संत काव्य का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया काव्य।

हिन्दी में ‘संत काव्य’ कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के द्वारा रचा गया काव्य।
संत कवि : कबीर, नामदेव, रैदास, नानक, धर्मदास, रज्जब, मलूकदास, दादू, सुंदरदास, चरणदास, सहजोबाई आदि।सुंदरदास को छोड़कर सभी संत कवि कामगार तबके से आते है; जैसे-कबीर (जुलाहा), नामदेव (दर्जी), रैदास (चमार), दादू (बुनकर), सेना (नाई), सदना (कसाई)।
संत काव्य की विशेषताएँ-
धार्मिक :
(1) निर्गुण ब्रह्म की संकल्पना
(2) गुरु की महत्ता
(3) योग व भक्ति का समन्वय
(4) पंचमकार
(5) अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता
(6) आडम्बरवाद का विरोध
(7) संप्रदायवाद का विरोध;
सामाजिक :
(1) जातिवाद का विरोध
(2) समानता के प्रेम पर बल;
शिल्पगत :
(1) मुक्तक काव्य-रूप
(2) मिश्रित भाषा
(3) उलटबाँसी शैली (संधा/संध्याभाषा-हर प्रसाद शास्त्री)
(4) पौराणिक संदर्भो व हठयोग से संबंधित मिथकीय प्रयोग
(5) प्रतीकों का भरपूर प्रयोग।
- रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी भाषा’ की संज्ञा दी है।
- श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा है।
- बोली के ठेठ शब्दों के प्रयोग के कारण ही हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।