हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थ

हिन्दी साहित्य के इतिहास साक्ष्य दो प्रकार के होते हैं- पहला अन्तःसाक्ष्य दूसरा बाह्य साक्ष्य ।

अन्तःसाक्ष्य के अन्तर्गत उपलब्ध सामग्री में आधारभूत कृतियों एवं ग्रंथों, कवि एवं लेखकों की फुटकर प्रकाशित एवं अप्रकाशित रचनाएँ होती है । बाह्य साक्ष्य के अन्तर्गत ताम्रपत्रावली, शिलालेख, वंशावलियाँ, जनश्रुतियाँ, कहावतें, ख्यात एवं वचनिकाएँ जैसी सामग्री होती है। जो तत्कालीन युग को परिलक्षित करती है। हिन्दी साहित्य में भी अंतः और बाह्य स्रोतों के माध्यम से इतिहास लेखन प्रारम्भ हुआ ।

जिसमें गोकुलनाथ द्वारा रचित चौरासी वैष्णवन की वार्ता और दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता, नाभादास कृत भक्तमाल, ध्रुवदास कृत भक्त नामावली एवं सन्तवाणी संग्रह, भिखारीदास कृत “काव्य निर्णय” तथा अन्य कृतियाँ कविनामावली, मोदतरंगिनी, शरृंगार संग्रह, हरिश्चन्द्र कृत ‘सुन्दरी तिलक’, मातादीन मिश्र का “कवित्त रत्नाकर” में कई कवियों की कविताओं का परिचय मिलता है । इस प्रकार अन्तः साक्ष्य प्रकाशित रचनाओं एवं अप्रकाशित रचनाओं का संग्रह होता है।

बाह्य साक्ष्य के माध्यम से इतिहासकार अपनी पैनी दृष्टि से तत्कालीन परिस्थितियों की खोज कर लेता है । कर्नल टॉड द्वारा लिखा गया राजस्थान का इतिहास में चारण कवियों का तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्ट में अज्ञात कवियों एवं लेखकों का परिचय मिलता है। मोतीलाल मेनारिया ने राजस्थान में हिन्दी के हस्त लिखित ग्रंर्थो की खोज की तथा हिन्दुओं के धार्मिक दर्शन के सिद्धांतों को निरूपित करते हुए उस समय के कवि लेखकों एवं आचार्यों के विचारों की भी समीक्षा की है।

जनश्रुतियों से तात्पर्य है जनता में प्रचलित बातें जिसमें सत्य का अंश छिपा रहता है। यह कई वर्षों तक लोगों की जीभ पर रहती है, किन्तु धीरे-धीरे लिपिबद्ध हो जाती है। उनमें कवि की जीवन सम्बन्धी घटनाओं का योग होता है तथा प्राचीन ऐतिहासिक शिलालेखों के आधार पर उस युग का चित्रण मिलता है । इस प्रकार की आधारभूत सामग्री के मूल स्रोतों के माध्यम से ही इतिहास लेखन होता है । अतः यह लिपि बद्ध होकर एक ऐतिहासिक ग्रंथ बन जाता है।

हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थ

हिन्दी साहित्य का इतिहास
हिन्दी साहित्य का इतिहास

1.गार्सा-द-तासी-इस्त्वार द ला लितरेत्यूर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी

2.मौलवी करीमुद्दीनतबका तश्शुअहा में तजकिरान्ई जुअहा- ई हिंदी

3.शिवसिंह सेंगर शिवसिंह सरोज

4.सरजाँर्ज ग्रियर्सन -द माडर्न वर्नेक्यूलर लिटरेचर आँफ हिन्दुस्तान

5.मिश्रबन्धु- मिश्रबन्धु विनोद
( श्यामबिहारी मिश्र , शुकदेव बिहारी मिश्र , गणेश बिहारी मिश्र )

6.आचर्य रामचन्द शक्ल- हिंदी साहित्य का इतिहास

7.डा. रामकुमार वर्मा-हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास

8.बाबू श्यामसुन्दर दास-हिंदी भाषा और साहित्य

9.आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी-हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य का

10.डा. धीरेन्द्र वर्मा- हिंदी साहित्य

11.डा. गणपतिचन्द्र गुप्त- हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास

12.डा. नगेन्द्र- हिन्दी साहित्य का इतिहास, रीतिकाव्य की भूमिका

13.डा. बच्चन सिंह- हिंदी साहित्य का नवीन इतिहास

14.डा. भोला नाथ तिवारी- हिंदी साहित्य

15.विश्वनाथप्रसाद मिश्र- हिंदी साहित्य का अतीथ

16.परशुराम चतुर्वेदी -उत्तरी भारत की संत परम्परा

17.प्रभुदयाल मीतल- चैतन्य सम्प्रदाय और उसका साहित्य

18.डा. नलिन विलोचन शर्मा- हिंदी साहित्य का इतिहास दर्शन

19.डा. मोतीलाल मेंनारिया- राजस्थानी पिंगल साहित्य, राजस्थानी भाषा और साहित्य

20.कृपाशंकर शुक्ल- आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास

21.पं. राम नरेश त्रिपाठी- कविता कौमुदी (दो भाग )

22.सूर्यकान्त शास्त्री- हिंदी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास

23.पं.महेश दत्त शुक्ल-  हिंदी काव्य संग्रह

24.डा. टीकम सिंह तोमर – हिंदी वीर काव्य

25.आचार्य चतुरसेन – हिंदी साहित्य का इतिहास

26.डा. रामस्वरुप चतुर्वेदी – हिन्दी साहित्य और संवेदना का इतिहास

27.डा. भगीरथ मिश्र- हिंदी काव्य शास्त्र का इतिहास

28.डा. रामखेलावन पाण्डेय – हिंदी साहित्य का नया इतिहास 

29.डा. विजयेन्द्र स्नातक – राधावल्लभ सम्प्रदाय – सिद्धांत और साहित्य

30.पदुमलाल पुन्ना लाल वख्सी – हिंदी साहित्य विमर्श

31.आयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध-  हिंदी भाषा और उसके साहित्य का इतिहास

32.डा. विश्व नाथ त्रिपाठी – हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास

33.नागरी प्रचारिणी सभा काशी-  हिंदी साहित्य का वृहद इतिहास

[ हिंदी साहित्य का वृहद इतिहास 18 खण्डों मे विभक्त है | इसके षष्ठ भाग “ रीतिकाल” का सम्पादन डा . नगेन्द्र ने किया है | शताधिक लेखको ने अपना महत्व पूर्ण योगदान दिया है | ]

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