नयी कविता प्रसिद्ध पंक्तियाँ

हम तो ‘सारा-का सारा’ लेंगे जीवन
-रघुवीर सहाय
‘कम-से-कम’ वाली बात न हमसे कहिए।
मौन भी अभिव्यंजना है
-अज्ञेय
जितना तुम्हारा सच है, उतना ही कहो
तुम व्याप नहीं सकते
तुममें जो व्यापा है उसे ही निबाहो।
जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।
-भवानी प्रसाद मिश्र
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम -किसिम के
गीत बेचता हूँ। (‘गीतफरोश’)
हम सब बौने है, मन से, मस्तिष्क से
-गिरिजा कुमार माथुर
भावना से, चेतना से भी बुद्धि से, विवेक से भी क्योंकि हम जन हैं
साधारण हैं
हम नहीं विशिष्ट।
मैं प्रस्तुत हूँ
-कीर्ति चौधरी
यह क्षण भी कहीं न खो जाय
अभिमान नाम का, पद का भी तो होता है।
कुछ होगा, कुछ होगा अगर मैं बोलूंगा
-रघुवीर सहाय
न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का मेरे अंदर एक कायर टूटेगा, टूट !
जो कुछ है, उससे बेहतर चाहिए
पूरी दुनिया साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए
जो मैं हो नहीं सकता। -मुक्तिबोध
भागता मैं दम छोड़
-मुक्तिबोध
घूम गया कई मोड़। (‘अंधेरे में’)
दुखों के दागों को तमगों सा पहना
-मुक्तिबोध
(‘अंधेरे में’)
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।
-मुक्तिबोध
(‘अंधेरे में’)
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
-धर्मवीर भारती
लेकिन मुझे फ़ेंक मत
इतिहासों की सामूहिक गति
सहसा झूठी पड़ जाने पर क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहिये का आश्रय ले।
(‘टूटा पहिया’)
जिंदगी, दो उंगलियों में दबी
-नरेश मेहता
सस्ती सिगरेट के जलते हुए टुकड़े की तरह है
जिसे कुछ लम्हों में पीकर
गली में फ़ेंक दूँगा।
मैं यह तुम्हारा अश्वत्थामा हूँ
-धर्मवीर भारती
शेष हूँ अभी तक
जैसे रोगी मुर्दे के मुख में शेष रहता है
गंदा कफ बासी पीप के रूप में
शेष अभी तक मैं (‘अंधा युग’)
दुःख सबको मांजता है और
-अज्ञेय
चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किन्तु जिनको माँजता है
उन्हें यह सीख देता है सबको मुक्त रखे।
अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे
-मुक्तिबोध
उठाने ही होंगे
तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब। (‘अंधेरे में’)
साँप !
-अज्ञेय
तुम सभ्य हुए तो नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ (उत्तर दोगे ?)
तब कैसे सीखा डँसना
विषकहाँ पाया ?
पर सच तो यह है
-केदार नाथ सिंह
कि यहाँ या कहीं भी फर्क नहीं पड़ता।
तुमने जहाँ लिखा है ‘प्यार’
वहाँ लिख दो ‘सड़क’
फर्क नहीं पड़ता।
मेरे युग का मुहावरा है :
‘फर्क नहीं पड़ता’ ।
मैं मरूँगा सुखी
-अज्ञेय
मैंने जीवन की धज्जियाँ उड़ाई है।