देवनागरी लिपि का विकास : भारत की सभी लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से ही निकली हैं। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वैदिक आर्यो ने शुरू किया। गुप्तकाल के आरंभ में ब्राह्मी के दो भेद हो गए उत्तरी ब्राह्मी व दक्षिणी ब्राह्मी।

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नागरी लिपि का विकास
नागरी लिपि का प्रयोग काल 8वीं-9वीं सदी ई० से आरंभ हुआ। 10वीं से 12वीं सदी के बीच इसी प्राचीन नागरी से उत्तरी भारत की अधिकांश आधुनिक लिपियों का विकास हुआ। इसकी दो शाखाएँ मिलती हैं पश्चिमी व पूर्वी। पश्चिमी शाखा की सर्वप्रमुख/प्रतिनिधि लिपि देवनागरी लिपि है।
(i) पश्चिमी शाखा- देवनागरी, राजस्थानी, गुजराती, महाजनी, कैथी
(ii) पूर्वी शाखा- बांग्ला लिपि, असमी, उड़िया
देवनागरी लिपि का विकास
जान गिलक्राइस्ट :
हिन्दी भाषा और फारसी लिपि का घालमेल फोर्ट विलियम कॉलेज (1800-54) की देन थी। फोर्ट विलियम कॉलेज के हिन्दुस्तानी विभाग के सर्वप्रथम अध्यक्ष जान गिलक्राइस्ट थे। उनके अनुसार हिन्दुस्तानी की तीन शैलियाँ थीं- दरबारी या फारसी शैली, हिन्दुस्तानी शैली व हिन्दवी शैली।
राजा शिव प्रसाद ‘सितारे-हिन्द’ का लिपि संबंधी प्रतिवेदन (1868 ई०) :
फारसी लिपि के स्थान पर नागरी लिपि और हिन्दी भाषा के लिए पहला प्रयास राजा शिवप्रसाद का 1868 ई० में उनके लिपि संबंधी प्रतिवेदन ‘मेमोरण्डम कोर्ट कैरेक्टर इन द अपर प्रोविन्स ऑफ इंडिया’ से आरंभ हुआ।
गौरी दत्त :
गौरीदत्त ने 1874 ई० में अपने संपादकत्व में ‘नागरी प्रकाश’ नामक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने और भी कई पत्रिकाओं का संपादन किया- ‘देवनागरी गजट’ (1888 ई०), ‘देवनागर’ (1891 ई०), ‘देवनागरी प्रचारक’ (1892 ई०) आदि।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र :
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने नागरी आंदोलन को अभूतपूर्व शक्ति प्रदान की और वे इसके प्रतीक और नेता माने जाने लगे। उन्होंने 1882 में शिक्षा आयोग के प्रश्न-पत्र का जवाब देते हुए कहा : ‘सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग होता है। यही ऐसा देश है जहाँ न तो अदालती भाषा शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की’।
हिन्दी हिन्दू-हिन्दुस्तान’ का नारा किसने लगाया ?
पंडित प्रताप नारायण मिश्र ने ‘हिन्दी हिन्दू-हिन्दुस्तान’ का नारा लगाना शुरू किया।
अदालतों में नागरी के प्रवेश का श्रेय किसने कराया ?
अदालतों में नागरी के प्रवेश का श्रेय मालवीयजी को दिया जाता है।
हिन्दवी शैली को किसने गँवारू माना ?
जान गिलक्राइस्ट हिन्दवी शैली को गँवारू मानते थे .
नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना-
वर्ष 1893 ई० में नागरी प्रचार एवं हिन्दी भाषा के संवर्द्धन के लिए नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की स्थापना की गई।
शारदा चरण मित्र (1848-1917 ई०) :
कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शारदा चरण मित्र ने अगस्त 1907 ई० में कलकत्ता में ‘एक लिपि विस्तार परिषद’ नामक संस्था की स्थापना की। मित्र ने इस संस्था की ओर से ‘देवनागर’ (1907 ई०) पत्र प्रकाशित करके भारत की सभी भाषाओं के साहित्य को देवनागरी लिपि में प्रस्तुत करने का उपक्रम रचा। इस पत्र में भिन्न-भिन्न भाषाओं के लेख देवनागरी लिपि में छपा करते थे। वे अखिल भारतीय लिपि के रूप में देवनागरी लिपि के प्रथम प्रचारक थे।
संविधान सभा में भाषा संबंधी विधेयक पारित (14 सितम्बर, 1949 ई०) :
जब संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 ई० को भाषा संबंधी विधेयक पारित किया तब जाकर लिपि के मामले में विद्यमान द्वैध या विवाद अंतिम रूप से समाप्त हुआ। अनुच्छेद 343(1) में स्पष्ट घोषणा की गई : ‘संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी’ । इस प्रकार, 150 वर्षों (1800-1949 ई०) के लम्बे संघर्ष के बाद देवनागरी लिपि हिन्दी भाषा की एकमात्र और अधिकृत लिपि बन पाई।
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