मैथिलीशरण गुप्त का जयद्रथ वध

मैथिलीशरण गुप्त का जयद्रथ वध का आधार महाभारत है। जयद्रथ वध का प्रकाशन 1910 में हुआ था। मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी सरस प्रवाहपूर्ण शैली द्वारा जयद्रथ वध काव्य को नया प्रदान किया है। जयद्रथ-वध का प्रथम सर्ग वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही ‘जय

भारतेन्दु-युग में निबन्ध-साहित्य

निबंध भारतेन्दु-युग में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से निबन्ध-साहित्य की पूर्ण प्रतिष्ठा हो चुकी थी। इस युग के निबंध लेखकों में महावीरप्रसाद द्विवेदी, गोविन्दनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, माधवप्रसाद मिश्र, मिश्रबन्धु (श्यामबिहारी मिश्र और

उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद

उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद (i) तत्सम शब्द (ii ) तद्भव शब्द (iii ) देशज शब्द (iv) विदेशी शब्द। (i) तत्सम शब्द – हिंदी भाषा में बहुत सारे ऐसे शब्द है, जो संस्कृत भाषा से लिए गए हैं परंतु उनका अर्थ और प्रयोग

प्रयोग की दृष्टि से शब्द भेद

प्रयोग की दृष्टि से शब्द भेद विकारी शब्द – विकार शब्द का अर्थ होता है परिवर्तन या बदलाव। जब किसी शब्द के रूप में लिंग, वचन, और कार्य के आधार पर किसी प्रकार का परिवर्तन आ जाता है तो उन शब्दों को विकारी शब्द कहते हैं।

अर्थ की दृष्टि से शब्द भेद

अर्थ की दृष्टि से शब्द भेद (i) साथर्क शब्द – ऐसे शब्द जिनके प्रयोग से किसी बात का अर्थ स्पष्ट हो वह सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे – पलंग, संदूक, बोतल, किताब, ठंडा, ब्लैकबोर्ड, कुर्सी, मोबाइल, कंघी, मोमबत्ती, चाय,

रीतिकाल के उदय

रीतिकाल के उदय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : 'इसका कारण जनता की रूचि नहीं, आश्रयदाताओं की रूचि थी, जिसके लिए वीरता और कर्मण्यता का जीवन बहुत कम रह गया था। .... रीतिकालीन कविता में लक्षण ग्रंथ, नायिका भेद, श्रृंगारिकता आदि की जो प्रवृत्तियाँ

रीतिकाल की काव्य प्रवृत्तियाँ

रीतिकाल की काव्य प्रवृत्तियाँ रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ (1) रीति निरूपण(2) श्रृंगारिकता। रीति निरूपण काव्यांग विवेचन के आधार पर दो वर्गो में बाँटा जा सकता है सर्वाग विवेचन : इसके अन्तर्गत काव्य के सभी अंगों (रस, छंद,

रीति मुक्त कवि

रीतिमुक्त कवि : रीति परंपरा से मुक्त कवियों को रीतिमुक्त कवि कहा जाता है। घनानंद, आलम, ठाकुर, बोधा, द्विजदेव आदि इस वर्ग में आते हैं। रीतिकालीन आचार्यों में देव एकमात्र अपवाद है जिन्होंने रीति निरूपण के क्षेत्र में मौलिक

रीति सिद्ध कवि

रीति सिद्ध कवि रीतिसिद्ध कवियों की रचनाओं की पृष्ठभूमि में अप्रत्यक्ष रूप से रीति परिपाटी काम कर रही होती है। उनकी रचनाओं को पढ़ने से साफ पता चलता है कि उन्होंने काव्य शास्त्र को पचा रखा है। बिहारी, रसनिधि आदि इस वर्ग में आते है।

रीतिबद्ध कवि

रीतिबद्ध कवि रीतिबद्ध कवियों (आचार्य कवियों) ने अपने लक्षण ग्रंथों में प्रत्यक्ष रूप से रीति परम्परा का निर्वाह किया है; जैसे- केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति, देव, पद्माकर आदि। आचार्य राचन्द्र ने केशवदास को 'कठिन काव्य का