रगतिवादप्रयोगवादनई कविता और समकालीन कवितावैयक्तिक धारा -प्रगतिशील

हिंदी साहित्य का काल विभाग

हिंदी साहित्य का काल विभाग जब कि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्त्तन होता चला जाता है । आदि

अद्भुत रस

अद्भुत रस अद्भुत रस के भरतमुनि ने दो भेद इए हैं- दिव्य तथा आनन्दज । वैष्णव आचार्य इसके दृष्ट, श्रुत, संकीर्तित तथा अनुमित नामक भेद करते हैं। अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है। विस्मय का साधारण रूप आश्चर्य से

रीतिमुक्त कवि बोधा का परिचय

बोधा का परिचय बोधा का जन्म राजापुर जिला बाँदा मे हुआ यह सरयू पारी ब्राह्मण थे। इनका मूल नाम बुद्धिसेन था। शिव सिंह सरोज के अनुसार इनका जन्म संवत् 1804 (1747 ई. ) मे हुआ। इनका काव्य काल संवत्1830 -1860 (1773