हिन्दी की संवैधानिक स्थिति

हिन्दी की संवैधानिक स्थिति

Table of Contents

अध्याय 1 : संघ की भाषा

अनु० 343 : संघ की राजभाषा

(1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तराष्ट्रीय रूप होगा।

(2) इस संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि तक (अर्थात 1965 तक) उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए पहले प्रयोग किया जा रहा था। 

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परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अन्तराष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।

(3) संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात, विधि द्वारा 
(i) अंग्रेजी भाषा का; या 
(ii) अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ।

अनु० 344 : 

राजभाषा के संबंध में आयोग (5 वर्ष के उपरांत राष्ट्रपति द्वारा) और संसद की समिति (10 वर्ष के उपरांत)

अध्याय 2 : प्रादेशिक भाषाएँ

अनु० 345 : 

राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ (प्रादेशिक भाषा/ भाषाएँ या हिन्दी; ऐसी व्यवस्था होने तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी)

अनु० 346 : 

एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा (संघ द्वारा तत्समय प्राधिकृत भाषा; आपसी करार होने पर दो राज्यों के बीच हिन्दी)

अनु० 347 : 

किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जानेवाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध

अध्याय 3 : SC, HC आदि की भाषा

अनु० 348 : 

SC और HC में और संसद व राज्य विधान मंडल में विधेयकों, अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जानेवाली भाषा (उपबंध होने तक अंग्रेजी जारी)

अनु० 349 : 

भाषा से संबंधित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रकिया (राजभाषा संबंधी कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पेश नहीं की जा सकती और राष्ट्रपति भी आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के बाद ही मंजूरी दे सकेगा)

अध्याय 4 : विशेष निदेश

अनु० 350 : 

व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जानेवाली भाषा (किसी की भाषा में) (i) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ (ii) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गो के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति (राष्ट्रपति द्वारा)

अनु० 351 : हिन्दी के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और 8वीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदावली को आत्मसात करते हुए जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।

8वीं अनुसूची

8वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है।

इस अनुसूची में आरंभ में 14 भाषाएँ थीं-

(1) असमिया (2) बांग्ला (3) गुजराती (4) हिन्दी (5) कन्नड़ (6) कश्मीरी (7) मलयालम (8) मराठी (9) उड़िया (10) पंजाबी (11) संस्कृत (12) तमिल (13) तेलुगू (14) उर्दू ]

बाद में सिंधी को (21 वां संशोधन, 1967 ई०),

तत्पश्चात कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली को (71वां संशोधन, 1992 ई०) शामिल किया गया, जिससे इसकी संख्या 18 हो गई।

तदुपरांत बोडो, डोगरी, मैथली, संथाली को (92 वां संशोधन, 2003) शामिल किया गया और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गई।

हिन्दी की संवैधानिक स्थिति की समीक्षा

अध्याय 1 (संघ की भाषा) की समीक्षा

अनु० 343 के संदर्भ में : 

संविधान के अनु० 343 (1) के अनुसार संघ की राजभाषा देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी घोषित की गई है। इससे देश के बहुमत की इच्छा ही प्रतिध्वनित होती है।

अनु० 343 (2) के अनुसार इसे भारतीय संविधान लागू होने की तारीख अर्थात 26 जनवरी, 1950 ई० से लागू नहीं किया जा सकता था। इसे लागू करने के लिए संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद की अवधि रखी तो गई, परन्तु फिर 

अनु० 343 (3) के द्वारा सरकार ने यह शक्ति प्राप्त कर ली कि वह इस 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेजी का प्रयोग जारी रख सकती है। रही-सही कसर, बाद में राजभाषा अधिनियम, 1963 ने पूरी कर दी क्योंकि इस अधिनियम ने सरकार के इस उद्देश्य को साफ कर दिया कि अंग्रेजी की हुकूमत देश पर अनंत काल तक बनी रहेगी।

अनु० 344 के संदर्भ में :

 अनु० 344 के अधीन प्रथम राजभाषा आयोग/बी० जी० खेर आयोग का 1955 में तथा संसदीय राजभाषा समिति/जी० बी० पंत समिति का 1957 में गठन हुआ। जहाँ खेर आयोग ने हिन्दी को एकान्तिक व सर्वश्रेष्ठ स्थिति में पहुँचाने पर जोर दिया वहाँ पंत समिति ने हिन्दी को प्रधान राजभाषा बनाने पर जोर तो दिया लेकिन अंग्रेजी को हटाने की बजाय उसे सहायक राजभाषा बनाये रखने की वकालत की। हिन्दी के दुर्भाग्य से सरकार ने खेर आयोग को महज औपचारिक माना और हिन्दी के विकास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए; जबकि सरकार ने पंत समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया, जो आगे चलकर राजभाषा अधिनियम 1963/67 का आधार बनी जिसने हिन्दी का सत्यानाश कर दिया। समग्रता से देखें तो स्वतंत्रता-संग्राम काल में हिन्दी देश में राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक थी अतएव राष्ट्रभाषा बनी, और राजभाषा अधिनियम 1963 के बाद यह केवल संपर्क भाषा होकर रह गयी।

