अरस्तू पाश्चात्य काव्यशास्त्री

अरस्तू पाश्चात्य काव्यशास्त्री

  •  प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने कलाओं को अनुकरणात्मक मानते हुए भी उनके महत्त्व को स्वीकार किया।
  • यह प्लेटो के विचारों से भिन्न दृष्टि थी।
  • प्लेटो के विचार जहाँ नैतिक और सामाजिक हैं, वहीं अरस्तू की दृष्टि सौंदर्यवादी है।

अरस्तू का विरेचन-सिद्धान्त

  • इस सिद्धांत के अनुसार गम्भीर कार्यों की सफल और प्रभावशाली अनुकृति वर्णन के रूप में न होकर कार्यों के रूप में होती है जिसमें करुणा और भय उत्पन्न करने वाली घटनाएँ होती हैं जो इन भावों के विरेचन द्वारा एक राहत और आनंद प्रदान करती हैं।
  • अरस्तू के विचार से भय और करुणा के दो भाव हमारे भीतर घनीभूत होते रहते हैं। इस प्रकार की त्रासदी को देखने पर कुशल अभिनय द्वारा ये भाव संतुलित और समंजित हो जाते हैं और इस प्रकार हमारे मन को राहत और आनंद की अनुभूति होती है।
  • कविता या नाटक के पात्रों के बीच इन उत्तेजित वासनाओं और उसके दुष्परिणामों का हमारे शरीर और जीवन से सीधा संबंध न होने के कारण ये वासनाएँ परिष्कृत संवेदनाओं का रूप ग्रहण करती हैं। यही भावों का विरेचन है और कविता का यही वास्तविक प्रभाव और कार्य होता है।

अरस्तू ने कहा कि काव्य कल्पना पर आधारित होती है। वह वास्तविकता का चित्रण नहीं होता बल्कि उसका आधार सम्भावना है। काव्य वास्तव में अनुकरण है किंतु यही उसकी विशिष्टता है। लेकिन कवि वस्तुओं की पुनर्रचना करता है, नकल नहीं। अनुकरण के कारण ही काव्य आनंददायक होता है। उससे शिक्षा प्राप्त हो सकती है किंतु उसका उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना नहीं है। इस प्रकार अरस्तू ने प्लेटो के काव्य संबंधी विचारों एवं आरोपों का निराकण किया।


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