राष्ट्रभाषा व राजभाषा संबंधी तथ्य
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार सर्वप्रथम बंगाल में उदित हुआ। संविधान सभा में हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव गोपाल स्वामी आयंगर ने रखा जिसका समर्थन शंकरराव देव ने किया।
Table of Contents
राष्ट्रभाषा व राजभाषा संबंधी तथ्य
- प्रताप नारायण मिश्र ने ‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान’ का नारा दिया।
- कांग्रेस के फैजपुर अधिनेशन (1936 ई०) एवं हरिपुरा अधिवेशन (1938 ई०) में कांग्रेस के विराट मण्डप में ‘राष्ट्रभाषा सम्मेलन’ आयोजित किये गये, जिनकी अध्यक्षता राजेन्द्र प्रसाद (फैजपुर) एवं जमना लाल बजाज (हरिपुरा) ने की।
- संविधान सभा में राजभाषा के नाम पर हुए मतदान में हिन्दुस्तानी को 77 वोट तथा हिन्दी को 78 वोट मिले।
- आजादी-पूर्व हिन्दी का समर्थन करनेवाले व आजादी-बाद हिन्दी का विरोध करने वाले व्यक्तित्व
-सी० राजगोपालाचारी, सुनीति कुमार चटर्जी, हुमायूं कबीर, अनंत शयनम अय्यंगार आदि।
‘मैं कभी भी हिन्दी का विरोधी नहीं हूँ। मैं उन हिन्दी वालों का विरोध करता हूँ जो वस्तुस्थिति को नहीं समझकर अपने स्वार्थ के कारण हिन्दी को लादने की बात सोचते हैं।’
-सी राजगोपालाचारी
‘हिन्दी अहिन्दी लोगों के लिए ठीक उतनी ही विदेशी है जितनी कि हिन्दी समर्थकों के लिए अंग्रेजी।’
-सी राजगोपालाचारी
‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान’ वाले राष्ट्रबाद की सबसे बड़ी सीमा यह है कि यह समूचे दक्षिण भारत को भूल जाता है।
-इरोड वेंकट रामास्वामी (ई० वी० आर०)’पेरियार’
1952 में एक विख्यात स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्रीरामालु ने तेलगु भाषी लोगों के लिए एक पृथक राज्य आंध्र प्रदेश ने तेलगु भाषी लोगों के लिए एक पृथक राज्य आंध्र प्रदेश बनाने की मांग पर आमरण अनशन करते हुए 58 दिन बाद (19 अक्तू, 16 दिसम्बर) को अपनी जान दे दी। इसके बाद भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मुहिम में तेजी आई।
पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात राज्य अपने शासन में क्रमशः पंजाबी, मराठी और गुजराती भाषा के साथ-साथ हिन्दी को ‘सहभाषा’ के रूप में घोषित कर रखा है।