अध्याय 2 (प्रादेशिक भाषाएँ) एवं 8वीं अनुसूची की समीक्षा

अनु० 345, 346

  भाषा के संबंध में राज्य सरकारों को पूरी छूट दी गई। संविधान की इन्हीं अनुच्छदों के अधीन हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी राजभाषा बनी। हिन्दी इस समय 9 राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, व हिमाचल प्रदेश-तथा 1 केन्द्र शासित प्रदेश-दिल्ली-की राजभाषा है। उक्त प्रदेशों में आपसी पत्र-व्यवहार की भाषा हिन्दी है। दिनोंदिन हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी का प्रयोग सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए बढ़ता जा रहा है। इनके अतिरिक्त, अहिन्दी भाषी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात व पंजाब की एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ व अंडमान निकोबार की सरकारों ने हिन्दी को द्वितीय राजभाषा घोषित कर रखा है तथा हिन्दी भाषी राज्यों से पत्र-व्यवहार के लिए हिन्दी को स्वीकार कर लिया है।

अनु० 347 के अनुसार

यदि किसी राज्य का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जानेवाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाय तो राष्ट्रपति उस भाषा को सरकारी अभिज्ञा दे सकता हैं। समय-समय पर राष्ट्रपति ऐसी अभिज्ञा देते रहे हैं, जो 8वीं अनुसूची में स्थान पाते रहे हैं, जैसे 1967 में सिंधी, 1992 में कोंकणी, मणिपुरी व नेपाली एवं 2003 में बोडो, डोगरी, मैथली व संथाली। यही कारण है कि संविधान लागू होने के समय जहाँ 14 प्रादेशिक भाषाओं को मान्यता प्राप्त थी वहीं अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है।

अध्याय 3 (SC, HC आदि की भाषा अर्थात न्याय व विधि/कानून की भाषा) की समीक्षा

अनु० 348, 349 

न्याय व कानून की भाषा, उन राज्यों में भी जहाँ हिन्दी को राजभाषा मान लिया गया है, अंग्रेजी ही है। नियम, अधिनियम, विनियम तथा विधि का प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी में होने के कारण सारे नियम अंग्रेजी में ही बनाये जाते हैं। बाद में उनका अनुवाद मात्र कर दिया जाता है। इस प्रकार, न्याय व कानून के क्षेत्र में हिन्दी का समुचित प्रयोग हिन्दी राज्यों में भी अभी तक नहीं हो सका है।

अध्याय 4 (विशेष निदेश) की समीक्षा

अनु० 350 : 

भले ही संवैधानिक स्थिति के अनुसार व्यक्ति को अपनी व्यथा के निवारण हेतु किसी भी भाषा में अभ्यावेदन करने का हकदार माना गया है लेकिन व्यावहारिक स्थिति यही है कि आज भी अंग्रेजी में अभ्यावेदन करने पर ही अधिकारी तवज्जो/ध्यान देना गवारा करते हैं।

अनु० 351 : (हिन्दी के विकास के लिए निदेश) :

अनु० 351 राजभाषा विषयक उपबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी के भावी स्वरूप के विकास की परिकल्पना सन्निहित है। हिन्दी को विकसित करने की दिशाओं का इसमें संकेत है। इस अनुच्छेद के अनुसार संघ सरकार का यह कर्तव्य है कि वह हिन्दी भाषा के विकास और प्रसार के लिए समुचित प्रयास करे ताकि भारत में राजभाषा हिन्दी के ऐसे स्वरूप का विकास हो, जो समूचे देश में प्रयुक्त हो सके और जो भारत की मिली-जुली संस्कृति की अभिव्यक्ति की वाहिका बन सके। इसके लिए संविधान में इस बात का भी निर्देश दिया गया है कि हिन्दी में हिन्दुस्तानी और मान्यताप्राप्त अन्य भारतीय भाषाओं की शब्दावली और शैली को भी अपनाया जाय और मुख्यतः संस्कृत तथा गौणतः अन्य भाषाओं (विश्व की किसी भी भाषा) से शब्द ग्रहण कर उसके शब्द-भंडार को समृद्ध किया जाय। संविधान के निर्माताओं की यह प्रबल इच्छा थी कि हिन्दी भारत में ऐसी सर्वमान्य भाषा के स्वरूप को ग्रहण करें, जो सब प्रांतों के निवासियों को स्वीकार्य हो। संविधान के निर्माताओं को यह आशा थी कि हिन्दी अपने स्वाभाविक विकास में भारत की अन्य भाषाओं से वरिष्ठ संपर्क स्थापित करेगी और हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के बीच में साहित्य का आदान-प्रदान भी होगा। संविधान के निर्माताओं ने उचित ढंग से यह आशा की थी कि राजभाषा हिन्दी अपने भावी रूप का विकास करने में अन्य भारतीय भाषाओं का सहारा लेगी। यह इसलिए था कि राजभाषा हिन्दी को सबके लिए सुलभ और ग्राह्य रूप धारण करना है।

