भाषा एक प्रतीक व्यवस्था के रूप में


‘प्रतीक’ जिस अर्थ तथा वस्तु की ओर संकेत करता है, वस्तुतः वह संसार में सबके लिए समान होते हैं अंतर केवल प्रतीक के स्तर पर ही होता है।

Complete course of Hindi literature
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भाषा एक प्रतीक व्यवस्था के रूप में

भाषा मनुष्य के मुख से (वागेंद्रियों से) उच्चरित होती है पर उच्चारण के अंतर्गत मनुष्य तरह-तरह की ध्वनियों (स्वर तथा व्यंजन) के मेल से बने शब्दों का उच्चारण करता है। इन शब्दों से वाक्य बनाता है और वाक्यों के प्रयोग से वह वार्तालाप करता है। एक ओर भाषा के इन शब्दों का कोई-न-कोई अर्थ होता है दूसरी ओर ये किसी-न-किसी वस्तु की ओर संकेत करते हैं।

उदाहरण के लिए ‘किताब’ शब्द का हिंदी में एक अर्थ है, जिससे प्रत्येक हिंदी भाषा-भाषी परिचित है दूसरी ओर यह शब्द किसी वस्तु (object) यानी किताब की ओर भी संकेत करता है। यदि हम किसी से कहते हैं कि ‘एक किताब लेकर आओ’ तो वह व्यक्ति ‘किताब’ शब्द को सुनकर उसके अर्थ तक पहुँचता है और फिर ‘किताब’ को ही लेकर आता है, किसी अन्य वस्तु को नहीं।

कहने का तात्पर्य यही है कि ‘शब्द’ अपने में वस्तु नहीं होता बल्कि किसी वस्तु को अभिव्यक्त (represent) करता है। इसी बात को इस तरह से कहा जा सकता है कि शब्द तो किसी वस्तु का प्रतीक (sign) होता है।

‘किताब’ शब्द (प्रतीक) का अर्थ तथा वस्तु किताब तो संसार में हर भाषा-भाषी के लिए समान है अंतर केवल ‘प्रतीक’ के स्तर पर ही है। कोई उसे ‘बुक’ (book) कहता है तो कोई ‘पुस्तक’ । इस तरह प्रत्येक ‘प्रतीक’ की प्रकृति त्रिरेखीय् (three dimentional) होती है। एक ओर वह ‘वस्तु’ की ओर संकेत करता है तो दूसरी ओर उसके अर्थ की ओर-
अर्थ (कथ्य)

प्रतीक (अभिव्यक्ति)……………वस्तु/पशु
घोड़ा (हिंदी)
अश्व (संस्कृत)
होर्स (अंग्रेजी)
कोनि (पोलिश)

वस्तुतः प्रतीक वह है जो किसी समाज या समूह द्वारा किसी अन्य वस्तु, गुण अथवा विशेषता के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

उदाहरण के ‘घोड़ा’ वस्तु/पशु के लिए हिंदी में ध्वन्यात्मक प्रतीक है। ‘घोड़ा’, संस्कृत में ‘अश्व’, अंग्रेजी में ‘होर्स’ (horse) तथा पोलिश भाषा ‘कोनि’ कहलाता है। दूसरी ओर इन सभी भाषा-भाषियों के लिए घोड़ा (पशु) तथा उसका अर्थ समान है। इसी तरह ‘लाल बत्ती’ (red light) संसार में सभी के लिए रुकने का तथा ‘हरी बत्ती’ (green light) चलने का प्रतीक है।

ध्यान रखिए भाषा का प्रत्येक शब्द किसी-न-किसी वस्तु का प्रतीक होता है। इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है। भाषा में अर्थ ही ‘कथ्य’ होता है तथा प्रतीक अभिव्यक्ति। अतः भाषा कथ्य और अभिव्यक्ति का समन्वित रूप है।


प्रतीकों के संबंध में एक बात और ध्यान रखने योग्य यह है कि वस्तु के लिए प्रतीक का निर्धारण ईश्वर की इच्छा से न होकर मानव इच्छा द्वारा होता है। किसी व्यक्ति ने हिंदी में एक वस्तु को ‘कुर्सी’ और दूसरी को ‘मेज’ कह दिया और उसी को समस्त भाषा-भाषियों ने यदि स्वीकार कर लिया तो ‘कुर्सी’ और ‘मेज’ शब्द उन वस्तुओं के लिए प्रयोग में आने लगे। अतः वस्तुओं के लिए प्रतीकों का निर्धारण ‘यादृच्छिक’ (इच्छा से दिया गया नाम) होता है।

प्रतीक का निर्धारण

प्रतीक का निर्धारण व्यक्ति द्वारा होता है और उसे स्वीकृति समाज द्वारा दी जाती है। इसलिए भाषा का संबंध एक ओर व्यक्ति से होता है तो दूसरी ओर समाज से। अतः भाषा केवल ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था नहीं है, बल्कि यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था होती है।

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