व्यवस्थित शास्त्र के रूप में पाश्चात्य साहित्यालोचन की पहली झलक प्लेटो (427-347 ई० पू०) के ‘इओन’ नामक संवाद में मिलती है।
प्लेटो पाश्चात्य काव्यशास्त्री
प्लेटो का संक्षिप्त जीवनवृत्त निम्नांकित है-
जन्म-मृत्यु | जन्म स्थान | मूलनाम | गुरुप्रदत्त नाम | अरबी फारसी नाम | अंग्रेजी नाम |
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427-347 | एथेन्स | अरिस्तोक्लीस | प्लातोन | अफ़लातून | प्लेटो |
प्लेटो प्रत्ययवादी या आत्मवादी दार्शनिक था। इसके दर्शन के मुख्य विषय निम्नलिखित है-
(1) प्रत्यय-सिद्धान्त;
(2) आदर्श-राज्य;
(3) आत्मा की अमरत्व सिद्धि;
(4) सृष्टि-शास्त्र;
(5) ज्ञान-मीमांसा।
प्लेटो के प्रत्यय सिद्धान्त के अनुसार, ‘प्रत्यय या विचार (Idea) ही चरम सत्य है, वह शाश्वत और अखण्ड है तथा ईश्वर उसका स्त्रष्टा (Creator) है। यह वस्तु जगत प्रत्यय का अनुकरण है तथा कला जगत वस्तु जगत का अनुकरण है। इस प्रकार कला जगत अनुकरण का अनुकरण होने से सत्य से तीन गुना दूर है; क्योंकि अनुकरण असत्य होता है। अर्थात-
विचार या प्रत्यय …अनुकरण …. वस्तु जगत….अनुकरण …. कला जगत
प्लेटो ने यूनानी शब्द ‘मिमेसिस’ (Mimesis) अर्थात ‘अनुकरण’ का प्रयोग अपकर्षी (Derogatory) अर्थ में किया है, उनके अनुसार अनुकरण में मिथ्यात्व रहता है, जो हेय है।कला की अनुकरण मूलकता की उद्भावना का श्रेय प्लेटो को दिया जाता है।
वास्तव में, प्लेटो ने अनुकरण में मिथ्यात्व का आरोप लगाकर कलागत सृजनशीलता की अवहेलना की।
प्लेटो आदर्श राज्य से कवि या साहित्यकार के निष्कासन की वकालत करता है क्योंकि कवि सत्य के अनुकरण का अनुकरण करता है, जो सत्य से त्रिधा अपेत (Three Removed) है।
प्लेटो की महत्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित है-
(1) इओन (Ion), (2) क्रातिलुस (Cratylus) (3) गोर्गिआस (Gorgias) (4) फेद्रुस (Phaedrus) (5) फिलेबुस (Philebus) (6) विचार गोष्ठी (Symbosium) (7) गणतन्त्र (Republic) (8) लॉज।
प्लेटो ने अपने ‘इओन’ नामक संवाद में काव्य-सृजन प्रक्रिया या काव्य हेतु की चर्चा की है। इसने ईश्वरीय उन्माद को काव्य हेतु स्वीकार किया है।
प्लेटो के अनुसार कवि काव्य-सृजन दैवी शक्तियों से प्रेरित होकर करता है। काव्य देवी को प्लेटो ने ‘म्यूजेज’ संज्ञा से अभिहित किया है।
प्लेटो ने काव्य के तीन प्रमुख भेद स्वीकार किये हैं-
(1) अनुकरणात्मक प्रहसन और दुःखान्तक (नाटक)
(2) वर्णानात्मक डिथिरैंब (प्रगति)
(3) मिश्र महाकाव्यप्लेटो ने कला को अग्राह्य माना है, जिसके दो आधार हैं-
(1) दर्शन और (2) प्रयोजन।
कला के मूल्य के संदर्भ में प्लेटो का दृष्टिकोण उपयोगितावादी और नैतिकतावादी था।
प्लेटो का कला विषयक दृष्टिकोण विधेयात्मक या मानकीय (Normative) है, अर्थात प्लेटो बताना चाहते है कि कला कैसी होनी चाहिए।प्लेटो स्वयं एक कवि था। इसकी कविताएँ ‘आक्सफोर्ड बुक ऑफ ग्रीक वर्स’ से संकलित है।
प्लेटो ने ‘रिपब्लिक’ में लिखा है, ”दासता मृत्यु से भी भयावह है।”
प्लेटो के सामाजिक उपादेयता का सिद्धांत
- उसके अनुसार काव्य को उदात्त मानव-मूल्यों का प्रसार करना चाहिए।
- देवताओं तथा वीरों की स्तुति एवं प्रशंसा काव्य का मुख्य विषय होना चाहिए।
- काव्य-चरित्र ऐसे होने चाहिए जिनका अनुकरण करके आदर्श नागरिकता प्राप्त की जा सके।
- प्लेटो ने जब अपने समय तक प्राप्त काव्य की समीक्षा की तो उन्हें यह देख कर घोर निराशा हुई कि कविता कल्पना पर आधारित है।वह नागरिकों को उत्तमोत्तम प्रेरणा एवं विचार देने के बजाय दुर्बल बनाती है।
- प्लेटो के विचार से सुव्यवस्थित राज्य में कल्पनाप्रणव कवियों को रखना ठीक नहीं होगा, क्योंकि इस प्रकार के कलाकार झूठी भावात्मकता उभार कर व्यक्ति की तर्क-शक्ति कुंठित कर देते है जिससे भले-बुरे का विवेक समाप्त हो जाता है।
प्लेटो के अनुकृति-सिद्धांत
- उनके अनुसार काव्य, साहित्य और कला जीवन और प्रकृति का किसी न किसी रूप में अनुकरण है।
- काव्य को कला का ही एक रूप मानने वाले प्लेटो के अनुसार कवि और कलाकार अनुकरण करते हुए मूल वस्तु या चरित्रों के बिम्बों और दृश्यों की प्रतिमूर्ति उपस्थित करते हैं।
- वे उस वस्तु या चरित्र की वास्तविकता का ज्ञान नहीं रखते।
कलाओं और कविताओं को निम्न कोटि का मानने वाले प्लेटो अनुकरण के दो पक्ष मानते हैं— पहला जिसका अनुकरण किया जाता है और दूसरा अनुकरण का स्वरूप।
अगर अनुकरण का तत्त्व मंगलकारी है और अनुकरण पूर्ण एवं उत्तम है तो वह स्वागत योग्य है।
परंतु प्रायः अनुकृत्य वस्तु अमंगलकारी होती है तथा कभी-कभी मगंलकारी वस्तु का अनुकरण अधूरा और अपूर्ण होता है। ऐसी दशा में कला सत्य से परे और हानिकारक होती है।
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