सुमित्रानंदन पन्त का साहित्यिक परिचय
सुमित्रानंदन पन्त हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। यहाँ पर साहित्यिक परिचय के बारे में विस्तारपूर्वक जानेंगे .
पन्त का जीवन परिचय
- सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई 1900 ई॰ को हुआ।
- उनका नाम गोसाईं दत्त रखा गया
- महात्मा गाँधी के सान्निध्य में उन्हें आत्मा के प्रकाश का अनुभव हुआ।
- १९३८ में प्रगतिशील मासिक पत्रिका ‘रूपाभ’ का सम्पादन किया।
- श्री अरविन्द आश्रम की यात्रा से आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ।
- १९५८ में ‘युगवाणी’ से ‘वाणी’ काव्य संग्रहों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन ‘चिदम्बरा’ प्रकाशित हुआ, जिसपर १९६८ में उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- १९६० में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
- १९६१ में ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित हुये।
- १९६४ में विशाल महाकाव्य ‘लोकायतन’ का प्रकाशन हुआ।
- अविवाहित पंत जी के अंतस्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भावना रही।
- उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर 1977 को हुई।
सुमित्रानंदन पन्त का साहित्य सृजन
- १९२६ में उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित
- वे मार्क्स व फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आये।
- सन् १९२२ में उच्छ्वास और १९२६ में पल्लव का प्रकाशन हुआ।
- उनके जीवनकाल में उनकी २८ पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल
- उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है।
- उन्होंने मधुज्वाल नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह निकाला
- डा हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से खादी के फूल नामक कविता संग्रह प्रकाशित करवाया।
सुमित्रानंदन पन्त का विचारधारा
- प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं
- दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के
- अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के।
- उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत हैं।
काव्य-संग्रह
- ‘वीणा’, ‘पल्लव’ तथा ‘गुंजन’ छायावादी शैली में सौन्दर्य और प्रेम की प्रस्तुति है।
- ‘युगान्त’, युगवाणी’ तथा ‘ग्राम्या’ में पन्तजी के प्रगतिवादी और यथार्थपरक भावों का प्रकाशन हुआ है।
- ‘स्वर्ण-किरण’, ‘स्वर्ण-धूलि’, ‘युगपथ’, ‘उत्तरा’, ‘अतिमा’, तथा ‘रजत-रश्मि’ संग्रहों में अरविन्द-दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है।
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ
पहली कविता : गिरजे का घंटा (1916)
कविता संग्रह / खंडकाव्य
- उच्छ्वास (1920)
- ग्रन्थि (1920)
- पल्लव (1926)
- वीणा (1927, 1918-1919 की कविताएँ संकलित)
- गुंजन (1932)
- युगांत (1936)
- युगवाणी (1938)
- ग्राम्या (1940)
- स्वर्णकिरण (1947)
- स्वर्णधूलि (1947)
- उत्तरा (1949)
- युगपथ (1949)
- अतिमा (1955)
- वाणी (1957)
- चिदंबरा (1958)
- पतझड़ (1959)
- कला और बूढ़ा चाँद (1959)
- लोकायतन (1964, महाकाव्य)
- गीतहंस (1969)
- सत्यकाम (1975, महाकाव्य)
- पल्लविनी
- स्वच्छंद (2000)
- मुक्ति यज्ञ
- युगांतर
- तारापथ
- मानसी
- सौवर्ण
- अवगुंठित
- मेघनाद वध
चुनी हुई रचनाओं के संग्रह
- युगपथ (1949)
- चिदंबरा (1958)
- पल्लविनी
- स्वच्छंद (2000)
काव्य-नाटक/काव्य-रूपक
- ज्योत्ना (1934)
- रजत-शिखर (1951)
- शिल्पी (1952)
- आत्मकथात्मक संस्मरण
- साठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)
आलोचना
- गद्यपथ (1953)
- शिल्प और दर्शन (1961)
- छायावाद : एक पुनर्मूल्यांकन (1965)
कहानियाँ
- पाँच कहानिय़ाँ (1938)
उपन्यास
- हार (1960)
अनूदित रचनाओं के संग्रह
- मधुज्वाल (उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फारसी से हिन्दी में अनुवाद)
संयुक्त संग्रह
- खादी के फूल / सुमित्रानंदन पंत और बच्चन का संयुक्त काव्य-संग्रह
पत्र-संग्रह
- पंत के सौ पत्र (1970, सं. बच्चन)
पत्रकारिता
- 1938 में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- उच्छ्वास, आँसी की बालिका, पर्वत प्रदेश में पावस, काले बादल, छाया, नौका-विहार, परिवर्तन, भावी पत्नी के प्रति, अनंग, चाँदनी, अप्सरा, द्रुत झरो, धेनुएँ.
