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January 2024

भक्तिकाल के कवि

भक्तिकाल के कवि प्रबंधात्मक काव्यकृतियाँ : पद्यावत, रामचरितमानस मुक्तक काव्य कृतियाँ : गीतावली, कवितावली, कबीर के पद भक्तिकालीन रचना और रचनाकार कविप्रिया, रसिक प्रिया , वीर सिंह, देव चरित(प्र०), विज्ञान गीता, रतनबावनी,

रीतिकाल के उदय

रीतिकाल के उदय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : 'इसका कारण जनता की रूचि नहीं, आश्रयदाताओं की रूचि थी, जिसके लिए वीरता और कर्मण्यता का जीवन बहुत कम रह गया था। .... रीतिकालीन कविता में लक्षण ग्रंथ, नायिका भेद, श्रृंगारिकता आदि की जो प्रवृत्तियाँ

रीतिकाल की काव्य प्रवृत्तियाँ

रीतिकाल की काव्य प्रवृत्तियाँ रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ (1) रीति निरूपण(2) श्रृंगारिकता। रीति निरूपण काव्यांग विवेचन के आधार पर दो वर्गो में बाँटा जा सकता है सर्वाग विवेचन : इसके अन्तर्गत काव्य के सभी अंगों (रस, छंद,

रीति मुक्त कवि

रीतिमुक्त कवि : रीति परंपरा से मुक्त कवियों को रीतिमुक्त कवि कहा जाता है। घनानंद, आलम, ठाकुर, बोधा, द्विजदेव आदि इस वर्ग में आते हैं। रीतिकालीन आचार्यों में देव एकमात्र अपवाद है जिन्होंने रीति निरूपण के क्षेत्र में मौलिक

रीति सिद्ध कवि

रीति सिद्ध कवि रीतिसिद्ध कवियों की रचनाओं की पृष्ठभूमि में अप्रत्यक्ष रूप से रीति परिपाटी काम कर रही होती है। उनकी रचनाओं को पढ़ने से साफ पता चलता है कि उन्होंने काव्य शास्त्र को पचा रखा है। बिहारी, रसनिधि आदि इस वर्ग में आते है।

रीतिबद्ध कवि

रीतिबद्ध कवि रीतिबद्ध कवियों (आचार्य कवियों) ने अपने लक्षण ग्रंथों में प्रत्यक्ष रूप से रीति परम्परा का निर्वाह किया है; जैसे- केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति, देव, पद्माकर आदि। आचार्य राचन्द्र ने केशवदास को 'कठिन काव्य का

हिंदी वर्तनी का मानकीकरण

हिंदी वर्तनी का मानकीकरण एक ही स्वन को प्रकट करने के लिए विविध वर्णों का प्रयोग वर्तनी को जटिल बना देता है और यह लिपि का एक सामान्य दोष माना जाता है। यद्यपि देवनागरी लिपि में यह दोष न्यूनतम है. फिर भी उसकी कुछ अपनी विशिष्ट कठिनाइयाँ भी

देवनागरी में सुधार के प्रयास / लिपि सुधार आन्दोलन

देवनागरी में सुधार के प्रयास (1) बाल गंगाधर का 'तिलक फांट' (1904-26) (2) सावरकर बंधुओं का 'अ की बारहखड़ी' (3) श्याम सुन्दर दास का पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग का सुझाव (4) गोरख प्रसाद का मात्राओं को व्यंजन के बाद

हिन्दी में लिपि चिह्न

हिन्दी में लिपि चिह्न भारतीय संघ तथा कुछ राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप हिंदी का मानक रूप निर्धारित करना बहुत आवश्यक था, ताकि वर्णमाला में सर्वत्र एकरूपता रहे और टाइपराइटर आदि आधुनिक यंत्रों के उपयोग में लिपि की

देवनागरी लिपि के विशेष चिह्न और उनका प्रयोग

देवनागरी लिपि के विशेष चिह्न और उनका प्रयोग हिंदी की लिपि देवनागरी है और इसका उद्भव ब्राह्मी, गुप्त, सिद्धम, शारदा, नागरी आदि से हुआ है। इसमें 52 (13 स्वर, 33 व्यंजन, 5 यौगिक और 2 विशेष) अक्षर और कुछ मात्राएँ व चिह्न हैं, जिनका प्रयोग