(II) 1950 ई० के बाद हिन्दी की संवैधानिक प्रगति

राष्ट्रपति का संविधान आदेश, 1952 : 

राज्यपालों, SC एवं HC के न्यायाधीशों की नियुक्ति के अधिपत्रों के लिए हिन्दी का प्रयोग प्राधिकृत।

राष्ट्रपति का संविधान आदेश, 1955 : 

कुछ प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी का प्रयोग निर्धारित, जैसे

(1) जनता के साथ पत्र-व्यवहार में,

(2) प्रशासनिक रिपोर्ट, सरकारी पत्रिकाओं व संसदीय रिपोर्ट में,

(3) संकल्पों (Resolutions) व विधायी नियमों में,

(4) हिन्दी को राजभाषा मान चुके राज्यों के साथ पत्र-व्यवहार में,

(5) संधिपत्र और करार में,

(6) राजनयिक व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में भारतीय प्रतिनिधियों के नाम जारी किये जानेवाले पत्रों में।

प्रथम राजभाषा आयोग/बाल गंगाधर (बी.जी.) खेर आयोग :

7 जून, 1955 (गठन); 31 जुलाई, 1956 (प्रतिवेदन)   आयोग की सिफारिशें : 

  1. सारे देश में माध्यमिक स्तर तक हिन्दी अनिवार्य की जाए।
  2. देश में न्याय देश की भाषा में किया जाए।
  3. जनतंत्र में अखिल भारतीय स्तर पर अंग्रेजी का प्रयोग संभव नहीं। अधिक लोगों द्वारा बोली जानेवाली हिन्दी भाषा समस्त भारत के लिए उपयुक्त है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी का प्रयोग ठीक है, किन्तु शिक्षा, प्रशासन, सार्वजनिक जीवन तथा दैनिक कार्यकलापों में विदेशी भाषा का व्यवहार अनुचित है।
टिप्पणी : आयोग के दो सदस्यों ने-बंगाल के सुनीति कुमार चटर्जी व तमिलनाडु के पी० सुब्बोरोयान-आयोग की सिफारिशों से असहमति प्रकट की और आयोग के सदस्यों पर हिन्दी का पक्ष लेने का आरोप लगाया। जो भी हो, प्रथम राजभाषा आयोग/खेर आयोग ने हिन्दी के अधिकाधिक और प्रगामी प्रयोग पर बल दिया था। खेर आयोग ने जो ठोस सुझाव रखे थे, सरकार ने उन्हें महज औपचारिक मानते हुए राजभाषा हिन्दी के विकास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।  

संसदीय राजभाषा समिति/गोविंद बल्लभ (जी० बी०) पंत समिति :

16 नवम्बर, 1957 (गठन); 8 फरवरी, 1959 (प्रतिवेदन)

  पंत समिति ने कहा कि राष्ट्रीय एकता को द्योतित करने के लिए एक भाषा को स्वीकार कर लेने का स्वतंत्रता-पूर्व का जोश ठंढा पड़ गया है।

सिफारिशें-

(1) हिन्दी संघ की राजभाषा का स्थान जल्दी-से-जल्दी ले। लेकिन इस परिवर्तन के लिए कोई निश्चित तारीख (जैसे 26 जनवरी, 1965 ई०) नहीं दी जा सकती यह परिवर्तन धीरे-धीरे स्वाभाविक रीति से होना चाहिए। 
(2) 1965 ई० तक अंग्रेजी प्रधान राजभाषा और हिन्दी सहायक राजभाषा रहनी चाहिए। 1965 के बाद जब हिन्दी संघ की प्रधान राजभाषा हो जाये, अंग्रेजी संघ की सहायक/ सह राजभाषा रहनी चाहिए।

टिप्पणी : पंत समिति के सिफारिशों से राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविंद दास असहमत व असंतुष्ट थे और उन्होंने यह आरोप लगाया कि सरकार हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रास्थापित करने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए हैं। इन दोनों नेताओं ने समिति द्वारा अंग्रेजी को राजभाषा बनाये रखने का भी घोर विरोध किया। जो भी हो, सरकार ने पंत समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। 

राष्ट्रपति का आदेश, 1960 : 

शिक्षा मंत्रालय, विधि मंत्रालय, वैज्ञानिक अनुसंधान व सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय को हिन्दी को राजभाषा के रूप में विकसित करने हेतु विभिन्न निर्देश।

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