- आह, धरती कितना देती है
- आओ, हम अपना मन टोवें
- आत्मा का चिर-धन
- काले बादल
- घंटा
- छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
- जग जीवन में जो चिर महान
- जीना अपने ही में
- द्रुत झरो
- धरती का आँगन इठलाता
- धेनुएँ
- नौका-विहार
- पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस
- परिवर्तन
- पर्वत प्रदेश में पावस
- पाषाण खंड
- प्रथम रश्मि
- फैली खेतों में दूर तलक मखमल की कोमल हरियाली
- बाँध दिए क्यों प्राण
- भारतमाता ग्रामवासिनी
- मछुए का गीत
- महात्मा जी के प्रति
- मैं सबसे छोटी होऊँ
- यह धरती कितना देती है
- लहरों का गीत
- वसंत
- वह जीवन का बूढ़ा पंजर
- वायु के प्रति
- वे आँखें
- श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति
- संध्या के बाद
- सांध्य वंदना
पुरस्कार व सम्मान
- 1960 ‘कला और बूढ़ा चांद’ पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’
- 1961 ‘पद्मभूषण’ हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए
- 1968 ‘चिदम्बरा’ नामक रचना पर ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’
- ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार’
सुमित्रानंदन पन्त का काव्य संकलन
१९२६ में उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित हुआ। १९३८ में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला। शमशेर, रघुपति सहाय आदि के साथ वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुडे रहे। वे १९५० से १९५७ तक आकाशवाणी से जुडे रहे और मुख्य-निर्माता के पद पर कार्य किया। उनकी विचारधारा योगी अरविन्द से प्रभावित भी हुई जो बाद की उनकी रचनाओं ‘स्वर्णकिरण’ और ‘स्वर्णधूलि’ में देखी जा सकती है। “युगांत” की रचनाओं के लेखन तक वे प्रगतिशील विचारधारा से जुडे प्रतीत होते हैं। “युगांत” से “ग्राम्या” तक उनकी काव्ययात्रा प्रगतिवाद के निश्चित व प्रखर स्वरों की उद्घोषणा करती है।
सुमित्रानंदन पन्त की साहित्यिक यात्रा
पन्त की साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पडाव हैं –
- प्रथम में वे छायावादी हैं,
- दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिवादी तथा
- तीसरे में अरविन्द दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी।
१९०७ से १९१८ के काल को स्वयं उन्होंने अपने कवि-जीवन का प्रथम चरण माना है। इस काल की कविताएँ वाणी में संकलित हैं। सन् १९२२ में उच्छ्वास और १९२६ में पल्लव का प्रकाशन हुआ। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि। उनके जीवनकाल में उनकी २८ पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं।
पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं ‘पल्लव’ में संगृहीत हैं, जो १९१८ से १९२५ तक लिखी गई ३२ कविताओं का संग्रह है। इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता ‘परिवर्तन’ सम्मिलित है। ‘तारापथ’ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है। उन्होंने मधुज्वाल नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह निकाला और डाॅ○ हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से खादी के फूल नामक कविता संग्रह प्रकाशित करवाया।
विशेष तथ्य
- सन २०१५ में पन्त जी की याद में एक डाक-टिकट जारी किया गया था।
- उत्तराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे कौसानी गांव में, जहाँ उनका बचपन बीता था, वहां का उनका घर आज ‘सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय बन चुका है।
- उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम ‘सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान’ कर दिया गया है।
- हिंदी साहित्य के विलियम वर्ड्सवर्थ कहे जाने वाले इस कवि ने महानायक अमिताभ बच्चन को ‘अमिताभ’ नाम दिया था।