हिंदी साहित्य का रासो साहित्य

दलपत विजय रचित खुमानरासो (810-1000)

खुम्माण ने 24 युद्ध किए और वि.सं. 869 से 893 तक राज्य किया। यह समस्त वर्णन ‘दलपतविजय’ नामक किसी कवि के रचित खुमानरासो के आधार पर लिखा गया जान पड़ता है।

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नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो

नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ उपनाम बीसलदेव का समकालीन था। कदाचित् यह राजकवि था। इसने ‘बीसलदेवरासो’ नामक एक छोटा सा (100 पृष्ठों का) ग्रंथ लिखा है, जो वीरगीत के रूप में है। ग्रंथ में निर्माणकाल यों दिया है- बारह सै बहोत्तरा मझारि। जैठबदी नवमी बुधवारि।नाल्ह रसायण आरंभइ। शारदा तूठी ब्रह्मकुमारि।

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रासो काव्य (Raso kavya)के प्रमुख कवि विशेषता व पंक्तियाँ

रासो काव्य (Raso kavya)के प्रमुख कवि विशेषता व पंक्तियाँ के बारे में जानेंगे रासो साहित्य के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य: रास और रासो शब्द की व्युत्पति रासो साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ प्रमुख रासो ग्रन्थ पृथ्वीराज रासो चंदबरदाई बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह परमाल रासो जगनिक हम्मीर रासो शार्ङ्धर खुमान रासो दलपति विजय विजयपाल रासो नल्लसिंह भाट

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